चौ. चरण सिंह किसानों की समर्पित, प्रतिबद्ध और सच्ची आवाज थे : डॉ. कमलेश मीना

भारतीय राजनीति को ऐसे व्यक्तियों की राजनीति में आवश्यकता है जो किसानों, वंचितों, गरीबों, सुदूरवर्ती निवासियों, पिछड़ों, शोषितों, वंचितों का सच्चा प्रतिनिधित्व कर सकें।


लेखक : डॉ कमलेश मीना

सहायक क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

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आज हमारे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 121वीं जयंती है। ग्रामीण भारत के मुद्दे और देश के विकास की दिशा स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी कमोवेश यथावत है। 1991 में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों के कार्यक्रमों के बाद देश में आर्थिक विकास तो तेजी से हो रहा है, लेकिन विकास की इस प्रक्रिया में गांव, किसान और खेती हाशिए पर आ गये है। आज किसान राजनीति जाति, धर्म, क्षेत्र या अन्य भावुक मुद्दों में उलझकर रह गई है। चाहे संसद हो या विधान मंडल, कहीं भी किसानों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं है।

"देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है।" -:चौधरी चरण सिंह, जिस व्यक्ति को इस देश की मिट्टी के साथ लगाव है, जो इस देश की जनता की खुशहाली में रूची रखता था और भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रति आस्थावान था उस सच्चे हितैषी का नाम चौधरी चरणसिंह था। हम अपने राष्ट्रीय विश्वसनीय वीर व्यक्तित्व चौधरी चरण सिंह साहब को उनकी 121वीं जयंती पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं और उनके सिद्धांतों, नैतिक मूल्यों और राजनीति में समाजवाद की अवधारणाओं का ईमानदारी से पालन करने के लिए प्रतिबद्ध होने का संकल्प लेते हैं। चौधरी चरण सिंह की ग्राम और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और कृषक लोकतंत्र की संकल्पना की आज भी सार्थकता है। गांव की आर्थिक प्रगति के लिए चरण सिंह लघु एवं विकेंद्रित उद्योगों के हिमायती थे। 

उनका मानना था कि कृषि मजदूरों एवं अन्य लाखों गरीब किसानों एवं ग्रामीण बेरोजगारों की आय बढ़ाने के लिए कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देना अति आवश्यक है। चौधरी चरण सिंह गांव के विकास के लिए सरकारी सेवाओं में किसानों की संतानों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण के समर्थक थे। उनका मानना था कि हमारे राज्य या देश की परिस्थितियों में कोई भी व्यक्ति सच्चे अर्थों में लोगों की सेवा तब तक नहीं कर सकता जब तक कि वह गांव को और ग्रामीणों की समस्याओं से वास्तविक रूप में रूबरू न हो। अपने पूरे राजनीतिक जीवन में वे ग्रामीण भारत के उत्थान के लिए प्रयासरत रहे, जब भी उन्हें अवसर मिला उन्होंने इसके लिए ठोस कदम उठाए। धरती पुत्र के इस योगदान के लिए ग्रामीण भारत सदैव ऋणी रहेगा।

चौधरी चरण सिंह 23 दिसंबर 1902 - 29 मई 1987 एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे और 28 जुलाई 1979 और 14 जनवरी 1980 के बीच भारत के 5वें प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत थे। पत्रकार, इतिहासकार और बुद्धिजीवी लोग आम तौर पर कहते थे कि दीनबंधु चौधरी सर छोटूराम जी के बाद, चौधरी चरण सिंह भारत के किसानों सच्चे चैंपियन थे। हम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह साहब को उनकी 121वीं जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। वह पहली बार यूपी विधान सभा के लिए चुने गए थे। 1937 में छपरौली और 1946, 1952, 1962 और 1967 से विधान सभा में निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 

चौधरी चरण सिंह इसी क्षेत्र से लगातार सन् 1977 तक 40 वर्ष उत्तर प्रदेश असेम्बली के सदस्य रहे और इस तरह से भारतवर्ष में एक रिकार्ड स्थापित किया। 1977 में पहली बार बागपत क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने गये तथा अन्तिम समय तक इसी क्षेत्र से चुने जाते रहे। वह 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना आदि जैसे विभिन्न विभागों में काम किया। जून 1951 में, उन्हें राज्य में कैबिनेट मंत्री नियुक्त किया गया और न्याय और सूचना विभाग का प्रभार दिया गया। बाद में उन्होंने 1952 में डॉ. संपूर्णानंद के मंत्रिमंडल में राजस्व और कृषि मंत्री का पदभार संभाला। जब उन्होंने अप्रैल 1959 में इस्तीफा दिया, तो वे राजस्व और परिवहन विभाग का प्रभार संभाल रहे थे। श्री सी.बी. गुप्ता के मंत्रालय में वे गृह और कृषि मंत्री (1960) थे।

