फॉसिल फ्यूल उत्पादकों को जलवायु संकट में बनना होगा समाधान का हिस्सा

निशांत की रिपोर्ट 

लखनऊ (यूपी) से 

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आईईए के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, आज की नीतिगत व्यवस्था के तहत भी, तेल और गैस दोनों की वैश्विक मांग 2030 तक पीक पर पहुंच जाएगी। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए और मजबूत कदम का मतलब दोनों ईंधनों की मांग में गिरावट लाना वाजिब है।

ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य को पहुंच के भीतर बनाए रखने के लिए सदी के मध्य तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुंचने की राह में 2050 तक तेल और गैस के उपयोग में 75% से ज़्यादा कटौती करनी होगी।

अगर सभी देश अपनी राष्ट्रीय ऊर्जा और जलवायु संबंधी प्रतिज्ञाओं को पूर्ण रूप से पूरा करती हैं, तो 2050 तक तेल, गैस की मांग आज के मुक़ाबले 45% कम हो जाएगी।

वर्तमान में ग्लोबल स्तर पर क्लीन एनर्जी निवेश में केवल 1% की हिस्सेदारी रखती हैं - और इसका 60% सिर्फ चार कंपनियों से आता है।

आईईए के कार्यकारी निदेशक फ़ातिह बिरोल ने कहा, “दुबई में सीओपी28 में तेल, गैस उद्योग को इस भ्रम से छुटकारा पाना कि बड़ी मात्रा में कार्बन कैप्चर ही समाधान है।

रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक टेक,गैस कंपनी को एनर्जी ट्रांज़िशन का हिस्सा बनते हुए अपने उत्सर्जन को कम करने की योजना शामिल होनी चाहिए।

तेल और गैस के उत्पादन, परिवहन और प्रसंस्करण से ग्लोबल ग्रीनहाउस एमिशन का लगभग 15% उत्सर्जित होता है – जो संयुक्त राज्य अमेरिका के सभी ऊर्जा-संबंधी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बराबर है।

ऐसे में ग्लोबल वामरिंग को पेरिस समझौते के हिसाब से डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए तेल,गैस कंपनियों को अपने अपने उत्सर्जन में 2030 तक 60% कटौती के दरकार है।

सबसे ज़्यादा उत्सर्जन वाले तेल, गैस उत्पादकों अगर ऐसा करते हैं तो ग्लोबल वार्मिंग में सुधारहोने की अपार संभावनाएं नज़र आती है। इसके अलावा, मीथेन – जो तेल और गैस परिचालन के कुल उत्सर्जन का आधा हिस्सा है – से उत्सर्जन को कम करने की रणनीतियाँ जानी-मानी हैं और आमतौर पर कम खर्च पर अपनाई जा सकती हैं।

फ़िलहाल हर साल तेल, गैस क्षेत्र में 800 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया जाता है, जो 2030 में वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की राह पर होने की आवश्यकता से दोगुना है।

नेट ज़ीरो के ट्रांज़िशन में, वक़्त के साथ तेल, गैस ग़ैर फ़ायदेमंद और जोखिम भरा व्यवसाय बनने के लिए सेट है।

रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि अगर सभी राष्ट्रीय ऊर्जा और जलवायु लक्ष्य हासिल कर लिए जाते हैं, तो निजी तेल और गैस कंपनियों का मौजूदा मूल्यांकन आज के 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 25% तक गिर सकता है, और अगर दुनिया ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए ट्रैक पर आ जाती है, तो 60% तक गिर सकती है।

साल 2050 में डीकार्बोनाइज्ड ऊर्जा प्रणाली में खपत होने वाली ऊर्जा का लगभग 30% उन प्रौद्योगिकियों से आता है जो तेल गैस उद्योग के संसाधनों में से हैं – जिनमें हाइड्रोजन, कार्बन कैप्चर, अपतटीय पवन और तरल जैव ईंधन शामिल हैं।तेल और गैस उद्योग ने 2022 में स्वच्छ ऊर्जा में लगभग 20 बिलियन अमरीकी डालर का निवेश किया, जो इसके कुल पूंजीगत व्यय का लगभग 2.5% है।

अब तेल गैस उद्योग को 2030 तक अपने पूंजीगत व्यय का 50% स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं में लगाने की आवश्यकता है ।

रिपोर्ट में यह भी नोट किया गया है कि कार्बन कैप्चर, जो वर्तमान में यदि तेल और प्राकृतिक गैस की खपत आज के नीतिगत स्थिति के अनुसार विकसित होती है, तो ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 2050 तक इस्तेमाल या भंडारण के लिए की बेहद अकल्पनीय 32 अरब टन कार्बन कैप्चर करने की आवश्यकता होगी। जिसको पावर करने के लिए आवश्यक बिजली की मात्रा आज पूरी दुनिया की बिजली की मांग से अधिक होगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)