उठ रहा जनाजा धर्मनिरपेक्षता का : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)

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कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्ष भारत का सपना देखा। महात्मा गांधी धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति थे उन्होंने राजनीतिक आचरण से धार्मिक नैतिकता को पृथक नहीं किया। नेहरू धर्म को नितांत निजी मामला मानते थे। सरदार पटेल, राजेन्द्र प्रसाद जैसे नेता धर्मनिरपेक्षता को व्यवहारिकता का तकाजा मानते थे। डा. एस.राधाकृष्णन ने संविधान सभा में कहा था ‘‘भारत के लोग चाहे वे हिन्दु हो या मुसलमान, राजा हो या किसान, सभी इस देश के नागरिक है, हमारे लिए यह मानना संभव नहीं है कि हमारी अलग-अलग पहचान है।’’

भारत दस्तावेजों में बेशक धर्मनिरपेक्ष राज्य बना, सभी नागरिकों को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की गई है मगर सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर देखे तो धर्मनिरपेक्षता अब केवल एक आकर्षक विचार है। पं. जवाहरलाल नेहरू ने फ्रांसीसी बुद्धिजीवि आंद्रे मालरा को 1958 में कहा था एक धार्मिक देश में न्यायसंगत राजतंत्र की स्थापना व धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करना बड़ी चुनौतियां है। आजादी के 70 साल बाद भी नेहरू का वह आदर्श हासिल नहीं हो सका है। आज भारत एक ऐसा धर्मनिरपेक्ष देश है जिसमें सम्पूर्ण सम्पूर्ण समाज धर्मो के आधार पर बंटा हुआ है जैसे सहनशीलता और सद्भाव को चुनौती दी जा रही है, नफरत को इज्जत बख्शी जा रही है और धार्मिक कट्टरता को बढोतरी दी जा रही है। मजहब एक जहर बनता जा रहा है। संविधान के आदर्श समाप्त होते जा रहे है।

धर्मनिरेपक्षता व्यवहार के स्तर पर हस्तक्षेप, तटस्थता, उदासीनता में फंसी रही। भाजपा ने बहुसंख्यवाद के नारे के साथ हिन्दु वोट बैंक खडा करने का प्रयास किया। कांग्रेस की नीतियों को अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करार दिया, इस्लामी आतंकवाद का नारा दिया। हिन्दु धार्मिक राजनीति की काट के तौर पर अल्पसंख्यक भी भावनात्मक रूप से असुरक्षित महसूस कर साम्प्रदायिकता की चपेट में आ रहे है। कट्टर धार्मिकता की ओर अग्रसर हो रहे है, कट्टरता, एकाकीपन व पृथकता बढ रही है, पृथक दल व ग्रुप बनाने लगे है। हिन्दुओं में ही साम्प्रदायिकता नहीं फैली इस्लामिक कट्टरता भी बढती गई। राष्ट्रीयता व राष्ट्रवाद, वर्गवाद व सम्प्रदाय-धर्मवाद में तब्दील हो गया। आरएसएस की तरह बहादुरी दिखाने को उत्सुक युवाओं को इस्लामी कट्टरता में ही अपना भविष्य नजर आने लगा। दोनों सम्प्रदायों में बलशाली होने का अहंकार जगा। शाखाओं की बाढ आई तो मदरसों की बाढ आ गई। कई जगह आंतकवादी गुटो और इस्लामी कट्टरता के बीच तार जुडने से विस्फोटक स्थितियां बन रही है। साझा नागरिकता के लिए अनिवार्य शर्त यानि भाईचारा टूट रहा है।

आरएसएस जैसे स्वाग्रही राष्ट्रवादी राष्ट्र को हिन्दु राष्ट्र की मान्यता देते है, हिन्दु कल्पना पर आधारित राष्ट्रगान, नारे व सम्बोधनों के लिए दुराग्रह करते है। राष्ट्र के उपर धर्म को तरजीह देकर कट्टरपंथी आशंका भाव में वृद्धि करते हैं। कांग्रेस को नेहरू-गांधी परिवार की निजी जागीर बताकर कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता को तुष्टीकरण की कथित नीति बताकर हिन्दु पोलेराइजेशन कर रहे है।

श्रीमती इन्दिरा गांधी ने प्रतिक्रियावादी और साम्प्रदायिक तत्वों पर प्रहार किया। परिवार नियोजन कार्यक्रम से नाराजगी सहन की, वफादार मुस्लिम वोट बैंक की नाराजगी सहन की, राष्ट्रीयता को महत्व दिया। आरएसएस व भाजपा उन्हें हिन्दु नहीं मुस्लिम करार देने का दुष्प्रचार कर रहे है।

आज सहिष्णुता का आवरण उतरा जा रहा है। नाराज बहुतसंख्यक व दहशतजदा अल्पसंख्यक एक दूसरे के आमने सामने खडे है। धर्मनिरपेक्ष भारत के निर्माण का गांधी-नेहरू का उदान्त सपना बिखर गया दिखता है। बहुसंख्यक बहुलतावाद के सहारे धर्मनिरेपक्षता का आदर्श झूंठा साबित हो रहा है। धर्मनिरपेक्षता केवल एक आकर्षक विचार बन गया है। धर्मनिरपेक्षता की जमीनी हकीकत पूरी तरह अस्पष्ट हो गई है।

आम समस्याओं से ध्यान हटाकर बढती बेरोजगारी, गरीबी, असमानता, मंहगाई, भ्रष्टाचार को रोकने में असफलता से उपजे जन असन्तोष से ध्यान हटाने के लिए भावनात्मक मुद्दों से सस्ती लोकप्रियता व जनाधार बढाने का जो दंश भारतीय राजनीति झेल रही है भाजपा ने उसी का सहारा लिया है। देश की एकता व सौहार्द बनाये रखने के दायित्व को भूलकर सरकार में आगे बने रहने के लिए छद्म राष्ट्रवाद के नारे के साथ साम्प्रदायिकता बढ़ाई जा रही है। उग्र धार्मिक कट्टरता की स्वीकार्यता से भारत की मूल संस्कृति को खतरा बढ़ रहा है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने निजी विचार हैं)