क्लीन एनर्जी को तरजीह दिये बिना मुनाफ़ा और विकास मुश्किल

निशांत की रिपोर्ट 

लखनऊ (यूपी) से 

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ऊर्जा क्षेत्र की देश की अग्रिणी सार्वजनिक गैर बैंकिंग वित्‍तीय कम्‍पनियां (एनबीएफसी) पीएफसी और आरईसी नई प्रौद्योगिकियों (पवन बिजली सौर ऊर्जा बैटरी स्टोरेज और इलेक्ट्रिक वाहन आदि) के हिसाब से खुद को पर्याप्त रूप से बदल नहीं पाई हैं जिसके चलते इनके विकास और मुनाफ़ा कमाने की दर ठहरी हुई है। दरअसल ये दोनों ही एनबीएफसी भारत के मौजूदा एनेर्जी ट्रांज़िशन को आत्‍मसात करने में नाकाम साबित हो रही हैं।

इन बातों का पता चलता है थिंक टैंक ‘क्‍लाइमेट रिस्‍क होराइजंस’ के एक ताजा अध्‍ययन में जिसमें यह चेतावनी दी गयी है कि अगर इन कंपनियों ने सुधारात्मक कार्यवाही नहीं की तो इनका विकास बहुत मुश्किल है। विश्लेषण में कहा गया है इन कंपनियों द्वारा कोयले से बनने वाली बिजली के वास्ते लिए जाने वाले कर्ज में कमी होने के बावजूद कंपनियों की लाभदेयता और उनके शेयर का मूल्य तब तक बेहतर नहीं होगा जब तक रिन्यूबल एनेर्जी तथा अन्य ट्रांज़िशन संबंधी क्षेत्रों के वित्तपोषण की दिशा में बहुत बड़े पैमाने पर तेजी से काम नहीं किया जाएगा।

अनुमानों के मुताबिक एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए होने वाले निवेश की दिशा में सुधार किए बगैर पीएफसी और आरईसी का शुद्ध लाभ वित्तीय वर्ष 2022 से 2025 के बीच क्रमशः मात्र 0.2% और 2.5% ही रह जाएगा।

रिन्यूबल एनेर्जी प्रौद्योगिकियों के किफायती होने, थर्मल बिजली क्षेत्र के मुनाफे में गिरावट होने और जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं की वजह से कोयला आधारित बिजली की नई परियोजनाओं की संख्या में गिरावट आई है। निजी निवेशकर्ता भारत में रिन्यूबल एनेर्जी के विस्तार पर दिल खोलकर निवेश कर रहे हैं। पीएफसी और उसकी सहायक कंपनी आरईसी ऐतिहासिक रूप से देश में बिजली क्षेत्र को कर्ज देने वाली सबसे बड़ी कंपनियां रही हैं लेकिन यह दोनों ही अपने वित्तपोषण को रिन्यूबल एनेर्जी की दिशा में उस पैमाने पर मोड़ने में कामयाब नहीं हो पाई हैं जितना कि निरंतर विकास और मुनाफे के लिए जरूरी है। पीएफसी की सकल ऋण परिसंपत्तियों में रिन्यूबल एनेर्जी की हिस्सेदारी 4% से बढ़कर सिर्फ 11% ही हुई है और वित्तीय वर्ष 2018 से 2021 तक आरईसी द्वारा दिए जाने वाले कर्ज में रिन्यूबल एनेर्जी की हिस्सेदारी 3-4% पर स्थिर रही है।

ऊर्जा क्षेत्र के हाल के रुझानों से पता चलता है कि पिछले दशक के उलट भविष्य में पीएफसी और आरईसी को कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं से तरक्की नहीं मिलेगी, क्योंकि वित्तीय वर्ष 2018 से पीएफसी और आरएसी द्वारा कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं के लिए कर्ज देने की दर में गिरावट आई है। इस दौरान जहां पीएफसी में यह दर 71% से घटकर 47% रह गई है वहीं आरईसी में यह 45 से घटकर 40% हो गई है। क्लाइमेट रिस्क होराइजंस ने जलवायु संबंधी नीति में व्यापक बदलाव के मद्देनजर यह अनुमान लगाया है कि आने वाले वर्षों में इन दोनों कंपनियों द्वारा ऊर्जा की परंपरागत परियोजनाओं के लिए ऋण देने की दर में गिरावट आएगी।

क्लाइमेट रिस्क होराइजंस के अभिषेक राज ने कहा, "पीएफसी परंपरागत ऊर्जा उत्पादन परियोजनाओं के वित्तपोषण पर काफी हद तक निर्भरता बनाए हुए है और रिन्यूबल एनेर्जी परियोजनाओं के लिए ऋण देने के मामले में वह बहुत पीछे है। आने वाले वर्षों में पीएफसी और आरईसी दोनों को ही रिन्यूबल एनेर्जी तथा अन्य एनेर्जी ट्रांज़िशन क्षेत्रों में उल्लेखनीय वृद्धि करने की जरूरत होगी। ऐसा करके ही वे नई थर्मल पावर परियोजनाओं के लिए कर्ज देने की मौजूदा दर का मुकाबला कर सकेंगी और ऊपर से लेकर नीचे तक एक सतत विकास को हासिल कर सकेंगी।"

उन्होंने कहा, "10% शुद्ध लाभ हासिल करने के लिए पीएफसी और आरईसी को अगले तीन वर्षों के दौरान रिन्यूबल एनेर्जी परियोजनाओं के लिए कर्ज देने में में क्रमशः 142% और 156% सीएजीआर विकास दर हासिल करनी होगी। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्हें आने वाले तीन वर्षों में रिन्यूबल एनेर्जी परियोजनाओं के लिए लगभग 497315 करोड़ रुपए वितरित करने होंगे। यह धनराशि लगभग 89 गीगावॉट उत्पादन क्षमता वाली सौर ऊर्जा और 38 गीगावॉट क्षमता वाली पवन ऊर्जा परियोजनाओं की ऋण पूंजी संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी। यह वर्ष 2030 तक 450 गीगा वाट रिन्यूबल एनेर्जी उत्पादन के भारत के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में दूरगामी कदम साबित होगा।"

क्लाइमेट रिस्क होराइजंस के सीईओ आशीष फर्नांडिस ने कहा, "हमारे विश्लेषण में कहा गया है कि पीएफसी और आरईसी की लाभदेयता बनाए रखने के लिए हरित बांड के माध्यम से कम लागत वाली अंतरराष्ट्रीय पूंजी निरंतर हासिल करना ही एक महत्वपूर्ण कुंजी होगा। दुर्भाग्य से कोयला आधारित नई परियोजनाओं को कर्ज देना जारी रखने से एक भौतिक जोखिम उत्पन्न होगा, क्योंकि ईएसजी से जुड़े निवेशक जीवाश्म ईंधन पर निवेश करने से परहेज कर सकते हैं और वह पीएफसी द्वारा नए कोयला बिजली घरों को दिए जाने वाले वित्तपोषण से खुद को दूर रख सकते हैं।" (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)