श्री चरण सिंह ने श्रीमती सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में कृषि और वन मंत्री (1962-63) के रूप में कार्य किया।  उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया और 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का कार्यभार संभाला। श्री चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर उत्तर प्रदेश की सेवा की और एक कठोर कार्यपालक के रूप में ख्याति अर्जित की, जो प्रशासन में अक्षमता, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करते थे। एक प्रतिभाशाली सांसद और व्यावहारिक व्यक्ति, श्री चरण सिंह अपनी वाक्पटुता और दृढ़ विश्वास के साहस के लिए जाने जाते हैं। वह यूपी में भूमि सुधार के मुख्य वास्तुकार थे; उन्होंने डिपार्टमेंट रिडेम्पशन बिल 1939 को तैयार करने और अंतिम रूप देने में अग्रणी भूमिका निभाई, जिससे ग्रामीण देनदारों को बड़ी राहत मिली। यह उनकी पहल पर ही था कि यूपी में मंत्रियों को वेतन में भारी कमी की गई और अन्य विशेषाधिकार प्राप्त हुए। 

मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने भूमि जोत अधिनियम 1960 लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य पूरे राज्य में भूमि जोत की सीमा को कम करके इसे एक समान बनाना था। देश में कुछ ही राजनीतिक नेता जमीनी स्तर पर लोकप्रिय इच्छाशक्ति की पकड़ में श्री चरण सिंह की बराबरी कर सकते थे। एक समर्पित सार्वजनिक कार्यकर्ता और सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले, श्री चरण सिंह की ताकत मूल रूप से लाखों किसानों के बीच उनके विश्वास से उपजी थी। 

चौधरी चरण सिंह ने सादा जीवन व्यतीत किया और अपना खाली समय पढ़ने और लिखने में बिताया। वह कई पुस्तकों और पुस्तिकाओं के लेखक थे, जिनमें 'जमींदारी उन्मूलन', 'सहकारी खेती एक्स-रे', 'भारत की गरीबी और उसका समाधान', 'किसान स्वामित्व या श्रमिकों के लिए भूमि' और 'विभाजन की रोकथाम' शामिल हैं। चौधरी चरण सिंह का जीवन 'किसानों' को था समर्पित वैसे तो 23 दिसंबर के दिन देश-दुनिया में तमाम घटनाएं घटित हुईं लेकिन इस दिन का महत्व देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जन्मदिन होने के कारण अलग ही है, उनका जन्मदिन भारत में 'किसान दिवस' (Kisan Divas) के रूप में मनाया जाता है, चौधरी चरण सिंह एक बेहतरीन राजनीतिज्ञ और किसानों के हमदर्द थे। सर दीनबंधु चौधरी छोटूराम के बाद चौधरी चरण सिंह ने भारत में किसानों, कृषि और भूमि सुधार के मुद्दों को उठाया। उन्होंने अपनी पूरी राजनीति में कृषि उपज का सही मूल्य दिलाने और हमारे किसानों को सुविधाएँ देने की वकालत की। 

वैसे कहा जाता है कि भारत गांवों में बसता है और इसे किसानों का देश कहा जाता है, किसानों से जुड़े मुद्दों पर अक्सर ही अवाज बुलंद होती रहती है, वहीं आज के दिन को किसान दिवस के तौर पर मनाने का मकसद पूरे देश को यह याद दिलाना है कि किसान देश का अन्नदाता है और यदि उसकी कोई परेशानी है या उसे कोई समस्या पेश आ रही है तो ये सारे देशवासियों का दायित्व है कि उसकी मदद के लिए आगे आएं। चौ० चरणसिंह बड़े बुद्धिमान्, विद्वान्, अर्थशास्त्रज्ञ, प्रवीण राजनीतिज्ञ, कुशल शासक, कर्मयोगी, निडर एवं ईमानदार, निपुण कार्यकर्त्ता, सिद्धान्तों के धनी, स्वाभिमानी, सत्य के पुजारी, भ्रष्टाचार व अन्याय के विरोधी, सरदार पटेल की भांति लोहपुरुष, सच्चे गांधीवादी, भारतवर्ष के किसानों के वास्तविक नेता तथा मजदूरों व गरीबों के मसीहा, महान् देशभक्त एवं भारत माता के सच्चे सपूत थे। चौधरी चरण सिंह ने अपना संपूर्ण जीवन भारतीयता और ग्रामीण परिवेश की मर्यादा में जिया।

बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद, कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में 23 दिसम्बर,1902 को उनका जन्म हुआ था। चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था। यूपी के मुख्य मंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक का सफर: चौधरी चरण सिंह 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दुबारा 17 फ़रवरी 1970 के वे मुख्यमंत्री बने। उसके बाद वो केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस के विभाजन के बाद वह यूपी के मुख्यमंत्री बने। हालाँकि, 2 अक्टूबर 1970 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।

जमींदारी प्रथा का किया उन्मूलन: वो किसानों के नेता माने जाते रहे हैं। उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। एक जुलाई 1952 को यूपी में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला। उन्होंने लेखापाल के पद का सृजन भी किया। किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। चौधरी चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का था आदेश: 9 अगस्त 1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवक चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथना, बुलन्दशहर के गाँवों में गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी। मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था। एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी वहीं दूसरी तरफ युवक चरण सिंह जनता के बीच सभायें करके निकल जाता था। 

आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफतार कर ही लिया। राजबन्दी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई। राम मनोहर लोहिया के ग्रामीण सुधार आन्दोलन में जुट गए थे: चरण सिंह ने स्वाधीनता के समय राजनीति में प्रवेश किया। इस दौरान उन्होंने बरेली कि जेल से दो डायरी रूपी किताब भी लिखी। स्वतन्त्रता के पश्चात् वह राम मनोहर लोहिया के ग्रामीण सुधार आन्दोलन में लग गए। युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया: आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चौधरी चरण सिंह ने ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा पूर्वक गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकद्मों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। 

1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत् नमक कानून तोडने का आह्वान किया गया। आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया। परिणामस्वरूप चरण सिंह को 6 माह की सजा हुई। जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्रता संग्राम में समर्पित कर दिया। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफ्तार हुए फिर अक्टूबर 1941 में मुक्त किये गये। सारे देश में इस समय असंतोष व्याप्त था। महात्मा गाँधी ने 'करो या मरो' का आह्वान किया। अंग्रेजों भारत छोड़ों की आवाज सारे भारत में गूंजने लगी थी।

चौधरी चरण सिंह के पुत्र चौधरी अजीत सिंह भारतीय राजनीतिज्ञ थे: वहीं चौधरी चरण सिंह के पुत्र चौधरी अजीत सिंह एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे वे भारत के कृषि मंत्री रहे और वो 2011 से केन्द्र की यूपीए सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री रहे। वो राष्ट्रीय लोक दल के लम्बे समय तक अध्यक्ष रहे, अब उनकी विरासत को उनके बेटे और चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी संभाल रहे हैं। आज देश के पांचवें प्रधानमंत्री और किसान नेता चौधरी चरण सिंह का जन्मदिवस है। चौ.चरण सिंह को भारत में किसानों की आवाज बुलन्द करने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है। 

इसी के चलते उनके जन्मदिवस को 'किसान दिवस' के रूप में मनाया जाता है। चरण सिंह ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने संसद का एक बार भी सामना किए बिना ही त्यागपत्र दे दिया। चौधरी चरण सिंह राजनेता होने के साथ-साथ एक लेखक भी थे और अंग्रेजी भाषा पर अच्छा अधिकार रखते थे। उन्होंने 'अबॉलिशन ऑफ़ ज़मींदारी', ‘लिजेण्ड प्रोपराइटरशिप’ और ‘इंडियास पॉवर्टी एण्ड इट्स सोल्यूशंस’ पुस्तकें लिखीं। चरण सिंह केवल 5 महीने और कुछ दिन ही देश के प्रधानमंत्री रह पाए और बहुमत साबित करने से पहले ही उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। 

चौधरी चरण सिंह ने जवाहर लाल नेहरू के सोवियत पद्धति पर आधारित आर्थिक सुधारों का विरोध किया था क्योंकि उनका मानना था कि सहकारी-पद्धति की खेती भारत में सफल नहीं हो सकती। चौधरी चरण सिंह का जन्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नूरपुर गांव में हुआ था। उनके परिवार का संबंध बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह से था जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने दिल्ली के चांदनी चौक में फांसी दे दी थी। 

