बाबा साहब ने भारत के प्रत्येक व्यक्ति के लिए समानता, न्याय, भाईचारा, स्नेह, करुणा और शांति की भावना के साथ महात्मा बुद्ध, संत कबीर दास और महामना ज्योतिबा फुले की विचारधारा को लागू किया
लेखक : डॉ कमलेश मीना
सहायक क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।
एक शिक्षाविद्, शिक्षक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।
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बाबा साहब कभी भी किसी के खिलाफ नहीं थे, लेकिन दुर्भाग्य से उस समय मीडिया ने उन्हें पूरा ध्यान और सम्मान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे और जानबूझकर, साजिश के तहत और गलत तरीके से उन्हें एक या दो विशेष समुदाय का नेता प्रस्तुत किया गया, लेकिन यह पूरी तरह से दुर्भावनापूर्ण था। उस समय मीडिया, तथाकथित बुद्धिजीवियों और प्रभुत्वशाली व्यक्तियों द्वारा किया गया कदाचार और गलत व्याख्या थी। मूल रूप से वह जनता और हर उस व्यक्ति के नेता थे जो उस समय की सामाजिक संरचना में किसी भी प्रकार के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक, धार्मिक भेदभाव से पीड़ित थे।
भारतीय संविधान के जनक, डॉ. बीआर अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस, 6 दिसंबर को मनाया जाता है। वह एक भारतीय न्यायविद, अर्थशास्त्री, समाज सुधारक और राजनीतिक व्यक्ति थे, जिन्होंने संविधान सभा में चर्चा से भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। डॉ. बाबा साहब भीम राव अंबेडकर ने जवाहरलाल नेहरू की पहली कैबिनेट में कानून और न्याय मंत्री का पद संभाला और हिंदू धर्म त्यागने के बाद, दलित बौद्ध आंदोलन के लिए प्रेरणा के रूप में कार्य किया। बाबा साहब ने जीवन भर छुआछूत प्रथा के विरुद्ध संघर्ष किया। भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न, मरणोपरांत दिया गया।
डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने सभी के साथ सच्चाई से व्यवहार करने का मार्ग दिया और गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदाय को संवैधानिक अधिकारों और संविधान के निदेशक सिद्धांतों के माध्यम से लोकतंत्र में न्याय दिलाने की वकालत की। उन्होंने अपने बौद्धिक नेतृत्व और दूरदर्शी विचारों से सभी वंचितों, हाशिये पर पड़े लोगों, गरीबों, महिलाओं, किसानों और श्रमिक समुदायों के लिए लड़ाई लड़ी। परिनिर्वाण की स्थिति बौद्ध धर्म की मूलभूत अवधारणाओं में से एक है। यह एक ऐसे व्यक्ति को दर्शाता है जिसने अपने जीवन के दौरान और निधन के बाद निर्वाण या स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है। मृत्यु के बाद निर्वाण प्राप्त करना, या मृत्यु के बाद शरीर से आत्मा की मुक्ति को संस्कृत में परिनिर्वाण कहा जाता है। 6 दिसंबर को बाबासाहेब अम्बेडकर के समाज में अमूल्य योगदान का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। छुआछूत के खिलाफ बीआर अंबेडकर की लड़ाई भारत के लिए उनका सबसे बड़ा योगदान है।
भारत 6 दिसंबर को डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की याद में महापरिनिर्वाण दिवस मनाता है। 14 अप्रैल 1891 को भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाले बाबासाहेब अंबेडकर, जिन्हें संविधान के जनक के रूप में भी जाना जाता है, का जन्म हुआ था। बाबासाहेब के नाम से मशहूर, उन्होंने छुआछूत की सामाजिक बुराई को खत्म करने, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और देश भर में दलितों के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए काम करने के लिए लड़ाई लड़ी। वह आज़ादी के बाद भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति के सात सदस्यों में से एक थे।
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू में सूबेदार रामजी शकपाल एवं भीमाबाई की चौदहवीं संतान के रूप में हुआ था। उनके व्यक्तित्व में स्मरण शक्ति की प्रखरता, बुद्धिमत्ता, ईमानदारी, सच्चाई, नियमितता, दृढ़ता थी। उनकी यही अद्वितीय प्रतिभा अनुकरणीय है। वे एक मनीषी, योद्धा, नायक, विद्वान, दार्शनिक, वैज्ञानिक, समाजसेवी एवं धैर्यवान व्यक्तित्व के धनी थे। वे अनन्य कोटि के नेता थे, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र भारत की कल्याण कामना में उत्सर्ग कर दिया। खासकर भारत के 80 फीसदी दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. अंबेडकर का जीवन संकल्प था। संयोगवश भीमराव सातारा गांव के एक ब्राह्मण शिक्षक को बेहद पसंद आए। वे अत्याचार और लांछन की तेज धूप में टुकड़ा भर बादल की तरह भीम के लिए मां के आंचल की छांव बन गए।
