रामलला की मूर्ति का गौरव मिला मैसूरू के मूर्तिकार अरुण योगिराज को
लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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कर्नाटक के ऐतिहासिक नगर मैसूरू के एक पुराने मोहल्ले में कश्यप शिल्पकला केंद्र एक ऐसा भवन है जहाँ के निवासी पिछली पांच पीढ़ियों से पत्थर से   मूर्तियों का निर्माण करते आ रहे है। इस परिवार ने न केवल मैसुरु के पूर्व राजघराने के पत्थर और संगमरमर की मूर्तियाँ बनाई है बल्कि प्रदेश के कई  हिन्दू मंदिरों में इस परिवार दवारा बनाई गई मूर्तियाँ स्थापित हैं। यह मकान न केवल इस परिवार का निवास स्थान है बल्कि इसी में मूर्तियाँ बनाने की कार्यशाला भी है। 

इसी परिवार की पांचवी पीढ़ी से आने वाले लगभग 40 वर्षीय योगीराज शिल्पी ने इन्जीनीरिंग की पढाई कर एक बड़ी कॉर्पोरेट कम्पनी में नौकरी शुरू की। चूँकि इस युवक ने बचपन से ही अपने घर के पिछवाड़े में बनी कार्यशाला में अपने पिता और दादा को पत्थर की मूर्तियाँ तराशते देखा था इसलिए उसके दिल में तब से ही कलाकार पैदा हो गया था। अखिकार उसने लगभग 15 वर्ष पूर्व अच्छी खासी नौकरी छोड मूर्तियाँ बनाने की परिवार की परम्परा को आगे बढ़ने  का निर्णय किया। वे अब तक एक हज़ार से भी अधिक मूर्तियाँ बना चुके। कई मूर्तियाँ तो देश के प्रमुख स्थानों पर देखी जा सकती है। 

पहली बार उनका नाम तब सुर्ख़ियों में आया जब कुछ वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केदारनाथ में इस शिल्पकार द्वारा बनाई गई आदि शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया। 12 ऊंची यह  मूर्ति काले पत्थर से बनाई गई थी। उस समय कई शिल्पकारों से शंकराचार्य की मूर्ति का प्रारूप बनवा गया था। आखिर में अरुण योगीराज द्वारा बनाये गए प्रारूप को स्वीकार किया था। तब नरेंद्र मोदी ने इस प्रारूप को बहुत सराहा था तथा इस मूर्तिकार को मिलने के लिए भी बुलाया था। 

इसी प्रकार पिछले साल नई दिल्ली के इंडिया गेट के पास खाली पड़ी छत्री में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की विशाल प्रतिमा लगाने का निर्णय किया गया तो  कई कलाकारों से प्रारूप आमंत्रित किये गए थे। यह प्रतिमा 28 फुट ऊंची तथा काले पत्थर से बननी थी। इस प्रतियोगिता में भी अरुण योगीराज को ही मूर्ति बनाने के लिए चुना गया। उन्होंने इस प्रतिमा के निर्माण के लिए दिल्ली में कार्यशाला स्थापित की और कर्नाटक से काला पत्थर लाकर नेताजी के प्रतिमा को रिकॉर्ड समय में पूरा किया। 

इसी प्रकार अयोध्या में जब जन्म स्थान पर बने रहे रामलला के मंदिर में उनकी बाल अवस्था की मूर्ति बनाने के लिए देश के मूर्तिकारों को इसका प्रारूप  तैयार करने को कहा गया। इसमें बहुत से प्रारूप आये लेकिन मंदिर निर्माण समिति ने इनमें से तीन को चुना। तीनो प्रारूप इतने सुंदर और आकृषित थे कि चयन समिति इस दुविधा में थी कि इनमें से किस का चयन किया जाये। आखिर में यह तय हुआ कि तीनों शिल्पकारों से मूर्तियाँ बनवाई जाएँ। जब ये मूर्तियाँ तैयार हो जाएँगी तब निर्णय किया जायेगा कि इनमें से किसकी प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी। 

इन तीन शिल्पकारों में एक अरुण योगिराज भी था। यह मूर्तियां 51ईंच ऊंची तथा पांच वर्ष के बाल्यकाल की बननी थी। मूर्तियाँ पिछले महीने तैयार हो गई थीं। मूर्ति का चयन करने वाली समिति ने इन तीनों मूर्तियों का निरीक्षण किया तथा अरुण योगीराज की मूर्ति का चयन किया। हालांकि अभी इसकी औपचारिक घोषणा होनी है लेकिन यह साफ हो गया है कि  अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई मूर्ति का चयन हो गया है। इसको लेकर कर्नाटक और विशेषकर मैसूरू में जश्न का माहौल है। न केवल स्थानीय बल्कि अन्य स्थानों से प्रशंसक उनके परिवार के सदस्यों को बधाई दे रहे है। खुद अरुण योगीराज अभी अयोध्या में हैं तथा मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही लौटेंगे। 

उन्होंने मूर्ति तराशने का काम अयोध्या में 6 महीने पहले शुरू किया था। उन्होंने इसके लिए कृष्णशिला को चुना था जो कर्नाटक के कुछ इलाकों में पाई जाती है। उनके परिवार के सदस्यों का कहना है कि जब से उन्होंने मूर्ति तराशने का काम शुरू किया है तब से वे एक बार भी घर नहीं आये है। वे पूरे श्रद्धा भाव से मूर्ति के निर्माण करने में लगे रहे। मूर्ति तराशने का काम नित्य पूजा किये जाने के बाद शुरू होता था जो दिन भर चलता रहता था। उनकी पत्नी  विजयेता  का कहना है कि बीच बीच वे मूर्ति के निर्माण में होने वाली प्रगति के बारे में भी बताते रहते थे। अरुण योगीराज को मंदिर ट्रस्ट की ओर से प्राण प्रतिष्ठा में भाग लेने के लिए विधिवत रूप से आमंत्रित किया गया है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)