राजनैतिक दल लोकतंत्र के ठेकेदार बन गए हैं : डॉ. सोनगरा

 लोकतंत्र में मूल्यों का पराभव विषयक संगोष्ठी

www.daylife.page 

जयपुर। प्रबुद्धजनों की संस्था मुक्तमंच की 76वीं संगोष्ठी ‘‘लोकतंत्र में मूल्यों का पराभव‘‘  विषय पर हुई। मनीषी विद्वान डॉ. नरेन्द्र शर्मा ‘कुसुम‘ की अध्यक्षता में हुई संगोष्ठी के मुख्य अतिथि, प्रखर चिंतक अरूण कुमार ओझा आईएएस (रि.) थे। इसका संयोजन शब्द संसार के अध्यक्ष श्री श्रीकृष्ण शर्मा ने किया।

मुख्य अतिथि अरुण ओझा ने कहा कि राजनैतिक दल चुनाव पूर्व अपने संकल्प पत्रों में लोकलुभावन घोषणाओं के साथ गारन्टी के आश्वासन देते हैं और चुनाव बाद उन्हें जुमला बता दिया जाता है। जनप्रतिनिधियों में नेतृत्व क्षमता का अभाव है। गांधीजी जैसी नेतृत्व क्षमता दिखाई नहीं देती।

संगोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र शर्मा कुसुम ने कहाकि मतदाता जागरूक नहीं हैं जिससे लोकतंत्र के सभी सपने, आकाक्षांएं, अपेक्षाएं धूल धुसरित हो जाती हैं। ऐसे में समाज के प्रबुद्धवर्ग को सशक्त राज्य इच्छा शक्ति पैदा करने की जरूरत है। वे समाज के पहरुए बनें।

चिंतक और इंजीनियर दामोदर चिरानिया ने कहा कि जनप्रतिनिधियों को जनता की उन्नति के साथ सुशासन देना चाहिए। उनके निर्णयों में पारदर्शिता, जवाबदेही और कार्यों में निष्पक्षता होनी चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि हम दल के प्रतिनिधि को ही अपना प्रतिनिधि नहीं बनाएं।

पूर्व बैंकर इन्द्र भंसाली ने कहा कि सत्ता प्राप्ति के लिए राजनेता झूठ, फरेब, छल-कपट का ही सहारा नहीं लेते अपितु तरह-तरह के प्रलोभन देकर मत प्राप्त करते हैं। इससे राष्ट्रीय एकता, अखण्डता और धर्म निरपेक्षता के प्रति निष्ठा प्रभावित होती है। इससे देश लक्ष्य से भटक जाता है। डॉ. मंगल सोनगरा ने कहा कि कहने को हमने लोकतंत्र और शासन विधि को अपनाया है किन्तु उसमें लोक लुप्त हो गया है। राजनैतिक दल लोकतंत्र के ठेकेदार बन गए हैं।

आईएएस (रि.) रामस्वरूप जाखड़ ने कहा कि सेवाओं की गुणवत्ताहीनता, कानून की अवहेलना और आपराधिक जांचों में पक्षपातपूर्ण हस्तक्षेप से लोकतांत्रिक मूल्यों का पराभव हो रहा है। शिक्षाविद् प्रो. आरपी गर्ग ने कहाकि आज लोकतंत्रात्मक प्रणाली तानाशाही में बदल रही है। नोटबंदी, कालाधन और जीएसटी इसके उदाहरण हैं। देश में एक कर प्रणाली लागू होनी चाहिए। लोकतांत्रिक मूल्यों की कद्र की जानी चाहिए। आईएएस (रि.) आरसी जैन ने कहा कि ओपीएस, फ्रीबीज के कारण सरकारों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है।

प्रगतिशील विचारक-पत्रकार सुधांशु मिश्र ने कहा कि हमने लोकतंत्र प्रणाली को तो अपना लिया लेकिन आत्मा तो सामंती विचारों में जकड़ी हुई है। लोकतंत्र में लोक का महत्व होना चाहिए लेकिन आचरण इसके विपरीत है। जनप्रतिनिधियों को ऐसे विभागों का दायित्व दिया जाता है जिसके बारे में उनको ज्ञान नहीं होता। नीतियों का निर्धारण कोरपोरेट घरानों की इच्छानुसार होता है।

संगोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार फारूक आफरीदी, आईएएस विष्णुलाल शर्मा, मीडियाकर्मी सुमनेश अंशुमान शर्मा, अनिल यादव, वित्त विशेषज्ञ आरके शर्मा ने कहा कि लोकतंत्र को बचाना है तो सुयोग्य जनप्रतिनिधि चुनें। कवि कल्याणसिंह शेखावत ने अपनी कविताओं के माध्यम से स्वस्थ लोकतंत्र की महता बताई।

प्रारम्भ में संगोष्ठी के संयोजक श्री श्रीकृष्ण शर्मा ने विषय का परावर्तन करते हुए कहा कि हमें देश हित में लोकतंत्र की गरिमा और राष्ट्रीय एकता को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। समानता और बंधुत्व के साथ सर्वधर्म समभाव की समृद्ध परम्परा को सुनिश्चित करना होगा।