कहानी : भूल
लेखिका : ममता सिंह राठौर

कानपुर, गाज़ियाबाद

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सुबह की चाय के साथ पेपर पढ़ रहीं कामिनी रावत ने गेट पर किसी की आवाज सुनी तो, महुआ को आवाज दी देख कौन है? जी कह कर महुआ गेट पर पहुँची तो देखा प्रेस वाला दीपक, हाँ भैया कैसे, अरे महुआ मैं मैडम जी के कपड़े लेने आया था की मैडम जी से मिल भी लूं कुछ काम हो तो मैडम जी हमें बताएं  मेरे चार पैसे हो जाएंगे। ठीक मैं  मैडम जी को बता दूँगी। कह कर महुआ चल दी, दीपक ने पीछे से आवाज दी मैडम जी--- महुआ ने पलट कर कहा मैडम गुस्सा करेंगी  वो किसी से नहीं मिलती, इतना सुनने के बाद भी बड़ी देर तक दीपक वही पर खड़ा रहा सोचता रहा बड़ी कोठी में काम मिल जाता तो बड़ी सहूलियत हो  जाती। मैडम रावत ने पूछा कौन था ? जी मैडम जी वो दीपक प्रेस के लिए कपड़े-- और कुछ काम मांगने आया था--- मैडम अच्छे से कपड़े प्रेस करता है यहाँ सभी इसी से कपड़े प्रेस कराते हैं इसकी बीवी सब्जी लगाती है वहीं पर अच्छे से देती है---

हूँ- जा तू अपना काम कर कह कर मैडम रावत बगीचे में टहलने लगी, थोड़ी देर में महुआ ने कहा सारा काम हो गया। मैं जाऊ हां जा शाम की तेरी छूट्टी है कल सुबह जल्दी आना, भैया आ  रहा है तो सारा काम समय पर, जी मैडम कह कर महुआ चली गयी। इधर मिस्टर रावत को तैयार होते देख कर कामिनी जी ने  कहा आज मोनिका के घर किटी पार्टी है तो मुझे आने में देर हो जायेगी अच्छा जी

मिस्टर रावत ने मुस्कराते हुए कहा आज तो कपड़ो गहनों की नुमाइसे होगी स्टेटस पे स्टेटस, कामिनी जी ने घूरते हुए चुप रहिए ऐसा ही होता है, अच्छा जी हमें तो पता ही नहीं था कह कर मिस्टर रावत अपना बैग उठा कर चल दिए, कामिनी जी गुनगुनाती हुई अपने बेडरूम में आकर अपनी तैयारी करने लगी आज की पार्टी तो बहुत खास थी, मोनिका हमेशा उसकी पार्टी में सबसे खास होती  है, सज-धज कर ऊँची हील पहन कर खूब सूरत अंदाज में किसी से फोन पे बात करते हुए कामिनी जी निकलने ही वाली थी की अचानक तेज बारिश आ गयी, बारिश को देख कामिनी जी तेजी से कपड़े उठाने को दौड़ी तो पैर फिसल  गया, और वो वहीं पर तेज आवाज के साथ धड़ाम से गिरी हाथ से फोन छूट कर अलग गिरा कामिनी जी की चीख निकल गयी पर किसी ने सुना नहीं ? कौन सुनता? घर  की दीवारें, अलमारी में रखा पैसा, रखा हुआ सोना या शरीर पे पहने हुए कीमती  वस्त्र, गहने ? कोई नही बोला? आज कामिनी जी को अपना सजा स्वरा रूप, घर में रखी दौलत सब चिढा रहीं थी, कुछ समझ नही आ रहा था क्या करें, अपना शरीर भी नहीं सुन रहा था। 

कैसे उठे, चेतना शून्य सी कितनी देर तक जमीन पर पड़ी रहीं फिर किसी तरह से खिसकते हुए गेट के पास तक आ पहुंची अब बारिश भी बंद हो चुकी थी आवाज लगाई कोई है-- कोई  तभी साइकिल में कपड़े रखे दीपक निकला, जी मैडम जी क्या हुआ, क्या हुआ-- कामिनी ने धीरे से कहा मैं गिर पड़ी हूँ मेरे पैर में चोट लगी है उठा नहीं जा रहा है, अच्च्छा मैडम जी अभी मैं देखता हूँ जल्दी से दीपक ने बगल वाली शर्मा आंटी को बुलाया तो उनका बेटा भी साथ में दौड़ कर आ गया गेट खोला कुर्सी पे धीरे से कामिनी जी कोबिठाया, डाक्टर को फोन किया, रावत जी को भी सूचना दी जब तक डॉक्टर आते शर्मा जी की बहू हल्दी डालकर दूध ले आयी, डॉक्टर ने पैर को देख कर कहा गहरी चोट है, पर कोई दिक्कत नहीं आप अभी होस्पिटल आइये प्लास्टर लगाना पड़ेगा, और कुछ खाने की दवा अभी ले लो जिससे दर्द कम होगा, तब तक मिस्टर रावत भी आ गए, आज मिस्टर रावत को देख कर कामिनी जी की आंखे भर आयी कि  कभी कामिनी जी ने अपने आस पड़ोस य रिस्तेदारो से मतलब नहीं रखा, हमेशा यही सोचती थी मेरे पास सब कुछ है, अच्छा रहन सहन दौलत हमें किसी की क्या जरूरत, पर आज अपने सजे सवारे  रूप को देख कर अपनी सोच पर अफसोस  करती हुई, कामिनी ने दीपक की तरफ हाथ जोड़ कर कहा आज आप ने हमें बचा लिया कल से घर आ जाना काम   देख लेना। यह सुन दीपक ने हाथ जोड़ कर धन्यवाद किया और मिस्टर रावत आसमान की तरफ देखते हुए कुछ बुदबुदाये, भूल सुधार। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)