गीत
धूप वाले दिन
लेखिका : डॉ सुधा जगदीश गुप्त
कटनी (मध्य प्रदेश)
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खो गए हैं वो छबीले बावरे से दिन
साथ देने आ गए हैं सांवरे से दिन
मायूस बैठी कुहकती लाचार सी कोयल
हरित शाखों में ठिठकती फूटती कोंपल
शुक सारिका चुपचाप ज्यों है सर्दियों के दिन
गुलमोहर की छांव रूठी रूठी है पुरवाईयां
वो सुर्खियां वो शोखियां चंदन मिली बेहोशियां
फिर क्यों सताने आ गए ये धूप वाले दिन
वो खनकती चूड़ियां और पायलों की वो छनक
कृष्ण की वो राधिका बैठी न झपके है पलक
चूमते तन्हाइयों में दिलवरी के दिन
खो गए हैं वह छबीले बावरे से दिन
साथ देने आ गए हैं सांवरे से दिन