लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी है)
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वर्तमान राजनैतिक परिदृष्य में सवा सौ साल से अधिक पुरानी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की लोकप्रियता का ग्राफ लगभग पैंदे पर है। स्वतंत्रता के बाद देश में लोकतंत्र स्थापित कर बुनियादी विकास की नींव रखने वाली पार्टी जिसने ज्यादातर वर्षों तक राज किया है वह अब सिमट गई है। लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद पार्टी अभी तक पटरी पर नहीं आ सकी है। एक के बाद एक राज्य उसके हाथ से निकलते जा रहे हैं। अगले वर्ष कुछ महत्वपूर्ण राज्यों के चुनाव निकट है। कांग्रेस को नये प्रबन्धन, नई रणनीति व नये नेतृत्व के साथ कठिन लडाई लडनी होगी।
उदयपुर में चिन्तन शिविर का आयोजन हुआ। लडाई फिर सोनिया बनाम मोदी के रूप में दिखाई देने लगी। पचास प्रतिशत पद पचास वर्ष की उम्र से कम के नेताओं को देने का निश्चय किया गया। महात्मा गांधी की जयन्ती से भारत-यात्रा प्रारम्भ करने का निष्चय किया गया। बात नये पुराने, वरिष्ठ बुजुर्ग नेता व युवकों की हो रही है। भारत सरकार की निजीकरण राजनीति, बेरोजगारी व महंगाई के विरूद्ध आन्दोलन कर जन जागृति का निर्णय हुआ। प्रतिक्रिया स्वरूप भाजपा सरकार ने सोनिया स राहुल के विरूद्ध ई.डी. का नोटिस भेजकर नेशनल हेरेल्ड मामले में मनी लान्डरिंग के आरोप पर जांच शुरू कर दी है।
गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों के चुनाव सामने है। उत्तरप्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोआ, मणिपुर में कुछ माह पूर्व ही कांग्रेस चुनाव हार चुकी है। कांग्रेस अभी तक पंजाब में अकालियों से लडती थी इस बार आम आदमी पार्टी से हार गई। आसी लडाई ने उसे बडा नुकसान पहुंचाया है। उत्तर प्रदेश में संगठन की हालत खस्ता है। कांग्रेस के लिए हालात चिन्ताजनक है। सोनिया गांधी 77 सााल की हो गई है उन्होंने 25 साल पहले कप्तानी संभाली थी प्रारम्भ में 5-6 साल में सत्ता में वापसी करा दी। दस साल राज भी करवाया। संगठन चुनाव टाले जाते रहे हैं अध्यक्ष का कार्यकाल बढाया जाता रहा है।
राजनैतिक विश्लेषकों की दृष्टि में कांग्रेस समय पर फैसला नहीं कर पाई है। पार्टी के अधिकांश फैसले राहुल करते हैं परन्तु राहुल गांधी हिचक रहे हैं पुरी तरह से सेनापति नहीं बन रहे। युवा बनाम पुराने का मामला बढेगा। राहुल ने प्रान्तों में जो कप्तान लगाये उनकी हालत छिपी नहीं है कांग्रेस अगर-मगर में फंस रही है। प्रान्तों में अनुशासनहीनता कायम है। भाजपा तोडफोड में लगी है। गुजरात में हार्दिक पटेल जो पानी पी-पी कर मोदी की खिलाफत करते थे भाजपा में सम्मिलित हो गये है।
कांग्रेस आलाकमान को मोह को छोडना होगा पदलोलुप से लेकर पार्टी प्रेमी कार्यकर्ताओं तक में अपने भविष्य को लेकर हताशा की खबदाहट है और नेतृत्व के प्रति हिकारत की घोषित-अघोषित भावना। बेचनी की ऐसी अभिव्यक्तियां किसी राजनीतिक दल में भीषण पराजय के दौर में भी नहीं दिखाई दी। कांग्रेस को एकाधिकारवादि कर्म को छोडना होगा, उसे एक मां व एक पुत्र की पार्टी से ऊपर उठकर, आलाकमना द्वारा मोह छोडकर स्वाभाविक नेतृत्व के महत्व को प्रतिपादित करना होगा। जमीन से जुडे नेताओं को पदासीन करना होगा। बिना मूछों के जो मूछों पर ताव दे रहे हैं उनके स्थान पर स्वाभाविक सक्रिय नेताओं को आगे लाना होगा। आलाकमान की पसंद के बावजूद, जो मुख्यमंत्री नहीं बन सके उनसे पार्टी को बराबर खतरा बना रहा है। जीवन भर कांग्रेस के नाम पर सत्ता में रहे नेता उत्तरप्रदेष, पंजाब, मध्यप्रदेष आदि में पार्टी छोड चुके है। पार्टी कार्यालय सुचारू रूप से नहीं चल रहे। पार्टी के महत्वपूर्ण विंग सुस्त पडे हैं। कैडर कमजोर हो चुका है। वैतनिक अवैतनिक जमीनी कायकर्ताओं का अभाव है। ब्लाक, जिला, प्रदेश, इकाईयां सक्रिय नहीं है।
अभावी नेताओं को राज्यों का दायित्व दिया टिकट वितरण में गडबडियां हुई। जनता में कांग्रेस की छबी एक समुदाय सम्प्रदाय विशेष के प्रति उदार होने की बनी है और व सम्प्रदाय भी कांग्रेस से छिटकर विभिन्न राजनीतिक दलों में बंटा है यह घातक सिद्ध हो रही है। अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछडे वर्गो के लिए कांग्रेस प्रिय नहीं रही यद्यपि सर्वण वोटों की कास्ट पर कांग्रेस उनके हितों के लिए बहुत कुछ किया है। कांग्रेस ने सेहल लैफ्ट नीति छोडकर दक्षिणपंथी सेंट्रल राइट नीति अपनाई और वहीं दक्षिणपंथी भाजपा से मात खा गई। अल्पसंख्यक साथ नहीं रहे, बहुसंख्यक पहले से छिटके है। हरित व श्वेत क्रान्ति की जनक पार्टी किसान मजदूरों से भी दूर हो गई है। कांग्रेस को पालक की परिधि से निकलकर जन तथा जमीन के योद्धाओं को उनका उचित स्थान तथा महत्व देना होगी। तभी यह राष्ट्रीय पार्टी पुनः उठ खडी हो सकेगी।
भारत विश्व का सबसे बडा जनतंत्र है और कांग्रेस इस देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी, कांग्रेस का दिशाहीन व विचारहीन होना खतरनाक है, लोकतंत्र, समरसता, साम्प्रदायिक सद्भाव व एकता के लिए इसका राजनीति में उपयुक्त स्थान आवष्यक है। राजनीतिक दल विचार से चलते है जनोन्मुखी दिशा में गतिशील हो तो लोकप्रिय होते है। कांग्रेस को प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह चलाने की बजाय, मनोनीत चेहरों की बजाय, राजनीतिक दल की तरह चले जनता में अपनी स्पष्ट नीतियां प्रतिपादित करें। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)