रोम जब जल रहा था नीरो बंसी बजा रहा था

लेखक : नवीन जैन 

स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (मप्र) 

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गुजरात के दंगों के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी दंगा पीड़ितों के राहत शिवरों में गए थे। तभी एक महिला पत्रकार के सवाल के जवाब में उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्य मंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राज धर्म निबाहने की सलाह दी थी। उक्त प्रेस कांफ्रेंस में पास ही नरेंद्र मोदी भी बैठे हुए थे। मोदी ने तत्काल अटल जी के कथन पर हामी भरी थी। मोदी,तो पिछले करीब नौ बरस से लगातार प्रधानमंत्री हैं। सवाल है कि उनकी प्राथमिकताओं में क्या करीब तीन माह से जल रहा मणिपुर शामिल नहीं है और वो भी तब जब उक्त राज्य में भाजपा की मुखियाई वाली ही सरकार हो। ठीक है कि मोदी की फ्रांस यात्रा भी ज़रूरी थी, लेकिन क्या अब उन्हें मणिपुर नहीं जाना चाहिए? वहां बना दिए गए जंगली हालात को खुद आगे होकर काबू में करवाना क्या उनके राजधर्म पालन की श्रेणी में नहीं आता? राहुल गांधी तो मणिपुर हो भी आए। 

हमारे देश की इससे बड़ी तौहीन क्या होगी कि जग मुख्यत्यार देश अमेरिका मणिपुर मामले में भारत को मदद की पेशकश करे, और वहां के भारत स्थित राजदूत उक्त पूरे  घटना क्रम पर चिंता जाहिर करें। ये उस लोकतंत्र में हो रहा है, जिसके लिए हमारे नेता झांझ मंजीरे बजाते थकते नहीं कि हम तो साहब दुनिया के सबसे बड़े ही नहीं सबसे पुराने गणतंत्र हैं। 

इसे भी जायज़ माना जा सकता है कि चूंकि कुछ महीनों बाद ही छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं इसलिए मोदी का इन सूबों में जाना बनता है, लेकिन उक्त चुनावों में तो अभी तीन माह से ज्यादा का समय है। तब तक मणिपुर को क्या राम भरोसे छोड़ दिया जाना चाहिए?  हो सकता कि मीडिया के एक  वर्ग में आ रही खबरों के अनुसार मणिपुर घटना क्रम के पीछे ड्रेगन चीन का हाथ हो।वाकई ऐसा ही है तो चीन से राजनय या जमीनी स्तर पर निबटा जाना चाहिए। उक्त धोखे बाज देश पहले से ही भारत की हजारों वर्ग किलो मीटर जमीन हथिया कर बैठा है।

हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नोटिस में यह बात लाई जानी चाहिए कि एक बार मन की बात कार्यक्रम के तहत उन्होने स्त्रियों को बचाने उन्हें पढ़ाने उनके सम्मान, सुरक्षा, शिखा और स्वास्थ्य को लेकर ऐसी बातें कहीं, थी कि उनके मुखर आलोचक भी उन्हें सेल्यूट करने लगे थे, लेकिन कुछ दिन बीते नहीं कि गुजरात के बिल्किस बानो कांड के आरोपी छुट्टे छोड़ दिए गए। पीएम नरेंद्र मोदी अपने चिर परिचित अंदाज में तब भी मोन रहे, और भाजपा के लोग उक्त कांड के आरोपियों की रिहाई पर ऐसे जश्न मनाते रहे, जैसे देशभक्त युद्ध बंदी छोड़ दिए गए हों। बिल्किस बानो कांड भी सामूहिक बलात्कार, और हत्या कांड से संबंधित था।सवाल कि देश किसके हाथों में अपने आप को महफूज समझे? सोचिए मोदी की जगह यदि इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चरण सिंह प्रधान मंत्री होते तो? (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)