इंसान है तो इंसानियत होना भी जरूरी : राजवासदेव सिंह

अरशद शाहीन 

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टोंक। इंसानी जीवन जीते हूए अगर जीवन में दूसरे इंसान के प्रति अपनापन नहीं होगा तो फिर कैसे इंसानियत होगी । जिस तरह एक इंसान छोटे से स्वार्थ के लिये दूसरे इंसान को धोखा दे देता है तो फिर मानवता वाले गुण केसे होंगे। उक्त विचार प्रचार यात्रा में राजस्थान आये निरंकारी मण्डल की उप प्रधान व केन्द्रीय प्रचारक ‘राजवासदेव सिंह जी’ ने सवाई माधोपुर रोड़, बृजबिहार कॉलोनी स्थित ‘न्यू सन्त निरंकारी सत्संग भवन टोंक’ पर विशाल आध्यात्मिक सत्संग में दिये।

उपस्थित श्रृद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए राजवासदेव सिंह जी ने कहा कि मानव हो मानव को प्यारा सूंदर बने संसार हमारा। इसी प्रकार इन्सान का जीवन परोपकार में लगे ताकि दूसरों के जीवन में खुशियां ला सके। हमें सबके भले में ही अपना भला देखना है। अपनी सोच का दायरा विशाल बनायें। संर्कीणता से ऊपर उठें। इन्सानी जीवन अगर मिला है तो इन्सानियत को भी मजबूत करना है।

राजवासदेव सिंह ने कहा कि बड़े ही भाग्य से मनुष्य जीवन मिलता है। इस जन्म में आकर सबसे पहला कार्य परमात्मा को जानकर इसकी भक्ति करना है और इसी को प्राथमिकता देनी है। जीवन के बाकी कार्य तो उम्र के साथ-साथ पूरे हो ही जाते हैं लेकिन अगर जीवन के रहते हुए परमात्मा की प्राप्ति नहीं की तो इन्सानी जीवन व्यर्थ चला जाता है। इसलिए हर युग में परमात्मा की भक्ति को ही महत्व दिया जाता है। परमात्मा की भक्ति के बिना मोक्ष सम्भव नहीं। भक्ति किसी उम्र या युग की मोहताज नहीं होती। इसलिए भक्त पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए भक्ति करता है। 

पानी पीने का आनन्द तभी आता है, जब प्यास लगी हो। इसी तरह परमात्मा को जानने के लिए जिज्ञासा होना भी जरूरी है। आज इन्सान भौतिक सुख को ही सब कुछ मान बैठा है और इसी कारण दूसरे इंसान को भी नूकसान पहूंचाता है। जबकि असली सुख तो परमात्मा को जानने के बाद इस आत्मा को मिलता है। क्योंकि परमात्मा को जानने के बाद जन्म-मरण के आवागमन का चक्र समाप्त हो जाता है। इसलिए आज जरूरी है कि हम समय की कद्र करें , मानवीय-मूल्यों की कद्र करें। एक-दूसरे को सम्मान देना सीख लें तो सारे मतभेद ही समाप्त हो जायें। मर्यादा में जीवन जीना ही आदर्श जीवन कहलाता है। युवाओं की ताकत सकारात्मक सोच के साथ परोपकार में आगे आयें। प्रेम की भाषा ही सबसे प्यारी-भाषा है। हमने प्यार से परस्पर सद्भावपूर्ण वातावरण बनाना है।

सत्संग में दिल्ली से आये वासदेवसिंह जी, कोटा के जोनल ईंचार्ज बृजराजसिंह जी, टोंक ब्रांच के मूखी रमेष राजोरा आदि कई सन्तों ने अपने विचार व्यक्त किये।