कर्नाटक में नई सरकार की कई बिंदुओं पर अग्नि परीक्षा

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं 

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जब भी कहीं सत्ता परिवर्तन होता है तो आने वाली नई सरकार पिछली सरकार द्वारा चुनावों से कुछ समय पूर्व लिए निर्णयों आदि की समीक्षा करती है। पुराने अधिरकारियों के स्थान पर अपनी पसंद के अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है। पिछली सरकार दौरान बनाये गए कानूनों को नए सिरे से तोला जाता है और जरूरत समझे जाने के अनुसार या तो ऐसे कानून वापिस ले लिए जाते है या उनमें कोई बड़ा संशोधन कर दिया जाता है। 

चुनावों के दौरान राज्य कांग्रेस ने अध्यक्ष तथा अब राज्य के मुख्यमंत्री बने डी के शिव कुमार ने कई बार कहा था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो सबसे पहले राज्य के पुलिस महानिदेशक प्रवीण सूद को हटाएगी। उन पर आरोप था के वे पिछली सरकार के बहुत नज़दीक थे तथा पुलिस का भगवाकरण करने में लगे थे। सूद को इस बात का अंदाजा था कि राज्य में कांग्रेस फिर सत्ता में लौट रही है इसलिए समय रहते ही वे केन्द्र में सीबीआई के महानिदेशक बन कर चले गए। 

मुख्यमंत्री पद का पद सभांलते ही सिद्धारमैया ने यह साफ़ कर दिया कि पिछली सरकार द्वारा अपने कार्यकाल के आखरी तीन महीनों में लिए गए सभी  निर्णयों की समीक्षा की जाएगी। चुनावों दो महीने पूर्व  विभिन्न योजनाओं के स्वीकृत किये गए टेंडर रोक दिए गए। कहा गया कि इन योजनाओं के लिए नए सिरे से टेंडर जरी किये जायेंगे। इसके साथ ही उन्होंने कि पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र के अनुसार मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों 4 प्रतिशत आरक्षण को बहाल किया जाएगा। पिछली सरकार ने मुस्लिम आरक्षण को अति पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में डाल दिया था। 

आम जनता को यह उम्मीद रहती है कि सत्ता में आते ही नई पार्टी की सरकार तुरंत अपने वायदे पूरे करेगी। लेकिन सरकार में सभी काम नियमों और प्रकिर्या के अनुसार होते है। मुसलमानोंको उम्मीद थी की सत्ता में आते ही कांग्रेस सरकार उनका आरक्षण बहाल कर देगी। यह होगा जरूर लेकिन इसके लिए कुछ समय लगेगा। 

पिछली बीजेपी सरकार ने पार्टी के एजेंडे के अनुसार दो बड़े कानून बनाये थे तथा एक अधिसूचना के जरिये स्कूलों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। जिसे हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती दी गई लेकिन  दोनों ने सरकार के इस निर्णय पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। 

बीजेपी सरकार ने अपने कार्यकाल के आखरी साल में विधान मंडल से दो विधेयक पारित करवाए थे। एक के जरिये राज्य में गो हत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया था तथा दूसरे कानून के जरिये धर्म परिवर्तन पर भी रोक लगा दी गयी  थी। दोनों कानून बीजेपी के अधिकारिक अजेंडे का हिस्सा थे।   

हालाँकि कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी अजेंडे में इन दोनों कानूनों और हिजाब पर रोक के अधिसूचना के बारे में सीधे तौर  कुछ भी नहीं कहा गया था लेकिन इनके नेताओं ने अपने चुनावी भाषणों में बार-बार कहा था कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो इन सबको रद्द कर दिया जायेगा। जब इन विधेयकों को पारित किया जा रहा था विधान मंडल के दोनों सदनों  में कांग्रेस ने इसकी डट कर आलोचना की थी तथा इनके नेताओं ने अपनी भाषणों में कहा था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो ये दोनों कानून वापिस ले किये जायेंगे। यह माना जा रहा है नई कांग्रेस पार्टी की सरकार हर हालत में अपने मुस्लिम बैंक अपने साथ रखना चाहती है। राज्य में मुस्लिम आबादी लगभग 19 प्रतिशत है तथा हाल के विधानसभा चुनावों में इस समुदाय ने खुले रूप और पूरे जोश से कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष में वोट दिया था। इसके चलते ही कांग्रेस पार्टी सत्ता में आने में सफल रही।

मुस्लिम समुदाय के सामाजिक और राजनीतिक नेता अब यह दवाब बनाने में लगे हैं कि कांग्रेस सरकार जल्दी से जल्दी अपने इन सभी वायदों को पूरा करे। पर ऐसा लग रहा है कि इन तीन वायदों को पूरा करने में कुछ वक्त लगेगा। इसका कारण सरकार की इस समय प्राथमिकता अपनी पांच गारंटियों को पूरा  करने की है जो पार्टी ने मतदाताओं को दी थीं। इनमें 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली तथा महिलाओं को सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा देना शामिल है। इन तीन को लागू करने की घोषणा सरकार द्वारा शपथ देने की दिन ही कर दी गए थी तथा एक हफ्ते में इन्हें पूरी तरह लागू भी कर दिया। अब देखना यह यह है कि सरकार अन्य तीन कानूनों को कब निरस्त करती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)