तंबाकू सेवन के कारण असमय व अकाल मृत्यु की संभावनाएं ज्यादा

31 मई तम्बाकू निषेध दिवस : नुकसानदेह तम्बाकू का बढ़ता उपयोग

लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है 

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कोरोना लोकडाउन में शराब व तम्बाकू बिक्री पर रोक लगाई गई थी। लोकडाउन में छूट के तुरन्त बाद शराब व तम्बाकू के लिए लंबी लाइनें लगी, जो खाद्य पदार्थो के मुफ्त वितरण से भी लंबी देखी गई। इससे कीमतें बढाई गई परन्तु बिक्री में कमी नहीं आई। लोकडाउन में करोडों रूपये की तम्बाकू जब्त हुई। इससे जाहिर हुआ कि कितनी बडी संख्या में लोग शराब व तम्बाकू के आदी हो गये। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में 25 करोड़ से अधिक लोग किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते है तथा धूम्रपान करने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। संगठन ने अपने विश्लेषण के आधार पर यह भी कहा है कि सन् 2020 तक दुनिया में सर्वाधिक मौते और विकलांगता की वजह तंबाकू सेवन होगा। गरीबों, युवकों व महिलाओं में तंबाकू खाने और चबाने का सेवन बढ़ रहा है। 

भारत में अधिकांश क्षेत्रों में विशेषकर गांवों में बीड़ी अधिक पीयी जाती है। संगठन के अनुसार बीड़ी पीने वाले लोगों की संख्या 84 प्रतिशत हैं, इसका शिकार बनने वाले 16 प्रतिशत है। तंबाकू चबाने वाले लोग 30 प्रतिशत है। गांवों में धूम्रपान में हुक्का, चिलम, बीड़ी एवं शहरों में सिगरेट और नवयुवकों में खाने वाली तंबाकू का इस्तेमाल बढ़ा है। गांवों में पुरूष और स्त्रियां दोनों ही तंबाकू का सेवन करती है। चिलम, पाईप, हुक्का, सिगरेट, बीड़ी, सुट्टा आदि का प्रयोग होता है। मुंह में फांककर तथा पान, जर्दा, गुटका, खैनी, पान मसाला, चूने के साथ तंबाकू का सेवन अधिक है। 

तंबाकू का सेवन केवल व्यक्तिगत तौर पर ही नहीं, सामाजिक तौर पर भी है। एक ही जाति/वर्ग के लोग सामान्यतौर पर हुक्का पीते है। कबीलों में तंबाकू का सेवन सामाजिक रीति बन गया हैं एक जाजम पर बैठकर तंबाकू का सेवन, बीड़ी, सिगरेट पीना भाईचारे एवं एकता का प्रतीक माना जाता है क्योंकि कबीले या जातियों में यह एक सामाजिक रीति बन गया है। अनेक समाज ऐसे है जहां हुक्का, तंबाकू व अन्य नशीले पदार्थो का एक साथ सेवन सामाजिक स्तर, श्रेष्ठता व हैसीयत का द्योतक है। सांस्कृतिक व सामाजिक तौर पर पान सुपारी के साथ तंबाकू पेश करने का रिवाज है। पान सुपारी तो धार्मिक अनुष्ठानों में भी प्रयोग करते है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो बीड़ी, चीलम, हुक्का आदि आगंतुक को पेश नहीं की जाती है तो असभ्यता व अपमान का द्योतक माना जाता है।

तंबाकू सेवन अब महिलाओं व बच्चों में भी बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में गरीब मजदूर खेतों में काम करते हुए थकते है तो तंबाकू विशेषकर बीड़ी या चिलम का प्रयोग करते है और एक कहावत प्रसिद्ध है ‘‘थाक्यां को विश्राम तंबाकू बापडी’’। तंबाकू गरीब लोगों एवं साधु महात्माओं के नियमित सेवन का मुख्य पदार्थ बन गई है। मजदूर वर्ग में यह मान्यता है कि तंबाकू से कार्य क्षमता बढ़ती है। सरकारी दफ्तरों में भी बौद्धिक कार्य करने वाले उच्चाधिकारी कार्य करते हुए थकने पर सिगरेट का प्रयोग करते है। 

आय का स्रोत कम होने के बावजूद लोग तंबाकू उत्पाद खरीदने पर पैसा खर्च करते है और इस मद पर खर्च उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। जब कम आय वाला व्यक्ति तंबाकू सेवन करता है तो उसका आर्थिक बोझ पड़़ जाता है। जो लोग जीवन की बुनियादी सेवाओं से महरूम है, अपने परिवार का सुचारू पालन व इलाज नहीं करा पाते है उनका भी तंबाकू सेवन पर खर्चा बढ़ा है जिसके कारण वे कठोर परिश्रम व भरसक कोशीश के बावजूद परिवार की आर्थिक जरूरतों च आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाते परन्तु तंबाकू की लत के कारण पैसा खर्च करते है। 

धूम्रपान से गरीब और गरीब बनता है। इससे एक ओर जहां धन जाता है वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य भी जाता है। तंबाकू जनित बीमारियों कैंसर, हृदय रोग आदि से ग्रसित होते है। डाक्टरों, वैज्ञानिकों, चिकित्सों के अनुसार धमू्रपान का प्रभाव हृदय, मस्तिष्क, प्रजनन अंग, अस्थि, त्वचा, नाक, कान, गला, गर्भस्थ शिशु, गुर्दा, फेफड़े, रक्त वाहिनियों आदि सभी महत्वपूर्ण अंगों पर पड़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार तंबाकू से संबंधित बीमारियों के कारण असमय व अकाल मृत्यु होती है। बीमार होने पर बेरोजगारी से आर्थिक हानि होती है। नियमित आय का महत्वपूर्ण अंश तंबाकू खरीदने में गंवा देते है वहीं बीमार होने पर इलाज पर भी काफी खर्चा होता है। परिवार के लोग कुपोषण के शिकार होते है। 

