सांभर को जिला घोषित करना सरकार के लिये हर दृष्टि से महत्वपूर्ण : कैलाश शर्मा

अभिभाषक संघ ने मुख्यमंत्री के नाम एसडीएम को सौंपा अभ्यावेदन

एकजुटता के लिये 22 को सांभर बंद का आह्वान

शैलेश माथुर की कलम से

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सांभरझील (जयपुर)। सांभर को जिला बनाने के लिये करीब छह दशकों से क्षेत्र की जनता को इंतजार बना हुआ है, लेकिन प्रदेश सरकार की ओर से समय समय पर नव जिला सृजित करने के लिये गठित की गयी कमेटी के समक्ष भेजे गये सैंकड़ों प्रस्ताव पर छियासठ सालों से कोई फैसला नहीं हो सका है। प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 1956 के बाद से अनवरत सांभर को जिला घोषित करवाने के लिये सांभर के अनेक प्रबुद्धजनों ने प्रमुखता से इस मांग को उठाया था, उसके बाद अंतिम दफा यह मांग वर्ष 2012 में पुरजोर तरीके से अभिभाषक संघ के बैनर तले चलायी गयी मुहिम के तहत उस वक्त मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत व कमेटी के अध्यक्ष रहे रिटायर्ड आईएएस जीएस संधु को क्षेत्र की तमाम भौगोलिक व ऐतिहासिक जानकारी के साथ वे सभी जरूरी आंकड़े उपलब्ध करवाये गये थे जो किसी क्षेत्र को जिला बनाये जाने के लिये प्रमुख आधार रखते है। 

उस वक्त प्रदेश के मुखिया गहलोत ने सांभर को जिला का दर्जा दिलवाये जाने पर विचार करने का अभिभाषक संघ को पूरा भरोसा दिलाया था, उसके बाद निवर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी वरिष्ठ अधिवक्ता नरेन्द्र कुमार शर्मा के सानिध्य में नये सिरे से इस आशय का ज्ञापन प्रस्तुत किया गया था। इसी संदर्भ में गुरूवार को सांभर बार एसोसिएशन (अभिभाषक संघ)के तमाम पदाधिकारियों व सदस्यों की तरफ से मुख्यमंत्री के नाम एसडीएम को विस्तृत विवरण के साथ सांभर उप जिला को जिला का दर्जा दिये जाने का अनुरोध करते हुये एक अभ्यावेदन सौंपा गया है। 

दूसरी तरफ सांभर को जिले का दर्जा दिलवाने हेतु स्थानीय लोगों की ओर से सरकार का ध्यान आकृष्ट करवाने व एकजुटता प्रदर्शित करने के लिये 22 अगस्त को सांभर बंद रखने का आह्वान किया जा रहा है। इस मामले में प्रमुख विचारक व समाजसेवी कैलाश शर्मा से बात करने पर बताया कि  राजस्थान सरकार के लिए न केवल आर्थिक और प्रशासनिक लिहाज से लाभकारी है, बल्कि इससे सामाजिक-सांस्कृतिक उद्भव भी होगा। एक मोटा अनुमान है, सांभर जिला मुख्यालय स्थापित होने के बाद राजस्थान सरकार को तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक के अतिरिक्त राजस्व की जहाँ प्राप्ति हो सकेगी, वहीं एक लाख से अधिक युवाओं को रोजगार के नये अवसर भी सृजित होंगे। 

यही वजह है कि प्रदेश में जहाँ-जहाँ से जिला बनाने की जो मांग आ रही है, उसमें सांभर सबसे पहले रिजर्व करता है। राजस्थान में प्रशासनिक इकाइयों के पुनर्गठन के क्रम में जिला बनाने की मांग को लेकर आई सिफारिशों की अनुशंसा को लेकर जो समिति पूर्व प्रशासनिक अधिकारी रामलुभाया की अध्यक्षता में बनी है, उसकी अंतरिम और अंतिम रिपोर्ट अभी आना बाकी है। पर अधिकारिक सूत्रों के अनुसार जिला बनाने के क्रम में राजस्थान के सबसे प्राचीन कस्बे सांभर को वरीयता मिलती दिख रही है। 

उनका कहना है कि प्रस्तावित सांभर जिले में दो अतिरिक्त जिला कलेक्टर कार्यालयों दूदू और कुचामन सिटी को समाहित किये जाने की सूचना है, अर्थात नागौर और जयपुर जिले से दो अतिरिक्त जिला कलेक्टर कार्यालय क्षेत्र लिए जाने की तैयारी बतायी जा रही है। यह भी सुनने में आ रहा है कि अतिरिक्त जिला कलेक्टर दूदू के अलावा जयपुर जिले से दो उपखंड सांभर और दूदू तथा नागौर जिले से कुचामन सिटी, मकराना और नावां उपखंड लिए जा रहे हैं। इस तरह पांच उपखंड सांभर जिले में आ रहे हैं। इसके अलावा जयपुर जिले की पांच तहसीलें दूदू, मौजमाबाद, सांभर, जोबनेर और किशनगढ़ रैनवाल को इसमें लिया जा सकता है। यह भी बताया जा रहा है कि उधर नागौर जिले से कुचामन, मकराना और नावां तहसील इसके दायरे में आ रही है। 

इसके अलावा जयपुर जिले की पांच पंचायत समितियां दूदू, मौजमाबाद, सांभर, जोबनेर और किशनगढ़ रैनवाल तथा नागौर जिले की तीन पंचायत समितियां नावां, कुचामन और मकराना को इसमें शामिल किये जाने की भी चर्चा जोरों पर चल रही है। बता दें कि सांभर उपखण्ड में करीब तीस वर्ष पहले तहसील फागी व दूदू सम्मिलत थी इनके टूटने के बाद प्रशासनिक सीमाएं काफी सिकड़ गयी और अब तहसील किशनगढ रेनवाल को अलग से तहसील का दर्जा मिलने व जोबनेर को उपखण्ड घोषित करने के बाद सांभर उपखण्ड का अस्तित्व और कमजोर पड़ गया है। सांभर के चहुंमुखी विकास के लिये आज तक फुलेरा विधानसभा क्षेत्र में जितने भी विधायक चुनकर आये उन्होंने भी इससे बैरूखी ही दिखायी। सत्ता व विपक्ष से जुड़े राजनेताओं में जब तक सरकार पर दबाव बनाने का माद्दा नहीं होगा तो किसी भी सूरत में जिले की आस करना एक प्रकार से बेमानी ही होगा।