दक्षिण भारत में कांग्रेस का बढ़ता दबदबा
लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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आपातकाल के बाद 1977 में देश में हुए लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस को 154 में से 89 दक्षिण के राज्यों से मिली थी। उत्तर भारत में आपातकाल के  दौरान कथित रूप से आम जनता के अधिकारों में कटौती के चलते उत्तर भारत, जिसे आम तौर पर हिंदी बेल्ट कहा जाता है, में कांग्रेस का लगभग पूरी तरह से सफाया हो गया था। 

हाल ही में देश के पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को एक बार फिर उत्तर भारत में कड़ी हार का सामना पड़ा। राजस्थान, छत्तीसगढ़  और मध्यप्रदेश में कांग्रेस बुरी तरह से हार गई। इनमें से दो- राजस्थान और छत्तीसगढ़- राज्यों  में तो कांग्रेस सत्ता में थी। लेकिन तेलंगाना में जीत के बाद  कांग्रेस ने यह बता दिया है कि दक्षिण में इस पार्टी का अभी भी दबदबा है। 

इससे पूर्व मई में कर्नाटक में विधानसभा के हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी बीजेपी को हरा कर बड़े बहुमत से सत्ता में आई थी। इस प्रकार अब कांग्रेस दक्षिण के दो राज्यों में सत्ता में है जबकि उत्तर भारत  में के एक छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश में ही इसकी सरकार है। कांग्रेस पार्टी  में उत्तर भारत में हार की जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता जबकि तेलंगाना में जीत का श्रेय हर कोई लेना चाहता है। जब कर्नाटक में जीत दर्ज हुई तो इसका सारा श्रेय पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी तथा उनकी भारत जोड़ो यात्रा को दिया गया। उनकी यह यात्रा राज्य के कुल 224 विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग आधों में से गुजरी थी।   

यात्रा हुए अभी थोडा सा समय ही हुआ था इसलिए कहा गया कि राहुल गाँधी की यात्रा के प्रभाव के चलते पार्टी सत्ता में आने में कामयाब हुई थी। लेकिन राज्य पार्टी के कई बड़े नेता मानते है कि इस जीत के कई अन्य बड़े कारण थे। यह चुनाव तब हुए जब पार्टी के  वरिष्ट नेता डी.के. शिव कुमार राज्य पार्टी के अध्यक्ष थे। पार्टी को कुल 224 सीटों में से 135 सीटें मिली थी। शिवकुमार न केवल एक धनपति हैं बल्कि उन्हें एक कुशल संगठक भी माना जाता है।   कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिलने के बाद शिवकुमार को मुख्यमंत्री पद का सबसे बड़ा दावेदार माना जाता था। पार्टी के कुछ केंद्रीय नेता उनको राज्य के अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। लेकिन अंत में राज्य के पूर्व में मुख्यमंत्री रहे सिद्धारामिया को यह पद मिला। शिव कुमार को उप मुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा। 

अब आते है कर्नाटक के पडोसी राज्य कर्नाटक जहाँ पार्टी कुल 119 सीटों में 64 सीटें जीत कर सत्ता में लौटी है। पार्टी राज्य में 9 साल से सत्ता में रही भारत राष्ट्र राष्ट्र, हार का सामना करना पड़ा। राज्य में कांग्रेस पार्टी के अधिकांश नेता मानते है कि पार्टी को सत्ता में लाने का बड़ा श्रेय राज्य पार्टी के 54 वर्षीय अध्यक्ष अनुमुला रेवंत रेड्डी को ही जाता है। उनकी तुलना कर्नाटक के शिवकुमार से की जाती है वे उनकी तरह एक आक्रामक नेता है तथा उनमें सब को साथ ले कर चलने के क्षमता है। वैसेतो वे कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं से पीछे है लेकिन इन चुनावों में उन्होंने दिखला दिया कि वे थोड़े ही समय में पार्टी को  भारत राष्ट्र समिति से आगे लाने में सफल रहे। बतया जाता है वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आते है।

 उन्होने अपना राजनीतिक सफर संघ के  छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से किया। उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनावों में भाग लिया। पर वे जल्दी ही राज्य के  क्षेत्रीय दल तेलगु देशम पार्टी से जुड़ गए। फिर बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए पंचायतों का चुनाव लड़ते हुए वे राजनीति की सीढियां चढ़ते चले गए। 2019  के लोकसभा चुनावों में राज्य से पार्टी के जो चार सदस्य चुने गए उनमें से रेड्डी भी एक थे। जब उन्हें प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बनाया तो पार्टी के कई नेताओं को आश्चर्य हुआ। लेकिन विधान सभा चुनावो में जीत ने या साबित कर दिया कि उनके बारे में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का निर्णय सही था। वे दक्षिण के दूसरे राज्य में पार्टी का दबदबा बनाने में सफल रहे। इस जीत के बाद पार्टी की आला कमान के पास राज्य का मुख्यमंत्री बनाने के अलावा कोई दूसरा विकलप नहीं था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)