लेखक : बाबू भाई
करबला, जयपुर से
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कविता
ओ सर्दी ओ सर्दी, तुने तो हद करदी ठिठुर गये बूढ़े, बच्चे,
सिकुड़ गये फूल और पत्ते,तेरे साथी ओस और ओले,
इनसे जा कर क्या हम बोलें, इनपे चलती तेरी मर्ज़ी,
तूने तो हद कर दी,,,,,
मंहगाई के चेहेरे कितने भद्दे, कहाँ से लाएं रजाई गद्दे...!
कोरोना खा रहा कमाई, कुछ तो रहम कर भाई,
गरीबो का ध्यान कर बेदर्दी, सर्दी तूने तो हद कर दी...!
लकड़ी मंहगी, कोयला मंहगा, कहाँ जले अलाव,
अबतो साथ बैठने का नहीं रहा लगाव...!
खान पान बदल गए, सर्दी के मेवे किधर गए,
मैथी, गोंद, तिल के लड्डू खाएं कैसे...!
ग़रीब बन्दू, सुर्ख गालों पे अब, आने लगी है जर्दी
ओ सर्दी ओ सर्दी तूने तो हद कर दी, तूने तो हद कर दी...!