COP28 : कुछ कदमों की प्रगति, लेकिन जरूरत बड़ी छलांग की

निशांत की रिपोर्ट 

लखनऊ (यूपी) से 

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दुबई में सम्पन्न हुई COP28 अब तक के अपने इतिहास की सबसे बड़ी जलवायु वार्ता के रूप में याद की जाएगी. इतना ही नहीं, इस सम्मेलन को और भी तमाम वजहों से याद किया जाएगा और इन सभी वजहों के मिश्रित प्रभाव से यह COP एक ऐतिहासिक सम्मेलन बनता दिख रहा है. इस महत्वपूर्ण सम्मेलन के परिणामों का विश्लेषण करना न सिर्फ एक उत्साहवर्धक अनुभव लगता है, बल्कि वो चिंताएँ भी जगाता है.

अगर इस सम्मेलन के मुख्य नतीजों पर नज़र डालें तो वो कुछ यूं दिखाई देंगे:

लॉस एंड डेमेज: एक शानदार समझौता

COP28 की असाधारण उपलब्धियों में से एक रहा लॉस एंड डेमेज पर हुआ एक अभूतपूर्व समझौता है. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का कठोर खामियाजा भुगत रहे कमजोर राष्ट्रों ने राष्ट्रीय प्रतिक्रिया योजनाओं, जलवायु सूचना वृद्धि और विस्थापन के मामलों में सम्मानजनक मानव गतिशीलता सुनिश्चित करने के लिए इसके जरिये समर्थन प्राप्त किया. इस फंड को फिलहाल विश्व बैंक द्वारा प्रबंधित एक बोर्ड संचलित करेगा. धनी देशों ने पहले ही $650 मिलियन से अधिक देने का वादा किया है, जो जलवायु परिवर्तन की वास्तविक लागतों को संबोधित करने की प्रतिबद्धता का संकेत है। 

क्लाइमेट फ़ाइनेंस के लक्ष्य: प्रगति हुई, लेकिन आवश्यकता और की है

COP28 ने विकासशील देशों में जलवायु शमन और अनुकूलन के लिए विकसित देशों द्वारा दिए गए 100 बिलियन डॉलर से अधिक के एक नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) को आकार देने में प्रगति की है. हालाँकि, मूल लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है, और प्रगति सही रास्ते पर होने के बावजूद यह आवश्यक से कम है. COP29 से पहले 2025 के बाद के वित्त लक्ष्य का मसौदा तैयार करने की प्रतिबद्धता एक सकारात्मक कदम है, लेकिन असलियत तो विवरण की बारीकियों में छिपी है, जो अगले साल सामने आएगी।

अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य: प्रयासों को बढ़ाना

COP27 से आगे बढ़ते हुए, COP28 ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल रणनीतियों का समर्थन करने पर जोर दिया. समझौते में अंततः जल सुरक्षा, पारिस्थितिकी तंत्र बहाली और स्वास्थ्य के लिए साल 2030 तक के स्पष्ट लक्ष्यों के साथ अनुकूलन वित्त को दोगुना करने का आह्वान शामिल है. लेकिन यहाँ चिंताएँ भी पैदा होती हैं क्योंकि अनुकूलन वित्त की कमी के अंतर को पाटने की भाषा इस समझौते में कमजोर हो गई है. ऐसी उम्मीद है कि COP29 में वित्तपोषण के मामले में महत्वपूर्ण विवरण सामने आ पाएंगे।

वैश्विक स्टॉकटेक और फोस्सिल फ्यूल: एक मिश्रित अनुभव

ग्लोबल स्टॉकटेक को COP28 में गहन जांच का सामना करना पड़ा. जहां एक ओर अंतिम मसौदे में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य के साथ एमिशन में कटौती को संरेखित करने की बात में सुधार किए गए, वहीं कुछ चिंताजनक भाषा ने फिर भी अंतिम मसौदे में अपना रास्ता खोज लिया. फ़ोसिल फ्यूल को "चरणबद्ध" तरीके से हटाने के बजाय उससे "दूरी" बनाने कि बात और "ट्रांज़िशन फ्यूल" का उल्लेख एक क्लीन एनेर्जी भविष्य के प्रति प्रतिबद्धता पर सवाल उठाता है।

कार्बन बाज़ार: अनसुलझे मुद्दे

COP28 में कार्बन बाज़ारों पर चर्चा किसी समझौते पर पहुंचने में विफल रही, जिससे पर्यवेक्षण और क्रेडिट के लेखांकन के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न अनसुने रह गए. यह विफलता मजबूत कार्बन बाजार स्थापित करने के प्रयासों में बाधा डालता है. यह बाज़ार एमिशन में कमी के लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण तत्व होते हैं।

न्यायसंगत एनर्जी ट्रांज़िशन और प्रकृति

COP के अंतिम समझौते में न्यायसंगत एनर्जी ट्रांज़िशन के महत्व पर प्रकाश डाला गया और जलवायु लक्ष्यों में प्रकृति की भूमिका को मान्यता दी गई है।  लेकिन फिलहाल इस संदर्भ में न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन का स्तर और प्रकृति-सकारात्मकता दायित्वों को परिभाषित करने के लिए और काम करने की आवश्यकता होगी। इस सब में साल 2030 का वनों की कटाई का लक्ष्य समझौतों के साथ एक सकारात्मक संकेत जोड़ता है। 

चलते चलते

दुबई ने इतिहास के सबसे बड़े सीओपी की लॉजिस्टिक चुनौतियों को प्रभावी ढंग से निपटा लिया, नुकसान और क्षतिपूर्ति के फंड की शक्ल में एक ऐतिहासिक समझौते और फोस्सिल फ्यूल से दूर जाने की प्रतिबद्धता हासिल की. हालाँकि, अगर बड़ी तस्वीर को देखा जाए तो इस समझौते में हासिल सफलताएँ छोटे कदमों के तौर पर दिखाई देती हैं, जबकि ज़रूरत बड़ी छलांग की लगती है। फिलहाल हम इतिहास के सबसे गर्म साल से गुज़र रहे हैं, और ऐसे में सवाल बना हुआ है कि क्या ये छोटे कदम जलवायु संकट से निपटने के लिए पर्याप्त हैं, या क्या हमें एक बड़ी छलांग लगाने की ज़रूरत है? जवाब COP29 में शायद मिल सकते हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)