लेखक : राम भरोस मीणा
जाने माने पर्यावरणविद् व समाज विज्ञानी है।
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मानवीय विकास की एक सीमा 21 वीं सदी प्रारम्भ होते मानव भुल गया वह भौतिकवादी विचारधाराओं के चलते सम्पूर्ण प्राकृतिक व मानवीय संसाधनों पर अपना अस्तित्व बनाए रख कर अपने को श्रेष्ठ बताना चाहता हैं, आज देश दुनिया में नए नए अनुसंधान, विकास जोरों से चल रहे हैं, प्रभाव, परिणाम सभी देखते भी है, करना चाहिए या नहीं करना चाहिए इस को लेकर सभी अपनी अपनी बातें करते हैं लेकिन सत्ता शक्ति के सामने हिम्मत नहीं जुट पाती अंत में उन्हें उसके परिणाम भुगतने पड़ ही जाते हैं जैसे जोशी मठ में हो रहा है।
जोशीमठ जैसे दर्जनों शहर जो पिछले कुछ दशकों में इतनी तेज़ रफ़्तार से विकसित हुएं जिनका अनुमान लगाना मुश्किल है, यह सब देन होटल, पर्यटन के साथ वहां विकसित किए एश आराम के वे सभी संसाधन हैं जिनका व्यक्ति को वहां पहुंचने में सहयोग रहा जो सरकार ने उपलब्ध कराए। लेकिन भूगर्भीय संरचनाओं, मिट्टी पानी, वनस्पतियों के साथ आन्तरिक व बाहरी भौगोलिक परिस्थितियों को समझने तथा सांझा करने के बावजूद यहां तपोवन विष्णु गाड़ पन बिजली परियोजना की स्थापना होती, सुरंगें बनाई होती।
एन टी पी सी को जानना चाहीए था की यहां की मिट्टी ग्लेशियरो पर जमा धुल से बनी हुईं हैं, इसमें अधिक वज़न सहने की क्षमता नहीं है,अंदर से खोखला होने पर ऊपरी भाग के गिरने की सम्भावना ज्यादा बन जाती इन सभी से प्राकृतिक आपदाएं भूस्खलन, भूकंप, बाढ़ का आना स्वाभाविक होता है पिछले एक दशक में दर्जनों घटनाएं हुई जिनमें मानव स्वयं का सहयोग ज्यादा रहा चाहें 2013 में केदारनाथ धाम की त्रासदी, 2021 में धोली गंगा में बाढ़ से अलक नंदा में बाढ़ से कटाव व टिहरी बांध से उपजी समस्या हो सभी मानव की अपनी मर्जी से प्रकृति के साथ हुएं छेड़छाड़ से बनी, परिणाम स्वरूप आज जोशी मठ के धराशाही होने के संकेत देकर प्रकृति ने यह अहसास करा दिया है की वर्तमान विकास ही विनाश का कारण है।
एल पी एस विकास संस्थान के प्रकृति प्रेमी राम भरोस मीणा ने अपने निजी विचारों में बताया की धार्मिक तथा प्राकृतिक सौंदर्य स्थलों पर बढ़ते दबाव के साथ वन वनस्पतियां नष्ट होने, खन्ना कार्य करने, विकास के साथ पर्यावरणीय छेड़छाड़ को रोकना बहुत जरूरी है, जनसंख्या का बढ़ता दबाव इन क्षेत्रों में ख़तरे से कम नहीं होता इसलिए जोशी मठ के साथ साथ इस प्रकार से ग्लेशियर क्षेत्रों में विकसित होते शहरीकरण पर प्रतिबंध होना जरूरी है जिससे किसी प्रकार की आगामी समय में त्रासदी पैदा नहीं हो सकें।इन क्षेत्रों में विकास की गतिविधियां ना होकर सरकार व समाज को संरक्षण देना चाहिए जिससे इनका अस्तित्व बना रह सके साथ ही पर्यावरणीय संरक्षण पर ध्यान देना जरूरी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)