बाबा साहब ने कहा- वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहीन करना होगा। समाजवाद के बिना दलित-मेहनती इंसानों की आर्थिक मुक्ति संभव नहीं। डॉ. अंबेडकर की रणभेरी गूंज उठी, 'समाज को श्रेणीविहीन और वर्णविहीन करना होगा क्योंकि श्रेणी ने इंसान को दरिद्र और वर्ण ने इंसान को दलित बना दिया। जिनके पास कुछ भी नहीं है, वे लोग दरिद्र माने गए और जो लोग कुछ भी नहीं है वे दलित समझे जाते थे।' बाबा साहेब ने संघर्ष का बिगुल बजाकर आह्वान किया, 'छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, अधिकार वसूल करना होता है।' उन्होंने ने कहा है, 'जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिये बेमानी है।
बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने भीमराव अंबेडकर को मेधावी छात्र के नाते छात्रवृत्ति देकर 1913 में विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेज दिया। अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, दर्शन और अर्थ नीति का गहन अध्ययन बाबा साहेब ने किया। वहां पर भारतीय समाज का अभिशाप और जन्मसूत्र से प्राप्त अस्पृश्यता की कालिख नहीं थी। इसलिए उन्होंने अमेरिका में एक नई दुनिया के दर्शन किए। डॉ. अंबेडकर ने अमेरिका में एक सेमिनार में 'भारतीय जाति विभाजन' पर अपना मशहूर शोध-पत्र पढ़ा, जिसमें उनके व्यक्तित्व की सर्वत्र प्रशंसा हुई। डॉ अंबेडकर के अलावा भारतीय संविधान की रचना हेतु कोई अन्य विशेषज्ञ भारत में नहीं था। अतः सर्वसम्मति से डॉ. अंबेडकर को संविधान सभा की प्रारूपण समिति का अध्यक्ष चुना गया। 26 नवंबर 1949 को डॉ. अंबेडकर द्वारा रचित (315 अनुच्छेद का) संविधान पारित किया गया।
डॉ. अंबेडकर का लक्ष्य था- 'सामाजिक असमानता दूर करके दलितों के मानवाधिकार की प्रतिष्ठा करना।' डॉ. अंबेडकर ने गहन-गंभीर आवाज में सावधान किया था, '26 जनवरी 1950 को हम परस्पर विरोधी जीवन में प्रवेश कर रहे हैं। हमारे राजनीतिक क्षेत्र में समानता रहेगी किंतु सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में असमानता रहेगी। जल्द से जल्द हमें इस परस्पर विरोधता को दूर करना होगी। वर्ना जो असमानता के शिकार होंगे, वे इस राजनीतिक गणतंत्र के ढांचे को उड़ा देंगे।' अंबेडकर मधुमेह से पीड़ित थे। 6 दिसंबर 1956 को उनकी मृत्यु दिल्ली में नींद के दौरान उनके घर में हो गई। 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। "हम हैं दरिया हमें अपना हुनर मालूम है, जिस तरफ निकल जाएंगे, वहीं रास्ता बना लेंगे।" यही उक्ति डॉ भीमराव अंबेडकर के जीवन संघर्ष का प्रतीक है। उन्होंने जीवन भर सार्वजनिक जीवन में न्याय, समानता, संवैधानिक अधिकारों और व्यक्तिगत गरिमा का मार्ग अपनाया।
बाबा साहब जीवन भर संत कबीरदास, महात्मा बुद्ध और महामना ज्योतिबा फुले साहब के विचारों और बौद्धिक नेतृत्व से प्रभावित रहे। डॉ भीमराव अंबेडकर ने देश में दलितों के आर्थिक व सामाजिक सशक्तिकरण और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए लड़ाई लड़ी। आज राष्ट्र उनकी 67वीं पुण्य तिथि पर पूरे सम्मान और आदर के साथ उन्हें पुष्पांजलि अर्पित कर रहा है। मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से बाबा साहेब को जानना जीवन के उद्देश्य और मानवता के महत्व को उजागर करने वाला है और बाबा साहेब के दर्शन ने मुझे सत्य, न्याय, भाईचारा, करुणा, शांति, प्रेम, स्नेह, चिंता, संवेदनशील, प्रत्येक की देखभाल का मार्ग दिखाया। बाबासाहेब ने अपनी उपस्थिति, अपनी भूमिका और अपनी क्षमता के माध्यम से हमें विनम्र, सम्मानजनक और देश की एकता, विकास के लिए वास्तव में समर्पित होने का परिचय दिया। बाबा साहब मानवता, समाज और राष्ट्र के जननायक थे और आज दुनिया भर में हम उनकी महिमा, बुद्धि और ज्ञान के कारण जाने जाते हैं।
बाबासाहेब अम्बेडकर संवैधानिक ज्ञान, मानवाधिकार, सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के प्रयासों के प्रतीक थे। बाबासाहेब ने भारत के लिए अपनी समर्पित, प्रतिबद्ध, जिम्मेदार, जवाबदेह और संवैधानिक ताकत को साबित किया। हम विनम्रता, गरिमा और आदरपूर्वक भारत के इस महान व्यक्तित्व को उनकी 67वीं पुण्य तिथि पर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। भारत के इस महान मानव व्यक्तित्व को सत् सत् नमन। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)