पत्थर का दिल

कविता 

लेखक : तिलक राज सक्सेना 

शिक्षाविद् व लेखक जयपुर।

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बेश कीमती बहुत था,

चमकता भी कोहिनूर सा था,

बस पिघलता ही नहीं था,

दिल पत्थर का था मेरे यार का।

ऐसा नहीं कि मनाया नहीं किसी ने उसे,

पर उसूल का पक्का था, मनका सच्चा था,

हठी बच्चे सा था,

दिल मेरे यार का पत्थर का था।

थोड़े से अपने मतलब के लिए,

जाने किस बदनसीब ने उसे तोड़ा था,

बमुश्किल उसने दिल के टुकड़ों को जोड़ा था,

शायद इसलिये अब,

दिल मेरे यार का पत्थर का था।