आगरा विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने के बाद चौधरी चरण सिंह ने गाज़ियाबाद में वकालत की। कहा जाता है कि वह उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण लगता था। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (1929) के बाद उन्होंने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया और सन 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान 'नमक कानून’ तोड़ने चरण सिंह को 6 महीने की सजा सुनाई गई। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने स्वयं को देश के स्वतन्त्रता संग्राम में पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया।1937 में 34 साल की उम्र में चौधरी चरण सिंह बागपत के छपरौली से विधान सभा के लिए चुने गए।

विधनासभा में उन्होंने किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक बिल पेश किया, जिससे बाकी राज्यों ने भी सीख ली। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जब इंदिरा गांधी हारीं और केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में 'जनता पार्टी' की सरकार बनी तो चरण सिंह को इस सरकार में गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बनाया गया। जनता पार्टी की आपसी कलह के कारण मोरारजी देसाई की सरकार गिर गयी जिसके बाद कांग्रेस और सीपीआई के समर्थन से चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 

राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने उन्हें बहुमत साबित करने का वक़्त दिया पर इंदिरा गांधी ने पहले ही अपने समर्थन वापस ले लिया इस प्रकार संसद का एक बार भी सामना किए बिना चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। पहली बार भारतीय संसद को किसान समुदायों से उनकी आवाज उठाने और उनके संवैधानिक अधिकारों की वकालत करने वाला एक सच्चा प्रतिनिधि मिला और वह प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा। गांव की आर्थिक प्रगति के लिए चरण सिंह लघु एवं विकेंद्रित उद्योगों के हिमायती थे।उनका मानना था कि कृषि मजदूरों एवं अन्य लाखों गरीब किसानों एवं ग्रामीण बेरोजगारों की आय बढ़ाने के लिए कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देना अति आवश्यक है।

मेरे कॉलेज के दिनों की राजनीति में मुझे राजस्थान सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री और पूर्व संसद सदस्य और राजस्थान में किसान समुदाय की एक मजबूत आवाज डॉ. हरि सिंह जी के अधीन काम करने का अवसर मिला और आमतौर पर उन्होंने मुझे चौधरी चरण सिंह साहब की कई कहानियाँ सुनाईं। डॉ. हरि सिंह जी चौधरी चरण सिंह के सच्चे अनुयायी थे और उनके समय में मुझे कई बार किसान छात्रावास, बनीपार्क जयपुर में चौधरी चरण सिंह की जयंती मनाने का अवसर मिला। डॉ हरि सिंह मेरे राजनीतिक गुरु भी थे और उनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में मैंने हाशिए पर रहने वाले, गरीब लोगों और किसान समुदायों के लिए राजनीति का वास्तविक अर्थ सीखा।

चौधरी चरण सिंह साहब के प्रधानमंत्री कार्यकाल के बारे में एक बहुत ही दिलचस्प कहानी पूर्व वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता प्रभाष जोशी जी द्वारा मेरे पत्रकारिता अध्ययन के दौरान साझा की गई जब प्रभाष जोशी जी मेरे विभाग सेंटर फॉर मास कम्युनिकेशन में अपना व्याख्यान देने और अपने पत्रकारिता के अनुभव को साझा करने के लिए आए थे। दिवंगत वरिष्ठ पत्रकार जोशी जी ने बताया कि कैसे चौधरी साहब को संसद में घुसने का मौका नहीं मिला और उनकी सरकार गिर गयी। 

फ्लोर टेस्ट का सामना करने से पहले ही वह विश्वास मत हार गए और 1979 में चौधरी चरण साहब पर यह एक वाक्य मशहूर अखबार ने व्यंग्यचित्र के साथ कार्टून खबर छापी "सजी नहीं बारात तो क्या 

आई ना मिलन की रात तो क्या 

ब्याह किया तेरी यादों से 

गठबंधन तेरे वादों से 

बिन फेरे हम तेरे" उद्धरण के साथ एक कार्टून प्रकाशित हुआ। जोशी जी ने विस्तार से बताया कि यह पत्रकार, पत्रकारिता और मीडिया की ताकत थी लेकिन अब दिन-ब-दिन भारतीय मीडिया अपनी साख, विश्वसनीयता और प्रभावशीलता खोता जा रहा है।

