कविता “रूमाल”

लेखक : तिलकराज सक्सेना 

जयपुर (राजस्थान)

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“इश्क़” में बेवफ़ाई मिलने पर

कोई अश्क़ों का समन्दर बहाता है,

कोई अश्क़ों के सैलाब में डूब जाता है,

पर हमारे पास एक रूमाल है,

जो हमारे सारे अश्क़ सोख जाता है,

एक बार शर्त लगी बादलो से हमारी,

शहर में बाढ़ लाने की,

बादल बरस कर थक गया, हमने रूमाल झाड़ा,

बादल को ज़गह ना मिली शर्म से मुहँ छुपाने की।