लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं)
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कांग्रेस किधर जा रही है। कांग्रेस के किसी छोटे या बडे नेता से बात करें तो वह स्वीकार करेगा कि पार्टी बहुत बुरे दौर से गुजर रही है। कमजोर हो गई है अनेक समस्याओं से ग्रस्त है। सर्वप्रथम तो पुरानी पीढी के नेता रिटायर होने के क्रम में है। उनके बाद की पीढी में उनके कद का कोई नेता नहीं है। पार्टी में कई प्रतिभावान और सोच विचार वाले नेता है परन्तु उनका जमीन से जुडाव नहीं है। उनकी महत्वाकांक्षा बढ़ गई है। चुनावों के पूर्व से यूपी, गुजरात, पंजाब, दिल्ली में पीढ़ियों से कांग्रेस का लाभ प्राप्त कर रहे नेताओं ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली है। हरियाणा में कांग्रेस के केन्द्रीय नेता ने अजय माकन को हरा दिया है, अन्य प्रान्तों में यही हाल है। भाजपा व प्रधानमंत्री परिवारवाद व भ्रष्टाचार के नाम पर काँग्रेस नेतृत्व को घेर रही है।
कांग्रेस की हाईकमान, गांधी परिवार, को भारत सरकार ने नेशनल हेलाल्ड अखबार के मामले में ईडी की मार्फत नोटिस दिया है, सुनवाई के लिए बुलाया है, गिरफ्तारी भी हो सकती है। राज्यसभा चुनावों में हरियाणा में कांग्रेस उम्मीदवार की हार, वह भी कई पीढ़ियों से कांग्रेस के कारण सत्ता में रहे केन्द्रीय नेता के कारनामे के कारण, दुखद है। राजस्थान में एक बड़े नेता ने भी अपना वोट खारिज कराया। कई कांग्रेस सदस्यों ने उल्टे सीधे नुकसानदायक वक्तव्य दिये है। ऐसे समय कांग्रेस को सुदृढ़ करने के लिए एक बड़ा छटनी अभियान चलाकर, पूरी जांच व सिद्धांत के साथ महत्वाकांक्षी, अनुशासनहीन व डाउटफुल चरित्रों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए।
सर्वप्रथम पार्टी को ऐसे सभी नेताओं की छंटनी करनी चाहिए जिन नेताओं का पार्टी से लगाव नहीं है, उन्हें पदों से हटाकर पृथक करना चाहिए तदुपरान्त पार्टी के पास इस समय कई मुद्दे है उनके संबंध में संघर्ष करना चाहिए। विपक्ष की भूमिका मेें कमजोर है। हाल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्षन फीका रहा। अनुषासनहीनता और गुटबाजी के कारण पार्टी घोर संकट में है। 2014 के चुनावों में सत्ता खोने के बाद से पार्टी के लिए स्थितियॉं बदतर होती गई है। वरिष्ठ नेताओं के भाषणों में पार्टी की अन्दरूनी समस्याओं की झलक दिखती है। पार्टी में कुछ अन्दर के छिपे षत्रु भी है, षीर्ष नेतृत्व के विरूद्ध छिपे खुले रूप से आवाज उठाते रहते हैं, आलोचना करते रहते है।
पार्टी में गतिषील नेता, प्रमुख रणनीतिकार, प्रबन्धक नहीं रहे अथवा असंतुष्ट बने हैं। कुछ ने पलायन कर लिया। जो है वे मुख्यमंत्रियों के दावेदार है जबकि आम कार्यकर्ता व कर्ताधर्ता उन्हें आगे बढाने के इच्छुक नहीं है। पार्टी को राजस्थान में उपमुख्यमंत्री के इस्तीफे से पैदा संकट से जुझना पडा था। मध्यप्रदेष व पंजाब की सत्ता को खोना पडा। दिल्ली व यूपी में यही हुआ, गुजरात व हरियाणा में हो रहा है। एक अन्य बडी समस्या कई मुद्दों पर पार्टी में सहमति नहीं होना है। पहले पार्टी में मतभेद सामने नहीं आते थे अब तो पार्टी के छोटे-मोटे नेता भी पार्टी को नुकसान पंहुचाने की कीमत पर अपना मत खुलकर व्यक्त करने में कोई संकोच नहीं करते। तस्वीर निराषाजनक है।
