सामाजिक स्तर के निर्धारण में गरीबी एक महत्वपूर्ण कारक है

संविधान एवं उच्चतम न्यायालय की मंशा यह नहीं थी

लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी एवं पूर्व सदस्य सचिव- राज.राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग

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भारतीय संविधान में जातिविहीन एवं वर्गविहीन समाज की स्थापना की परिकल्पना की गई है। सामाजिक न्याय, समानता और सामंजस्य स्थापित करना संविधान के मुख्य उद्देश्य के रूप में प्रतिपादित किया गया है। मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के पश्चात उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले इन्द्रा साहनी बनाम भारत सरकार में पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के संबंध में सामाजिक न्याय के हित में अनेक महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए निर्णय दिया है। 

 फैसले में स्पष्ट है कि केवल जाति के आधार पर यदि आरक्षण किया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन है जाति प्रमुख कसौटी नहीं है। अनुच्छेद 15(4) के तहत केवल आर्थिक आधार पर भी आरक्षण नहीं किया जा सकता परन्तु यह स्पष्ट किया है कि गरीबी व सामाजिक पिछड़ापन को अलग नहीं किया जा सकता। सामाजिक स्तर के निर्धारण में गरीबी एक महत्वपूर्ण कारक है व्यवसाय व आय, बगैर जाति का ध्यान किये, पिछड़े वर्ग में जोड़ा जा सकता है। 

अनुच्छेद 15(4) के अन्तर्गत सामाजिक व शैक्षणिक दोनों तरह से किसी वर्ग का पिछड़ा होना आवश्यक है परन्तु सामाजिक पिछड़ापन प्रधान है। राज्य औसत के नजदीक (थोड़ा कम) यदि किसी वर्ग की शैक्षणिक स्थिति है तो पिछड़ा नहीं माना जा सकता। केवल नौकरियों में प्रतिनिधित्व कम हो तो भी पिछड़ा वर्ग में नहीं जोड़ा जा सकता यह देखना आवश्यक है कि क्या सरकारी नौकरियों में निषेद, निर्योग्यताओं से सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन की वजह से प्रतिनिधित्व कम है। जो लोग समाज में वर्ग प्रभेद अथवा अहितकारी सिद्धांतों की वजह से सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़ गये उन पर ही विचार किया जा सकता है। यदि किसी वर्ग के प्रत्याशी स्वयं की योग्यता के आधार पर मैरिट में अथवा सामान्य सीटों में पर्याप्त स्थान प्राप्त करते हैं तो ऐसे वर्गो को पिछड़ा वर्ग में जोड़ दिये जाने के बावजूद उन पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। 

संविधान के अनुसार जनसंख्या के अनुपात में सरकारी नौकरियांें में प्रतिनिधित्व होना आवश्यक नहीं है केवल पर्याप्त प्रतिनिधित्व होना आवष्यक कहा गया है। स्पष्ट किया गया है कि आरक्षण योग्यता व मैरिट के विरूद्ध नहीं है, आरक्षण केवल सीधी भर्ती में प्रथम नियुक्ति पर ही दिया जा सकता है। इसमें योग्यता हेतु निर्धारित आवश्यक अंक व मूल्यांकन में उपयुक्त कमी की जा सकती है। स्पष्ट कहा गया है, प्रमोशन में आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं किया जाना चाहिए। पिछड़ा वर्ग में आने के बावजूद जो व्यक्ति क्रिमीलेयर में आते है वे आरक्षण के लाभ से वंचित रखे गये यानि अपवर्जन का सिद्धान्त लागू किया गया। 

न्यायालय ने यह भी कहा कि पिछड़ा वर्ग की सूची को एक निश्चित प्रक्रिया अपनाकर, मापदण्ड बनाये जाकर, पिछड़ा वर्ग की एक से अधिक सूचियां बनाई जा सकती है। यानि वर्गीकरण किया जा सकता है। सर्वेक्षण, जांच, सुनवाई, अध्ययन, आवश्यक आंकड़े एकत्रित कर, ऐतराजात सुनने के पश्चात न्यायिक अदालत की तरह ज्यूडिशियल निर्णय किया जाना आवश्यक है क्योंकि ऐसे फैसले न्यायालय की परिधि में आते हैं। 

भारत सरकार द्वारा स्वीकृत पिछड़े वर्गो की सूचियों के संबंध में उठाये गये ऐतराजात पर अपनी राय प्रकट करते हुए एवं निर्णय देते हुए न्यायालय ने कहा है कि मण्डल कमीशन रिपोर्ट में जिन जाति/वर्गो को पिछड़ा वर्ग में जोड़ने की सिफारिश की गई, वह राज्य की वास्तविक स्थिति के आधार पर एवं सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ापन के आधार पर बनाई गई राज्य सूची/सूचियों पर आधारित है। उच्चतम न्यायालय ने निरस्त नहीं किया और सही ठहराया। परन्तु साथ ही यह भी स्पष्ट कहा कि यह सूची अपरिवर्तनीय नहीं है। 