अप्रत्यक्ष रूप से तंबाकू सेवन का असर परिवार के अन्य लोगों पर भी पड़ता है। व्यस्क लोगों की देखादेखी परिवार के  बच्चे व महिलाओं में में भी यह लत बढ़ती जा रही है। तंबाकू खरीदने पर धन की बर्बादी के साथ असमय परिवार के सदस्य की मृत्यु से होने वाली क्षति और बीमारी का इलाज कराने में व्यय होने वाले धन का नुकसान होता हैं यह एक ऐसा जटिल दुष्चक्र है जिसके चक्कर में आने पर गरीबों को अत्यधिक हानि होती है। 

तंबाकू सेवन की रोकथाम के लिए सरकार ने प्रभावी कानून बनाये। तंबाकू उत्पाद को महंगा करने के लिए टैक्स में वृद्धि की। अनेक गैर सरकारी संगठन, स्वैच्छिक स्वास्थ्य संगठन, शिक्षण संस्थाएं, चिकित्सक, विभागीय अधिकारी आदि सभी तंबाकू सेवन नियंत्रण के लिए अपने-अपने स्तर पर अथक प्रयास करते है, परन्तु जब तक बड़े समुदायों के प्रतिष्ठित व प्रबुद्ध लोग, मान्य नेता तंबाकू उन्मूलन के लिए सक्रिय रूप से सम्मिलित नहीं होगे तक तक लोगों में इस कार्यक्रम की विश्वसनीयता व साख नहीं बढ़ेगी। जब तक जन जाग्रति पैदा कर नागरिकों का जनसमर्थन प्राप्त नहीं कर लेंगे तब तक इसको आमजन का कार्यक्रम नहीं बना पायेंगे और इसकी सफलता दूर होती जायेगी। 

लोगों को तंबाकू के दुष्प्रभावों को समझाना व उनमें जाग्रति पैदा करना और यह विश्वास दिलाने की आवश्यकता है कि तंबाकू एक नशा है और उसके हानिकारक प्रभाव है। तंबाकू से होने वाली हानियों से रू-ब-रू करायें बिना पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं की जा सकेगी। अनेक समाजों के लिए अलग-अलग रणनीतियां बनानी होगी। जन सक्रियता बढ़ानी होगी। जन-जन तक इसके दुष्प्रभावों का संदेश पहुंचाना होगा। पंचायत राज संस्थाओं एवं सामुदायिक संगठनों का सहयोग प्राप्त करने की अत्यन्त आवश्यकता है। पंचायत राज संस्थाओं के कारगर कदम गांवों में तंबाकू के उपयोग को रोक सकते है। 

गरीब और कम शिक्षित लोग धनवान और शिक्षित लोगों की तुलना में तंबाकू का अधिक सेवन कर रहे है। तंबाकू नियंत्रण के कार्यक्रम गरीब समुदाय को लक्ष्य कर बनाने की आवश्यकता है। केवल विज्ञापन, दण्डात्मक कार्यवाही से पूर्ण सफलता नहीं मिल सकेगी। तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रमों में वैज्ञानिक तर्को के साथ धर्म का मिश्रण किया जा सकता है। धार्मिक समूह व धर्माधिकारियों ने तंबाकू व अन्य मादक पदार्थो को वर्जित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इस्लाम के मूल उद्देश्यों में भी तंबाकू को इस्लाम के विरूद्ध एवं हानिकारक माना है। हिन्दू धर्माचार्यो ने भी तंबाकू सेवन को व्यसन माना है। ईसाई मत में तंबाकू का उपयोग वर्जित किया गया है। जन संगठन, समूह एवं धर्माचार्य जन जाग्रति पैदा कर लोगों में तंबाकू नियंत्रण के लिए एक चेतना पैदा कर सकते है। इसमें शिक्षण संस्थाओं का उपयोग भी आवश्यक हैं 

सरकार को तंबाकू उद्योग से राजस्व मिलता है। इस उद्योग से लोगों को रोजगार भी मिलता है परन्तु तंबाकू सेवन से होने वाली हानियों के प्रति यदि सजग किया जाये और तंबाकू उत्पाद कम किये जायें तो अधिक लाभप्रद होगा। सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन प्रतिषेध, व्यापाद उत्पादन वितरण विनियम) अधिनियम 2003 से तंबाकू के उपयोग, तंबाकू के धुंए, अनचाहे तंबाकू के संबंध में सभी दोषियों के विरूद्ध कार्यवाही करने के लिए बनाया गया है। 

लोगों के स्वास्थ्य में सुधार लाने की दृष्टि से लोक हित में तथा लोक स्वास्थ्य संरक्षण करने के लिए यह अधिनियम प्रभावशाली है। कानून तंबाकू सेवन और नियंत्रण से सीधा जुड़ा हुआ है। परन्तु जन सहयोग और जनमानस में बदलाव से ही इससे छुटकारा मिल सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषकर कृषकों, मजदूर वर्ग में जन-जन तक यह विश्वास जगाना आवश्यक है कि धूम्रपान से गरीब और अधिक गरीब बनता है। इससे न केवल धन जाता है बल्कि स्वास्थ्य भी जाता है और परिवार के हितों पर इसका विपरित प्रभाव पड़ता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)