अषोक गहलोत जैसे पार्टी के वफादार आषावादी नेताओं को विष्वास है कि पार्टी ष्षीघ्र ही मजबूत होकर सामने आयेगी। संकट की स्थिति का उपयोग कर पार्टी को मजबूत करने के लिए जोर दे रहे हैं। उनकी दलील है लोग तो आते-जाते रहते है जबकि पार्टी सर्वोपरि है। आखिर कांग्रेस एक राष्ट्रीय बडी पार्टी है जिसका अपना जनाधार है। चुनाव परिणामों में हार और जीत का सिलसिला हमेषा रहता है। इसलिए कांग्रेस अगले वर्ष के चुनावों में बेहतर प्रदर्षन कर पायेगी।
अगले वर्ष विधानसभाओं के चुनाव होने हैं, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेष, राजस्थान, छतीसगढ, हिमाचल आदि में। यह चुनाव कांग्रेस के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होंगे। वर्तमान में इनमें केवल कुछ प्रान्तों में कांग्रेस की सरकार है। पार्टी को अन्दरूनी सौहार्द कायम करना होगा। पार्टी को केवल ज्ञापन व मामूली प्रदर्षन के बजाय हर मुद्दे पर जनसमर्थन जुटाने की कौषिष करनी होगी। चाहे मुद्दा महंगाई का हो या पैट्रोल, डीजल की कीमतों का या अन्य प्रबन्धकीय लापरवाही भ्रष्ट्राचार या आर्थिक सवाल है। विपक्ष के लिए, कांग्रेस के लिए समय उपयुक्त है। भाजपा को कई मुद्दों पर अपना बचाव करना पडेगा यदि सषक्त कांग्रेस एकजट होकर आगे आये।
भाजपा साम्प्रदायिक तनाव पैदा कर रही है। प्रषासनिक वित्तीय व राजनैतिक विफलता को छुपाने के लिए बहुसंख्यकवाद व हिन्दुवाद को लेकर चल रही है। सात प्रान्तों में हिंसात्मक घटनाऐं त्यौहारी सीजन में हो चुकी है। राजस्थान में घट रही घटनाओं के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ही निषाना बने है। षहरों व कस्बो में दंगाईयों ने जगह-जगह आगजनी, हमले किए उससे स्पष्ट है, पार्टी ने दंगाईयों को संरक्षण दिया हुआ है। उल्टे आरोप लगाये जा रहे है प्रषासनिक मषीनरी साम्प्रदायिक व तुष्टीकरण का दृष्टिकोण अपनाकर सुरक्षा के प्रबन्ध कर रही है। अब धार्मिक तनावों का दौर अब भयावह बन रहा है। अयोध्या के बाद अब वाराणसी, मथुरा, आगरा, ताजमहल के मुद्दे उठाये जा रहे है। अराजकता की स्थिति उत्पन्न की जा रही है। केन्द्र की आर्थिक विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए से साम्प्रदायिक मुद्दों को हवा दे रही है। बेचैनी राजनीतिक अधिक है। ग्राफ गिराने से राजनैतिक बेचैनी अधिक हो गई है।
साम्प्रदायिक ताकत से लडने के लिए कांग्रेस व विपक्ष को वैचारिक आधार पर एकजुट होने की आवष्यकता है। साम्प्रदायिक हिंसा को असली उत्तर सही तरीको से सद्भावना का वातावरण तथा जागृति पैदा कर दिया जा सकता है। साम्प्रदायिक उपद्रवों को राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाए अराजकता की स्थिति उत्पन्न नहीं होने दिया जाए इसके लिए कांग्रेस को मजबूती से एकजूट, विपक्ष को साथ लेकर ईमानदारी से कार्य करना होगा, लडना होगा। मौजूदा बदहाली से उबरने के लिए पार्टी को पूरा जोर लगाना पडेगा। कांग्रेस में अनुशासन व नेतृत्व के प्रति पूर्ण आदर व विश्वास आवश्यक है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)