एक निश्चित प्रक्रिया अपनाकर सर्वेक्षण, जांच व सुनवाई पश्चात नाम जोड़े अथवा हटाये जा सकते हैं और राज्य सरकार इसके लिए एक परमानेन्ट मैकनिज्म (कमीशन) स्थापित करेगी। कमीशन राज्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक निश्चित प्रक्रिया व मापदण्ड अपनाकर अपनी सिफारिश करेंगे। नये नाम जोड़ने अथवा हटाने के संबंध में जो भी प्रार्थना पत्र प्राप्त होंगे वे राज्य आयोग को भेजे जायेंगे, जो बाद जांच अपनी सिफारिश राज्य सरकार को प्रस्तुत करेंगे। 

अदालत की मंशा यह थी कि सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़े ऐसे गरीब वर्ग, जो छूट गये हों, उनको जोड़ा जाये। अदालत की मंशा आयोग स्थापित करने की यह कतई नहीं थी कि जिन जाति/वर्गो को मण्डल कमीशन ने बाद जांच एवं सर्वेक्षण उच्च वर्ग माना हैं, उनको राजनैतिक आधार पर, केवल सरसरी जांच व अभ्यार्थियों की सुनवाई पश्चात पिछड़ा वर्ग में जोड़ दिया जाये। ‘‘परमानेन्ट मैकेनिज्म’’ (कमीशन के रूप में) बनाने के पीछे स्पष्ट मंशा थी कि आयोग लगातार यह देखे कि जो वर्ग सोशियली एडवांस (सामाजिक रूप से उन्नत) हो गये हैं तथा जिन वर्गो का स्टेटस ऊंचा हो गया है उनको पिछड़ा वर्ग सूची से हटाया जाये। वर्गो की आज के वर्तमान प्रतिनिधित्व की स्थिति देखी जानी है, पचास वर्ष पूर्व की नहीं। 

दुर्भाग्य से इस फैसले का उपयोग राजनीति पार्टियां अपने राजनैतिक हितों के लिए करने लगी। अपनी पसंद के व्यक्ति आयोगों में नियुक्त किये जाने लगे है एवं ऐसी नियुक्ति प्राप्त व्यक्ति पूर्ण रूप से सरकारों और राजनैतिक पार्टियों की ओर देखना प्रारम्भ करने लगे हैं। फैसले राजनैतिक पार्टियों के घोषणा पत्रों, सार्वजनिक घोषणाओं पर होने लगे है। मजबूत एवं संगठित जातियां जिनके पास राजनैतिक शक्ति है, जो विकसित एवं भूमिधारी समृद्ध है, आरक्षण की मांग करने लगी और उनके नाम जोड़े जाने लगे व आज साधन सम्पन्न, उन्नत, संगठित व राजनैतिक वर्चस्व वाली जातियों को पिछड़ा वर्ग में जोड़ दिया गया है। 

जब प्रभावशाली व उन्नत जातियों को जोड़ना जारी है तो नाम हटाने का तो सवाल ही नहीं रहा है। जब डोमिनेट करने वाली (राज व शासन करने वाली) समृद्ध जातियां जुड़ने लगी है तो किसी वर्ग को हटाने की सम्भावना किसी कदर नहीं रही। अब आयोग का काम केवल मोहर लगाना व राजनैतिक पार्टियों की इच्छापूर्ति रह गया । 

अब वास्तविक रूप से अत्यधिक रूप से छोटी जातियों व पिछड़े वर्गो का आरक्षण समाप्त हो गया है और समृद्ध, सम्पन्न, विकसित, भूमि एवं सम्पत्तिधारी, राजनैतिक रूप से शक्तिशाली व जनसंख्या में अधिक जातियों का आरक्षण हो गया। इस प्रकार जो परमानेन्ट मैकेनिज्म बनाया गया था, अब पिछड़े वर्ग के लिए अहितकर हो रहा है और उच्च, उन्नत, समृद्ध व शक्तिशाली जातियों के जुड़ने का साधन रह गया अयोगों ने आज तक किसी का नाम नहीं हटाया।  

राज्य में प्रथम ओबीसी लिस्ट में 140 वर्ग थे। प्रथम आयोग ने बाद जांच उनकी संख्या 53 रख दी। अब तक लगभग 39 जातियों को जोड़ा जा चुका है व पिछड़े वर्ग में सम्मिलित वर्गो की संख्या 92 हो गई है। जनसंख्या लगभग 60 प्रतिशत हो रही है। 

उच्चतम न्यायालय के फैसले को सही रूप में संविधान के प्रावधानों के अनुसार क्रियान्वित करने के वजाय फैसले का सरासर दुरूपयोग हो रहा है। नतीजा यह हुआ कि ओबीसी के आरक्षण का लाभ अब केवल ओबीसी में फारवर्ड (उन्नत व सशक्त) को मिल रहा है। दलित, पिछड़े व अधिक पिछड़े व गरीब आरक्षण से वंचित रह रहे हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)