तेरा क्या काम है सावन

 एक गीत

 

लेखिका : डॉ सुधा जगदीश गुप्त 

पश्चिम बंगाल दुर्गापुर 

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लाख कीन्ह मनुहार लौट गए जाने क्यों साजन 

बरस रहा है मन तेरा क्या काम है सावन

मृग शावक से चंचल मेरे सपने उछल रहे

बीहड़ उलझन का अरण्य चिड़िया से फुदक रहे 

मधुर याद की बदली हर क्षण बरसाती रसघन 

तेरा क्या काम है सावन

आस उम्मीदें डूब रहींं

ना आए हैं भरतार

जब-जब छलके नयन हमारे नदिया की उन्हार 

आती है तब याद बहुत 

घूंघट की सरकारन

तेरा क्या काम है सावन 

दृग पत्रों को लगा बांँचने पागल मन दर्पण 

अभिलाषायें देतीं हर पल 

नेह भरे आमंत्रण 

अनुबंध घटाएं लगी बरसने

 खुले प्रीत बंधन

 तेरा क्या काम है सावन