हमें देश के विकास के लिए स्वतन्त्र चिन्तन करना चाहिए

जागो फिर एक बार


लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 

पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान

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जागो ग्राहक जागो यह उद्घोष क्यों दिया जाता है? यह इसलिए दिया जाता है कि ग्राहक अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो जायें। जागो फिर एक बार यह नारा इसलिए दिया गया हैं कि व्यक्ति पुरुषार्थी बने। यदि वांछित फल न मिले तो उदास नहीं होना चाहिए। पुरुषार्थ बीज बोने का समय है। गेहूं की खेती करनी है तो गेहूं का बीज हमको बोना चाहिए। यदि धान की खेती करनी है तो धान का बीज बोना चाहिए। पुरुषार्थ के द्वारा यह कार्य किया जाता है। बीज बोना हमारा कर्त्तव्य है उसका फल प्राप्त करना हमारे हाथ में नहीं है। आज के परिदृश्य में व्यक्ति की दिनचर्या ठीक नहीं है। खाने-पीने, सोने का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है। दिनचर्या नियमित होनी चाहिए। चरैवेति-चरैवेति को अपना लक्ष्य बनाना चाहिए। 

अपनी चेतना को विकसित करना चाहिए। देश के हित में चिन्तन करना चाहिए। चेतना जागृत रहे और देश के विकास के लिए स्वतन्त्र चिन्तन करना चाहिए। जागने का अर्थ हैं चेतना का विकास। जब किसी देश के नागरिक जागृत हो जाते हैं तो देश का विकास होता है। यदि नागरिक सो जाते हैं तो देश का भाग्य सो जाता है। जीवन का जितना समय बचा है उसका सदुपयोग करना चाहिए। पुरुषार्थ सही दिशा में होना चाहिए। सही दिशा में किया गया पुरुषार्थ लक्ष्य की प्राप्ति करा देता है। महापुरुषों का कर्त्तव्य है देश के नागरिकों को जगाना, देश को सही मार्ग पर ले जाना। पुनरुत्थान कार्यक्रम पतन से उत्थान की और ले जाने वाला एक ऐसा कार्यक्रम है जो नागरिकों को सद्बोध देता है और राष्ट्रहित में चिन्तन करने के लिए प्रेरित करता है। 

जिस समय भारत परतन्त्र था उस समय देश के महापुरुषों, कवियों, लेखकों ने देश के नागरिकों को जगाने के लिए साहित्य को माध्यम बनाया। पण्डित सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ने ‘‘जागो फिर एक बार’’ कविता के माध्यम से देशवासियों को अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति करने के लिए प्रेरित किया। जिसका परिणाम यह रहा कि लोगों में चेतना की जागृृृति हुई और उन्होंने अंग्रेजी राज्य को उखाड़ फंेका। इसी प्रकार भारतेन्दु हरिशचन्द्र, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जैसे राष्ट्रवादी कवियों ने भारतीय चेतना को जगाने वाली कविता लिखकर अंग्रेजों को भागने के लिए मजबूर कर दिया। जागो फिर एक बार यह शीर्षक प्रेरणा देने वाला और मानव को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने वाला विषय है।

भारतीय संस्कृति का मूलपरक सूत्र है- जागो फिर एक बार। जागो फिर एक बार का अर्थ है चलते रहो, चलते रहो, प्रयत्न करते रहो। जल यदि एक स्थान पर स्थित रहता है तो उसमें बदबू आने लगती है परन्तु यदि जल बहता रहता है तो उसमें शुद्धता, निर्मलता और सुन्दरता बनी रहती है। प्रकृति हमें यह शिक्षा देती है कि सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए। एक चींटी दीवाल पर बार-बार चढती है और गिरती है किन्तु वह हार नहीं मानती। वह बराबर प्रयास करती रहती है और दीवाल पर चढ़कर अपने मंजिल को प्राप्त कर लेती है। प्रयत्न करने से मनुष्य को पीछे नहीं हटना चाहिए। मुख्य रूप से यह सूत्र विद्यार्थियों पर अधिक लागू होता है। विद्यार्थी को अपने मंजिल को प्राप्त करने के लिए दूरदृष्टि और पक्का इरादा रखना चाहिए। असफलता से कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। 

असफलता को जीतने का प्रयास करना चाहिए। जो व्यक्ति हार मानकरके रुक जाता है उसका भाग्य भी वहीं रुक जाता है। भाग्य के भरोसे बैठकर कभी भी रुकना नहीं चाहिए। संसार में जितने भी महापुरुष हुये हैं, उन्होंने यह सूत्र अपने जीवन में लागू किया। इसी का परिणाम है कि वे महान् कहलाये। जितने भी महान्् लोग हुए हैं बचपन में उन्हें घोर कष्ट का सामना करना पड़ा है लेकिन उन्होंने कष्टों के सामने हार नहीं मानी, बल्कि कष्टों पर विजय प्राप्त की। भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी का जीवन भी इस संबंध में अवलोकनीय है। जीवन के प्रारंभिक समय में उन्हें कैसी-कैसी आपदाओं का सामना करना पड़ा यह भारतीय लोगों से छिपी नहीं है। वह स्वयं भी बहुत बड़़े कर्मयोगी है। एक छोटे से गरीब परिवार में उत्पन्न होकर भारत जैसे देश के प्रधानमंत्री पद को अलंकृत किया है, यह उनकी जागरुकता का सबसे बड़ा उदाहरण है। उनके द्वारा जीवन क्षेत्र में किया गया पुरुषार्थ उनके मार्ग को प्रशस्त किया है। उन्होंने कठिनाईयों को कभी अपने ऊपर भारी नहीं होने दिया बल्कि कठिनाईयों को जीतकर उस पर विजय प्राप्त की। 

जीवन में आगे बढ़ने के लिए पुरुषार्थ बहुत आवश्यक है। लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समयबद्ध प्रयास होना जरूरी है। समय-समय पर कार्य की समीक्षा भी करते रहना चाहिए। आज का युग प्रतिस्पर्धा का युग है। विज्ञान अथवा तकनीकी क्षेत्र में मनुष्य ने अभूतपूर्व उन्नति की है, परन्तु बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जिन्हें जीवन में वांछित वस्तुएं प्राप्त होती हैं अथवा अपने जीवन से वे संतुष्ट होते हैं। हममे से अधिकांश लोग जिने मनवांछित वस्तुएं प्राप्त नहीं होती हैं वे स्वयं की कमियों को देखने के बजाय भाग्य को दोष देकर मुक्त हो जाते हैं। भाग्य भी उन्हीं का साथ देता है जो स्वयं पर विश्वास करते हैं। जो अपने पुरुषार्थ के द्वारा अपनी कामनाओं की पूर्ति पर आस्था रखते हैं, वही व्यक्ति जीवन में सफलता के मार्ग पर अग्रसित होता है। पुरुषार्थी अथवा कर्म पर विश्वास करने वाला व्यक्ति जीवन में आने वाली बाधाओं और समस्याओं को जीतकर उस पर विजय प्राप्त करता है और राष्ट्र को आगे बढ़ाता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)