व्यंग्य : पुंगनूर के घी में बादाम का हलवा : रमेश जोशी
लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com

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आज तोताराम की सजधज और वेशभूषा अद्भुत थी। चलता फिरता त्रेता युग हो रहा था। हो सकता है त्रेता में भी इस कदर प्रतीकों की अति नहीं हुई होगी।माथे पर भगवा पटका, कलाइयों पर तरह तरह के कलावे, आँखों में एक आक्रामक चमक। हम 1947 से ही ‘कल्याण’ और धर्मयुग जैसी कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में छपे राज्य रवि वर्मा और मुलगांवकर के धार्मिक चित्रों के देखते आ रहे हैं लेकिन कहीं ऐसा हाल नहीं था। राम की 18 पद्म अर्थात 18 ट्रिलियन बंदरों की सेना में किसी बंदर को ऐसी यूनिफ़ॉर्म में नहीं देखा। 18 ट्रिलियन तो बंदर ही थे। पदम अठारह जूथप बंदर और भालू अलग।

तो तोताराम एक तूफान की तरह दाखिल हुआ। गीत भी गा रहा था- राम आएंगे, राम आएंगे। हमने कहा- भक्त, अब तो राम आ चुके, स्थापित भी हो गए ।राम लला की करोड़ों वर्ष पुराने काले पत्थर से कर्नाटक के अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई मूर्ति के कंप्यूटर से बनाए गए फेक और अंधविश्वास फैलाने वाले वीडियो भी वाइरल किये जाने लगे हैं जिनमें रामलला आँखें झपका रहे हैं, मुस्कुरा रहे हैं । अब इस ‘आएंगे, आएंगे’ गाने की क्या प्रासंगिकता है ?

बोला- एक बार 2024 के चुनाव में 400 सीटें आ जाने दे। उसके बाद इस गाने को एक शब्द बदल कर फिर काम में ले लेंगे। शिव आएंगे, आएंगे, शिव आएंगे ‘ कर देंगे। ए एस आई वालों ने बताया ही दिया है कि ज्ञानवापी के नीचे मंदिर के अवशेष और शिलालेख मिले हैं। उसके बाद 2029 में इसीमें थोड़ा चेंज करके- ‘कृष्ण आएंगे आएंगे, कृष्ण आएंगे’ कर लेंगे। ये सब शाश्वत गीत हैं । कभी पुराने और अप्रासंगिक नहीं होते। जैसे- जय लक्ष्मी माता की तरह जब चाहे ‘जय शीतला माता या जय संतोषी माता’ कर ‘टू मिनट नूडल्स’ की तरह एक नई आरती तैयार । ऐसे ही जैसे ‘जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा’ की जगह ‘जय नरेंद्र, जय नरेंद्र जय नरेंद्र देवा’ किया जा सकता है।

हमने कहा- उसके बाद? बोला- 33 करोड़ देवी देवता हैं। अनंत काल तक चलेगा। और जब वे भी निबट जाएंगे तब ‘राम आ गए, राम आ गए’ कर देंगे। हमने तोताराम के आगे झुकते हुए कहा- धन्य हो, हे आदि और अनंत कवि ! हमारा प्रणाम स्वीकार करो। बोला- भाई साहब अनुज को प्रणाम करके मुझे क्यों पाप का भागी बनाते हैं।

हमने कहा- तोताराम, वयोवृद्ध ही नहीं, ज्ञानवृद्ध भी आदरणीय होता है । तुम ज्ञानवृद्ध हो, यह तुम्हारे आज के विश्लेषण से सिद्ध हो गया है । अब अपना प्रयोजन बताओ क्योंकि कोई भी वेश बिना किसी प्रयोजन के यूं तरह तरह से न तो धारण किया जाता है और न ही बदला जाता है । यह भेष की कमाई खाने का युग है । वैसे हमारे यहाँ इंसानों की नहीं, भेष की ही पूजा होती है । उसी से आदमियों को पहचाना जाता है । तभी तो ‘जोगी मन नहीं, कपड़े रँगवाते’ थे। ‘मन न रँगाए, रँगाये जोगी कपड़ा ‘-कबी ।

हम तेरी प्रतिभा से प्रसन्न हुए, तोताराम। अब तू अपने इस वेश का प्रयोजन बता ।हम प्रतिज्ञा करते हैं कि उसे पूर्ण करेंगे। बोला- तो फिर याद रखना और नीतीश कुमार की तरह पलट मत जाना। सुन, कुछ नहीं, बस, चाय के साथ आंध्र प्रदेश के एक गाँव पुंगनूर के नाम पर विकसित की गई ‘पुंगनूर’ गाय के घी में बना हलवा और उसके साथ उसी गाय के घी में फ्राई किये गए एक प्लेट वे मशरूम जो मोदी जी खाते हैं। हमने कहा- तोताराम, तू बावला सा दिखाई देता है लेकिन बावला है नहीं। बहुत देव-दुर्लभ नाश्ता मांग लिया। चल, किसी तरह सौ ग्राम बादाम और 40 हजार रुपए किलो के मोदी जी वाले 20 ग्राम मशरूम ले भी आएंगे लेकिन ‘पुंगनूर’ गाय का घी!