सौभाग्य से छात्र राजनीति के दौरान मुझे डॉ. हरि सिंह जी, महेंद्र शास्त्री जी और नत्थी सिंह जी के नेतृत्व में और सहयोग से 1998-2004 में हमारे माननीय प्रधानमंत्री स्वर्गीय भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी जी के नेतृत्व में भारत के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वर्गीय चौधरी अजित सिंह जी से मिलने का अवसर मिला। 

स्वर्गीय चौधरी सिंह जी ने ज्यादातर समय कांग्रेस पार्टी और उसके एकाधिकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी और यह सर्वविदित तथ्य है कि भारत में 1970 के दशक के बाद समाजवादी आंदोलन और समाजवाद की राजनीति कांग्रेस पार्टी के भ्रष्टाचार और वंशवाद के खिलाफ उठी। हम कह सकते हैं कि चौधरी चरण, वीपी सिंह और चन्द्रशेखर कांग्रेस के भ्रष्टाचार शासन के खिलाफ लड़ने के लिए भारत के प्रधानमंत्री बने। चौधरी चरण सिंह को जब भी सत्ता में आकर ताकत मिली, उन्होंने किसानों के उत्थान के लिए काम किया। गन्ने और गेहूं के दाम बढ़ाए। खेत, खलियान, किसान, मजदूरों की भलाई के लिए काम किया। वो किसानों के सच्चे हितैषी थे। उन्होंने पूंजीपतियों से कभी भी हाथ नहीं मिलाया। ग्रामीणों के बीच जाकर चंदा एकत्र कर गरीबों को चुनाव लड़वाया और उन्हें सत्ता का भागीदार बनाया।

एक समय समाजवादी और समाजवाद आंदोलन बहुत सक्रिय था और यह आंदोलन जय प्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी के भ्रष्ट शासन के खिलाफ उठाया गया था जिसे जेपी आंदोलन के रूप में जाना जाता है। जेपी आंदोलन से हमारे भारतीय लोकतंत्र को कई नए युवा नेतृत्व मिले और हमारे देश को देश भर में ऐसे कई उत्कृष्ट राजनेता मिल सके जैसे ताऊ चौधरी देवीलाल, स्वर्गीय बीपी सिंह, स्वर्गीय चंद्र शेखर, स्वर्गीय बीजू पटनायक, स्वर्गीय जॉर्ज फर्नांडीस, स्वर्गीय मधु लिमये, स्वर्गीय राम कृष्ण हेगड़े, स्वर्गीय राम विलास पासवान, स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव, स्वर्गीय शरद यादव आदि भारत के समाजवादी विचारों के कार्यकर्ता थे और वे भारत में समाजवाद आंदोलन के प्रतिनिधि थे और अब दो तीन प्रमुख समाजवादी नेता जैसे लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार हमारी राजनीति में बने हुए हैं।

हम कह सकते हैं कि चौधरी चरण सिंह भारत की राजनीति में दीनबंधु सर छोटूराम चौधरी जी के सच्चे प्रतिनिधि और प्रतिरूप थे। मेरे जैसे अनेक शिक्षित, अनुभवी, योग्य, दूरदर्शी और पेशेवर युवाओं को चौधरी चरण सिंह जी के व्यक्तित्व से हाशिये पर पड़े, गरीब, पीड़ित और वंचित समुदायों के लिए राजनीति के महत्व और जन कल्याण को समझने की प्रेरणा मिली। इस अवसर पर मैं अपने राजनीतिक प्रेरणास्रोत स्वर्गीय डॉ. हरि सिंह जी को भी याद करता हूं, जिन्होंने मुझे छात्र राजनीति के दौरान उनके दृढ़ अनुभवों, जीवन और व्यक्तित्व से सीखने का अवसर दिया।

आज भारतीय राजनीति को ऐसे व्यक्तियों की राजनीति में आवश्यकता है जो किसानों, वंचितों, गरीबों, सुदूरवर्ती निवासियों, पिछड़ों, शोषितों, वंचितों का सच्चा प्रतिनिधित्व कर सकें। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी की आज 121वीं जयंती है। किसानों के हकों की लड़ाई लड़ने वाले चौधरी चरण सिंह सादगी और ईमानदारी की मिसाल थे। उन्होंने अपने विचारों से कभी भी समझौता नहीं किया। जब भी उन्हें सत्ता में आकर ताकत मिली, उन्होंने किसानों की भलाई के लिए काम किए। किसान मसीहा के अनुयायी आज भी उनके संस्मरण, आदर्श और बातें अपनी धरोहर के रूप में दिलों में संजोए हुए है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)