पर्यावरणीय ख़तरों से बचने के लिए उठें ठोस कदम

लेखक : राम भरोस मीणा 

पर्यावरणविद् व स्वतंत्र लेखक हैं

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जीवाश्म ईंधन के साथ हमें बारूदों के बनाने तथा अनावश्यक प्रयोगों पर भी खुलकर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है क्योंकि धरती को बचाने के लिए पर्यावरणीय प्रदुषण को बढ़ावा देने वाले सभी कल-कारखाने, अनुसंधानों, प्रशिक्षण केन्द्रों तथा आपसी युद्धों को त्याग कर पर्यावरण संरक्षण के सभी क़दम उठाना आवश्यक है।

आज सम्पूर्ण विश्व पर्यावरणीय प्रदुषण से उपजे ख़तरों से जुझ रहा है वहीं प्रत्येक शहर से स्वच्छ वायु ग़ायब होने के साथ ज़हर भरी हवाओं का बोलबाला बहुतायत में हो गया, जिससे आम आदमी का जीवन ख़तरे में पड़ता दिखाई दे रहा है। चारों ओर धुआं के बाद, ज़हर उगलतीं चिमनियां, स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती गैसें, अपशिष्टो एवं मल के साथ बहते गंदे नाले, कचरा के पहाड़ के साथ आसमान में  एक ऐसी चादर छा गई जों सभी संजीव प्राणियों को निगलने को तैयार दिखाई देती है। इन सभी पर्यावरणीय ख़तरों को देखते हुए स्वाभाविक यह प्रशन उठने लगता है कि आखिर यह खतरा मानव के सामने क्यों पैदा हुआ, कैसे पैदा हुआ, कब से पैदा हुआ और व्यक्ति समाज सरकार तथा राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर के संगठन इसे कठोरता से क्यों नहीं ले रहे ? आखिर वज़ह क्या है ? क्या प्रकृति प्रदत्त सभी संसाधनों का दोहन कर आम व्यक्ति को जीवन जीने देंगे, क्या स्वयं विकास की परिभाषा गढ़ने वाले इन हालातों में बच सकेंगे।

इन सभी प्रशनों को देखते हुए यह साफ़ होता है कि विकास शब्द के साथ ही विनाश प्रारम्भ हुआ, लेकिन विकास सभी को दिखाई देता रहा विनाश की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया ओर महज़ तीन से चार दशकों में यह विकास से आगे बढ़ कर इंसान को विकास की परिभाषा बदलने के लिए मजबुर कर दिया, जिसको  लेकर आज प्रत्येक देश सोचने को मजबुर हों गया साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य देशों  पर दबाव बनाने में सफल होते दिखाई दे रहे हैं जैसे भारत।

कांप - 28 वार्ता में पर्यावरण संरक्षण के साथ बड़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस नीचे करने जीवाश्म ईंधन (कोयला , तेल, गैस) के उत्पादन उपभोग दोनों को कम करने के साथ सभी मेजबानी कर रहे विकसित देशों से इसमें अर्थ के साथ साथ सहयोग तथा सहमति की आशा दिखाई देने लगी। वहीं संयुक्त राष्ट्र सचिव एंटोनियो गुटरेस ने कहा कि धरती को बचाने के लिए ऊर्जा संरक्षण पर काम करना होगा क्योंकि हमारे पास यह आखिरी समय है जिसमें सहमत होना जरूरी है। राष्ट्रमंडल महासचिव पेट्रिसिया स्कांटलैण्ड ने कहा की भारत कों स्थिति को सम्हालना चाहिए क्योंकि राष्ट्रमंडल कहें जाने वाले 56 देशों की आधी आबादी भारत में रहतीं हैं। यदि स्थिति यह बनती है कि भारत को आगे आने की आवश्यकता है तो हमारे सामने यह अवसर भी है अपनी श्रेष्ठता के उस अवसरों को भारत को गवाना भी नहीं चाहिए।

कांप 28 में सामिल देशों को चाहिए कि वो बारूदों का उत्पादन के साथ उनके उपयोग पर भी प्रतिबंध लगाएं। वर्तमान में गाजा में इजरायल हमास की जंग में इजरायल फिलिस्तीन द्वारा किए गए मिशाइलों  के प्रयोग से जो वहां प्रदुषण फैला है वह क्षेत्र विशेष तक सिमट कर नहीं रही सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित कर रही है जो प्रतिबंध योग्य है सभी देशों को सोचने को बाध्य होना चाहिए साथ ही जो कार्य समझौतों से हों सके वहां मुद्दों की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।

 हमें पर्यावरणीय ख़तरों से ऊपर उठकर ठोस कदम उठाने चाहिए ओर इसके लिए विचारधाराओं में बदलाव लाना होगा, परिभाषाएं बदलनी होगी, संविधानिक ठोस कदम उठाने होंगे, सामाजिक व्यक्तिगत सोच बदलनी होगी, पर्यावरणीय ख़तरों से निजात पाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति समाज राष्ट्र को समर्पित होकर संरक्षण के कार्य करने होंगे। हमें चाहिए की किसी भी प्रकार के वे क़दम नहीं उठाए जिनसे हमारे प्रकृति प्रदत्त संसाधनों को हानी होती हों। यदि सभी राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक समान विचारधारा से सहमत होकर संरक्षण में जुटेंगे तब ही हम व हमारी धरती बच सकेंगी, जैसा मेरा मानना है। (लेखक  अध्ययन एवं अपने निजी विचार है।)