हर खेत की डोल में लगे पौधे
(लेखक जाने माने पर्यावरण कार्यकर्ता व समाज विज्ञानी है)
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मानव जीवन एक अनमोल होने के साथ यह सत्य है कि पुनः मानव बनने का अवसर प्राप्त होगा या नहीं किसी को इसका पता नहीं । मानव जीवन सत्कर्म व सत्य के साथ हमेशा परोपकारी बनकर कार्य करने आगामी पीढ़ियों के लिए एक अच्छा संदेश अपने किए कार्यों द्वारा देने के लिए होता, मानव का मानव के जीवंत होने के समय अथवा मरणोपरांत कार्यों कर्मों के आधार पर गुणगान होता, जो सत्य युग, द्वापर, त्रेता और वर्तमान कलियुग में किया जाता रहा । पहाड़ चीर कर रास्ता बनाना, पानी के लिए व्यवस्था करना, जंगली जानवरों को संरक्षण देना, नदियों को स्वच्छ बनाए रखना, शिक्षा- चिकित्सा के साथ नए-नए आविष्कार कर कला व संस्कृति को सजाना मुख्य रहा । जिनमें प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का हमेशा ध्यान रखा गया जो वर्तमान में मानव को प्रकृति के साथ जीवन जीने व जीवित रहने का संदेश देती है।
विज्ञान के इस युग में वे सभी विकास के आधार जो द्वापर , त्रेता, सतयुग में दिखाएं या बताएं अथवा पढ़ाए गए, देखने को नहीं मिलते। बीसवीं सदी के प्रारंभ से ही व्यक्ति अपने दायित्व का निर्वाह करना भूल गया परिणाम स्वरूप मानव मर्यादा खत्म होने लगी, परोपकार के कार्यों से दूर होते हुए संपूर्ण पृथ्वी पर अपने हाथों मानव स्वयं खतरा पैदा कर लिया। चारों ओर दुर्गंध भरी हवाएं, धुआं भरा वातावरण, जल का दुरुपयोग, आपसी मानसिक तनाव भरा वातावरण, कार्य नहीं होने पर भी फुर्सत नहीं होना विकास के नाम पर विनाश का वातावरण इस समय देखने को मिलता। जल पाताल पहुंच गए, वन नष्ट हो गए, नदियां मर गई, प्रदूषण फैल गया, जीवनदायिनी ऑक्सीजन कम पड़ने लगी, जिसे देखने से अनुमान लगाया जा सकता है कि आज विनाश का सही समय आ गया है। आने वाली पीढ़ियों के लिए वर्तमान पीढ़ी अपने में बदलाव नहीं कर सकी तो उन पीढ़ियों को जीवंत रहना बड़ा मुश्किल होगा।
21वीं सदी प्रारंभ होते जल जंगल जमीन जानवर चारों को मानव ने चारों तरफ से घेर लिया, अहिंसा के स्थान पर हिंसा होने लगी, व्यक्ति स्वार्थी बन गया, अर्थ के लालच में वह अपनी मान मर्यादा, व्यक्तित्व, चरित्र को दांव पर लगाते हुए कर्तव्य दायित्व, कानून नियम कायदों को भूल गया, अपने निजी स्वार्थ के भाव पैदा हो गए। सरकार, समाज, कानून के ज्ञाता सभी अर्थ को महत्व देते हुए सामाजिक कानूनों सरकारी योजनाओं परियोजनाओं का खुलेआम उल्लंघन होते देख रहे हैं जिनके परिणाम स्वरूप हमारी धरोहर प्राकृतिक संपदा हाथों से छीनी जा रही है। आज हमें आवश्यकता है कि हम पानी को बचाएं, नदियों को बचाएं, जंगल जमीन, जानवरों को बचाने का प्रयास करें, प्राकृतिक वातावरण को शुद्ध बनाए रखने में सहयोग करें, इन्हें लेकर कार्य करने में जुटे, पुराने कानून कायदों मान्यताओं को अपनाएं, अमल करें, समाज में लागू करें, लाभ को समझे, अपने जीवन का कुछ समय इन कार्यों को करने में दें, अपना योगदान बराबर बराबर बनाए रखें जिस से आने वाली पीढ़ियों को बचाया जा सके। उन्हें प्राकृतिक संसाधनों को देखने उपयोग करने का अवसर प्राप्त हो सके।
वर्तमान आवश्यकताओं को मध्य नजर रखते हुए वर्षा जल की प्रत्येक बुंद को संग्रह कर स्टोर करना होगा या भु गर्भ में डाल कर गिरते वाटर लेवल को बनाना होगा। एल पी एस विकास संस्थान के निदेशक व पर्यावरणविद् राम भरोस मीणा ने वर्षा जल संग्रह पर किएं अपने अध्धयन से पाया की राजस्थान में 400mm से लेकर 500mm तक वर्षा होती है यदि इस जल के मात्र पक्की छत वाले मकानों का जल संजोकर रख लिया जाए तो आने वाले समय में पानी की किल्लत से बचा जा सकता है। एक 250sq के मकान की छत से 85000 हजार लिटर पानी संग्रह किया जा सकता है जो 12 व्यक्तियों के लिए वर्ष भर पीने के पानी की पूर्ति करता है, साथ ही एक गांव में जो दो वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बसा हों वहां पांच हजार पौधे खेत की डोल, गोचर, गैरमुमकिन जमीन पर लगें होंने पर 2 डिग्री सेल्सियस तापमान स्वत ही कम हों जाता है।
मानव को मानवीय विकास के साथ आगामी पीढ़ियों के लिए जल,जंगल, जमीन, जानवरों के संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग, आगजनी, अतिवृष्टि, बढ़ते प्रदूषण से बचने के साथ इन्हें संरक्षण प्राप्त हों सके।
प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को समझना, वर्षा जल को सजाना, अधिक से अधिक वृक्षारोपण, वन्य जीवों से मित्र जैसा व्यवहार करने के साथ बढ़ते प्रदूषण को रोकना आदि कार्य होना बहुत जरूरी है जो आज के समय की आवश्यकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने निजी विचार है)