इस देश में पार्टी के अनुशासित सिपाहियों का ही पता नहीं तो गायों की पवित्र और दुर्लभ नस्लों का क्या हिसाब रखें । भारतीय और अमरीकी गायों में अमरीका के सांडों के वीर्य से जो बछड़े-बछड़ियाँ पैदा हो रहे हैं उनका कुछ भी पता नहीं लगता कि यह क्या जन्तु है । वैसे ही जैसे नीतीश कुमार, ओमप्रकाश राजभर, शुभेन्दु अधिकारी, हेमंत बिसवा, एकनाथ शिंदे, चिराग पासवान आदि का पता ही नहीं चलता कि ये किस राजनीतिक विचारधारा की उपज हैं। पानी रे पानी तेरा रंग कैसा वाला मामला है । स्वार्थ के लिए किसी भी रंग के पात्र में डुबकी लगा लेते हैं।

हमने तो इस गाय का नाम ही अब मोदी जी के गौ सेवा के प्रसंग में सुना है। हाँ, इससे पहले अमरीका के मिसीसिपी में विकसित एक साढ़े चार किलो की किसी बड़ी बिल्ली के आकार की गाय का समाचार जरूर पढ़ा था। जहां तक हलवे की बात है तो कल शाम निकल पड़ेंगे। कहीं न कहीं किसी मंदिर में पौष बड़ा का हलवा-पकौड़ी पेल आएंगे। या फिर दिल्ली निकल लेंगे । वहाँ भी तो बजट का हलवा तैयार हो रहा है। वित्तमंत्री सीतारामन की ‘सीता-रसोई’ में।

बोला- वह सामान्य हलवा नहीं है । यह विश्वगुरु की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बजट का हलवा है। पता नहीं कब, पाँच ट्रिलियन से दस-बीस ट्रिलियन की हो जाए। पाँच ट्रिलियन की होकर ब्रिटेन को तो पीछे छोड़ ही चुके हैं हम। मोदी जी जैसा नेतृत्व और सीतारामन जैसा वित्त मंत्री कब कब किसी देश को मिलता है। हमने कहा- ब्रिटेन की जनसंख्या 7 करोड़ है और भारत की 140 करोड़। बीस गुना का अंतर है। जब हमारी अर्थव्यवस्था 100 ट्रिलियन की हो जाएगी तब वास्तव में ब्रिटेन के बराबर होगी। लेकिन बात तो ‘पुंगनूर’ के घी की है।

बोला- मोदी जी से संपर्क कर ले। क्या पता, थोड़ा बहुत दे दें । वैसे मैंने एक फ्रांसीसी लेखक द्वारा लिखी गई मोदी जी की जीवनी के बारे में पढ़ा था कि मोदी जी घी, नमक और चीनी नहीं खाते। हमने कहा- खुद घी नहीं खाते तो क्या हमें बांटने के लिए है? क्या इस संतोषी, अपरिग्रही और धर्मप्राण जनता के लिए पाँच किलो राशन कम है? तुझे कौन सा विश्वका नेतृत्व करना है, कौन सा 140 करोड़ भारतीयों का भार उठाना है जो ‘पुंगनूर गाय के घी में बादाम का हलवा चाहिए? अभी तो मोदी जी देश के साथ राममय हैं। जो थोड़ा बहुत घी तैयार होगा उससे मंदिर के गर्भगृह में दीया जलाएंगे। 2024 में 400 सीटें आ जाने के बाद शिव और कृष्ण के मंदिर निर्माण और प्राणप्रतिष्ठा के प्रोजेक्ट शुरू हो जाएंगे । ‘मोदी-मशरूम’ और ‘पुंगनूर’ गाय के घी में बादाम का हलवा चाहिए तो ‘अच्छे दिन’ का इंतजार कर।

इस समय तो केवल चाय उपलब्ध है। बोला- कोई बात नहीं, चाय ही ले आ। पुंगनूर गाय के घी में बादाम का हलवा तो सीतारामन के साथ घाटे का बजट बनाने वाले वित्त विभाग के उच्चाधिकारी और राममंदिर की प्राणप्रतिष्ठा में सम्मिलित होने वाले प्रतिष्ठित लोग खाएंगे। हमारी किस्मत में तो 15 लाख के जुमले और यह सड़ियल चाय है। ले आ, चाय ही ले आ । क्या पता, कहीं चुनाव जीत जाने के बाद ‘मामा’ की लाड़ली बहनों की पेंशन की तरह खटाई में पड़ जाए। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)