कर्नाटक में जातीय जनगणना पर विवाद गहराया
लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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कर्नाटक में  पिछली कांग्रेस सरकार के काल में राज्य में  करवाई गई जातीय जनगणना, जिसकी रिपोर्ट अभी भी सामने नहीं आई है, को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। लगभग सभी दलों के बड़े जातीय नेता इस रिपोर्ट को नकारे जाने की मांग कर रहे है। उनका कहना है कि यह जातीय सर्वेक्षण पूरी तरह वैज्ञानिक नहीं था और जल्दबाजी में करवाया गया था। उनकी मांग है कि यह जातीय सर्वेक्षण फिर से करवाया जाना चाहिए।

हालाँकि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसके जरिये यह सर्वेक्षण करवाया गया, ने अधिकारिक रिपोर्ट से अपनी रिपोर्ट  सरकार  को नहीं सौंपी है, लेकिन इसके  कई महत्वपूर्ण अंश राज्य में मई महीने में हुए विधानसभा चुनावों के समय ही लीक हो गए थे। लीक हुए आंकड़ों में अलग जातियों की जो संख्या बताई  है उसने अब तक मानी जातीं कई बातों को झुटला सा दिया है। 

इस रिपोर्ट का विरोध करने के मामले में सबसे पहले लिंगायत समुदाय के नेता सामने आये। इसके तुरंत बाद राज्य के दूसरे बड़े समुदाय वोक्कालिंगा के नेताओं ने भी रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किये जाने की मांग उठा दी। लिंगायत समुदाय राज्य का सबसे बड़ा समुदाय माना जाता है। इसके नेता दावा करते रहे है कि वे राज्य में 20 प्रतिशत है। वैसे भी इस समुदाय का राज्य में सामाजिक तथा राजनीतिक दबदबा अपनी संख्या से कहीं अधिक है। दूसरी और  वोक्कालिंग समुदाय के नेता यह दावा करते रहे हैं कि वे राज्य में कम से कम 18 प्रतिशत है। दोनों जातियों के नेता इसी आधार पर अपनी अपनी पार्टियों में अधिक से अधिक सीटें मांगते रहे हैं। लेकिन अब लीक हुए आंकड़ो के अनुसार राज्य में लिगायत 14 प्रतिशत ही है जबकि वोक्कालिंगा समुदाय केवल 11 प्रतिशत है। 

पिछले दिनों इन दोनों समुदायों के नेताओ ने मुख्यमंत्री सिद्धारामिया से भेंट कर ज्ञापन दिया जिसमें इस रिपोर्ट को गलत बताया गया है। वोक्कालिंग  समुदाय के ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में राज्य के उप मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार भी हैं। वे प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष भी है। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद शिवकुमार ही मुख्यमंत्री पद के पहले दावेदार थे। लेकिन पार्टी आला कमान ने फैसला सिद्धारामिया के पक्ष में किया क्योंकि उन्हें     राजनातिक तथा लम्बा प्रशासनिक अनुभव था। वे 20133 से 2018 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं तथा वे पिछड़े वर्गों के बड़े नेता है। 

देश में जब किसी भी पार्टी ने जातीय जनगणना की बात तक नहीं की थी तब 2015 में सिद्धारामिया ने राज्य में जातीय जनगणना करवाने का निर्णय किया था। इस जनगणना का नाम सामाजिक तथा आर्थिक सर्वेक्षण दिया गया। यह काम राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग को दिया गया। आयोग ने 2017 के अंत के  आस पास अपना काम पूरा कर लिया। चूँकि राज्य में कुछ माह बाद ही विधान सभा चुनाव होने थे इसलिए यह रिपोर्ट सरकार को नहीं सौंपी गई। उस समय आयोग के अध्यक्ष कान्ताराज चाहते थे कि रिपोर्ट पेश कर दी जाये। लेकिन आयोग के सदस्य सचिव ने यह कह कर रिपोर्ट पर अपने हस्ताक्षर नहीं किये  वे इसके कुछ आंकड़ों से सहमत नहीं। 

2018 के विधानसभा चुनावों के बाद राज्य में कांग्रेस और जनता दल (स) की मिली जुली सरकार बनी लेकिन उस काल में भी रिपोर्ट को पेश किये जाने के मामले में कोई कारवाई नहीं हुई। इसके अगले चार साल में राज्य में बीजेपी सत्ता दल था। बीजेपी शुरू से ही इस तरह के जातीय सर्वेक्षण के खिलाफ रही है। बीजेपी शासनकाल में आयोग पिछले अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा हो गया। कुछ समय बाद जयप्रकाश हेगड़े को आयोग   को अध्यक्ष बनाया गया जिनका कार्यकाल 30 नवम्बर 2023 तक था। 

इस अवधि के दौरान रिपोर्ट स्टील के पांच संदूकों में पडी रही। मई में जब राज्य में फिर कांग्रेस सरकार आई और सिद्धारामिया एक फिर मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने कहा कि जल्दी ही रिपोर्ट सरकार को मिल जायेगी। इसी बीच इसके कई अंश लीक भी हो गए। कुछ दिन पहले ही यह बात सामने कि सर्वेक्षण की मूल रिपोर्ट और इससे जुडी वर्कशीट ही नदारद हो गई है। हेगड़े ने रिपोर्ट गायब होने के  बात तो मानी पर यह कहा इसकी सॉफ्ट कॉपी कंप्यूटर में उपलब्ध है। फिर उन्होंने मुख्यमंत्री से आयोग को कार्यकाल बढाने का अनुरोध किया ताकि वे अपना काम पूरा कर सके। अब उनका कार्यकाल तब तक के लिए बढ़ा जब तक रिपोर्ट का काम पूरा नहीं होता। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)