पुरुष और नारी के संयोग से चलती है सृष्टि

भ्रूण हत्या महापाप

लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 

पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान

www.daylife.page 

माता का रज और पिता का वीर्य जब मिलता है तो वह शुक्र जाकर धीरे-धीरे भ्रूण का रूप धारण करता है। यह भ्रूण लड़का होगा या लड़की इसका निर्धारण गुणसूत्रों पर निर्भर करता है। यदि गग का मिलन होता है तो लड़की और यदि गल का मिलन होता है तो लड़के की उत्पत्ति होती है। यह संयोग ही है की दोनों में कौन ज्यादा शक्तिशाली है। पुरुष या स्त्री के ऊपर यह निर्भर नहीं है कि वह लड़का या लड़की पैदा कर सके। इसी को ईश्वरीय विधान कहते है। पुरुष और नारी के संयोग से सृष्टि चलती है। कोई एक सृष्टि को नहीं चला सकता। इसलिए पुरुष और नारी दोनों का सममूल्य है। नारी ही किसी की बेटी होती है किसी की बहू होती है किसी की दादी होती है। 

किन्तु आजकल समाज की विकृत मानसिकता के कारण भ्रूण हत्या का प्रचलन बढ़ गया है। स्त्री और पुरुष का अनुपात सृष्टि में पचास-पचास प्रतिशत का होना चाहिए। सृष्टि को संतुलित रखने और चलाने के लिए यह अनुपात बहुत आवश्यक है। किन्तु भ्रूण हत्या के कारण यह संतुलन बिगड़ता जा रहा है। भ्रूण परीक्षण के द्वारा जब यह पता चलता है कि वह लड़की है तो उसे गर्भ में ही मार दिया जाता है। जब बेटी ही नहीं रहेगी तो संसार कैसे चलेगा? बेटा और बेटी का समान दर्जा होना चाहिए। भारत में यह संतुलन धीरे-धीरे गड़बड़ाता चला जा रहा है। सबसे बड़ा कारण है दहेज प्रथा। दहेज का दानव समाज में बढ़ता जा रहा है। यह एक प्रकार का सामाजिक अभिशाप है। 

लड़की की शादी के समय लड़की के परिवार वालों के द्वारा लड़के या उसके परिवार वालों को नगद या किसी भी प्रकार की किमती वस्तु बिना मूल्य में देने को दहेज कहा जाता है। दहेज एक सामाजिक समस्या है। यह गैर कानूनी है, फिर भी समाज में खुलेआम चल रहा है। दहेज के कलंक और दहेज रूपी सामाजिक बुराई को केवल कानून के भरोसे नहीं रोका जा सकता, इसको रोकने के लिए समाज के हर वर्ग को मिलजुल कर प्रयास करना पड़ेगा। दहेज की बुराई प्रायः सभी जातियों में एकसमान है। भारत में जितने भी धर्म और सम्प्रदाय है उन सभी में यह बुराई समान रूप से व्याप्त है। दहेज का दानव धीरे-धीरे इतना भयंकर रूप धारण करते जा रहा है कि इसको अगर तत्काल समाप्त न किया गया तो भ्रूण हत्या कभी बन्द नहीं हो सकती। 

लड़के और लड़कियां दोनों ही समाज के कर्णधार है। दोनों का बराबर अधिकार है। लेकिन समाज की गिरी हुई सोच के कारण यह माना जाता है कि बेटी पराया धन है और विवाह होने के बाद वह दूसरों के घर चली जायेगी। यह सोचकर कुछ लोग बेटी को अधिक पढ़ाते-लिखाते नहीं। किन्तु जो लोग इस सोच से परे हैं और लड़कियों को उच्च शिक्षा देकर उसका जीवन निर्माण करते हैं वे प्रगतिशील विचारों के होते है। नारी जाति को ईश्वर का यह वरदान है कि वह करूणा की मूर्ति है। हर समाज में अपने को संतुलित रखकर के आगे बढ़ सकती है। जब बेटी ससुराल जाती है तो माता-पिता का जितना ध्यान रखती है पुत्र उतना कभी नहीं रखता। पुत्री कभी भी मायके की बुराई सुनना नहीं पसंद करती। 

वर्तमान परिदृश्य में शिक्षा, सेना, न्याय, चिकित्सा और प्रशासनिक सेवाओं में लड़कियां लड़कों से आगे जा रही है। नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी प्रयासरत है। स्त्री शिक्षा पर सरकार खूब पैसा खर्च कर रही है। हर क्षेत्र में स्त्रियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकारी विद्यालयों में बेटियों को पढ़ाने के लिए निःशुल्क शिक्षा सरकार के द्वारा की गई है। बेटी किसी भी रूप में बेटों से कम नहीं है। बेटा और बेटी दोनों समाजरूपी रथ के दो पहिये हैं। दोनों पहिये अगर ठीक से रहेंगे तभी समाजरूपी गाड़ी ठीक से आगे बढ़ेगी। बेटी दो घरों को संभालती है। जब तक वह पिता के घर में रहती है तो पिता के आंख की पुतली बनी रहती है और जब पति के घर जाती है तो वहां के माहौल में अपने को ढ़ालती है। 

उस परिवार के रीति-रिवाज, खान-पान, रहन-सहन को अपने अनुकूल बनाती है। इसलिए कोई भी कार्य हो सभी कार्यों में पति और पत्नी दोनों की सहमति होनी चाहिए। पढ़ी-लिखी बेटी ही दोनों कुलों को रोशन करती है। नारी सृष्टि को चलाती है। यदि भ्रूण में ही उसका विनाश कर दिया जाये तो सृष्टि कैसे चलेगी? भूू्रण हत्या महापाप है। सरकार के द्वारा भी इस पर कठोर कानून बनाया गया है और सजा का प्रावधान है। भ्रूण परिक्षण पर रोक लगा दी गई है। यदि भ्रूण हत्या जारी रहेगी तो लड़कियों की संख्या कम हो जायेगी और लड़कों की संख्या बढ़ती जायेगी तो निश्चित ही है लड़के कुंवारे रह जायेंगे। इससे भ्रष्टाचार, बलात्कार, नारी उत्पीड़न बढ़ेगा। समाज में अराजकता फैलेगी। 

भारत में इस समय अनेक प्र्रान्तों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का लिंगानुपात बहुत कम है। अगर भू्रण हत्या इसी ढ़ंग से जारी रही तो यह अन्तर दिनों-दिन बढ़ता जायेगा और समाज में स्त्रियों की संख्या घटती जायेगी। इस समस्या का सामना प्रायः सभी को करना पड़ता है फिर भी यह समस्या समाप्त नहीं हो रही है। इसी डर से जब यह पता चलता है कि भ्रूण लड़की है तो उसको गर्भ में ही समाप्त कर देते हैं। धार्मिक दृष्टि से भी भ्रूण हत्या महापाप है। जीवन देना या लेना ईश्वर के हाथ में है। जिसकी हम रक्षा नहीं कर सकते उसको नष्ट करने का अधिकार भी हमारा नहीं है। अतः समाज का यह नैतिक उत्तरदायित्व है कि इस महापाप को रोका जाये और बेटी को बचाया जाये और पढ़ा-लिखा करके समाज को आगे बढ़ाया जाये। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)