व्यंग्य : रमन्ते तत्र राक्षसाः ....

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आज जैसे ही तोताराम ने चाय का गिलास थामा, 

हमने कहा- तोताराम सुन, आज संस्कृत में एक श्लोक लिखा है।  

बोला- अब तक तो हिंदी, हरियाणवी और राजस्थानी में चार लाइनां लिखकर तीन भाषाओं का एक साथ सत्यानाश किया करता था, लगता है अब संस्कृत की भी हत्या करेगा। 

हमने कहा- संस्कृत की हत्या कोई नहीं कर सकता. जब कोई उसे समझता ही नहीं, कोई बोलता ही नहीं तो उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जैसे गौरव जैसा वास्तव में कुछ होता ही नहीं तो उसका क्या बिगड़ना, क्या खतरे में होना और क्या उसका घटना-बढ़ना. गरीबी, नौकरी का तो पता लगाया-बताया जा सकता है। इसीलिए चतुर नेता गौरव का धंधा करते हैं. ऐसे ही भाषा का मामला है। ईश्वर का कोई अपमान कर सकता है ? लेकिन उसके मान-अपमान का ठेका लेकर लोग धंधा जमाये हुए हैं।  चाहे जिसको ईशनिंदा और बेअदबी के नाम पर मार देते हैं और वोट बैंक की राजनीति करने वाले उनका कुछ नहीं होने देते।  

बोला- खैर, सुना दे। जब 'मन की बात' से नहीं बच सकते तो तुझे भी झेल लेंगे. यदि तेरे वश में पार्टी का टिकट या कोई पद देने की क्षमता होती तो बात और थी. श्लोक सुनाने के बाद भी इस सड़ियल चाय में ही टरका देगा। मैं किसी के पंद्रह लाख के वादे के झांसे में नहीं आता। पहले तिल के दो लड्डू थमा दे तब सुनूंगा। 

हमने पत्नी से कहा- आज लोहड़ी है। संक्रांति के लड्डुओं में से जो अछूते निकाले हैं वे ले आओ। 

लड्डू थाम कर तोताराम से कहा- अब सुना दे, श्लोक। 

हमने सुनाया-

यत्र लोग करंते सुल्ली बुल्ली 

रमन्ते तत्र राक्षसाः

बोला- यह तो पैरोडी भी नहीं हुई। हाँ, इस पर भारतीय संस्कृति का अपमान करने के आरोप में तुझे जेल जरूर  भिजवाया जा सकता है। पाकिस्तान जाने का आदेश तो दिया नहीं जा सकता क्योंकि तू जनेऊधारी ब्राह्मण है.  तुझे मोदी जी की तरह 'इन्नोवेटिव' डिप्लोमेसी' के तहत पाकिस्तान जाने की छूट भी नहीं मिल सकती। 

हमने कहा- इसमें झूठ क्या है ? जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहाँ यदि देवता निवास करते हैं तो फिर जहां 'सुल्ली-बुल्ली' की जाती है वहाँ राक्षस रमण नहीं करेंगे तो क्या विवेकानंद और दयानद सरस्वती रमण करेंगे ? तुझे पता होना चाहिए शिवाजी महाराज ने अपने सैनिकों द्वारा एक नवाब की बीवी को उनके लिए पेश किये जाने पर बेगम से माफी मांगी थी, सैनिकों को डांटा था, बेगम को सम्मान पूर्वक उसके घर भिजवाया था। और ये...

बोला- इतना बड़ा समाज है, वोट की राजनीति है तो थोड़ा बहुत तो सुल्ली-बुल्ली और यती नरसिंहानंद का विधर्मियों के कत्ले आम का आह्वान हो सकता है। अब विकास करें कि 140 करोड़ भारतीयों का वीडियो बनाते फिरें। 

और फिर कार्यवाही हो तो रही है. चरणदास को अरेस्ट तो कर लिया। 

हमने कहा- चरणदास ने तो गाँधी को गाली दी है लेकिन नरसिन्हानंद तो विभाजन की भूमिका बना रहे हैं। और क्या हमारे स्वर्ण काल राम और कृष्ण के युग में ऐसा नहीं हुआ।  द्वापर में द्रौपदी का भरी सभा में चीर हरण, त्रेता में सूर्पनखा का नाक-कान-काटन नहीं हुआ था ?  

बोला- वह तो अवतारों की लीला थी।  

हमने कहा- नहीं, वह साहसी साहित्यकारों द्वारा अपने समय को पूरी ईमानदारी से चित्रित करना था।  आज की तरह थोड़े ही था कि जनता के पैसे से अपने विज्ञापन छपवाना। अपने को विष्णु का अवतार सिद्ध करवाना। महिलायें आज भी उतनी ही असुरक्षित हैं जितनी त्रेता और द्वापर में थीं बल्कि ज्यादा और एक खास धर्म की जागरूक महिलों को निशाना बनाना तो और भी अलोकतांत्रिक और अन्यायपूर्ण है। यह भी एक प्रकार तालिबानीकरण है।  कल को ये ही लफंगे हिन्दू लड़कियों को निशाना बनायेंगे। 

और क्या, क्या हाथरस और दिल्ली कैंट के यौनापराधी मक्का मदीना से आये थे ? वे सब इसी पुण्य भूमि भारत के हिन्दू ही थे। और ये ऐप बनाने वाले भी स्किल इण्डिया में ट्रेंड हुए राष्ट्रवादी युवा ही थे। 

खून मुंह लगा, बहुत बुरा होता है। 

(लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने व्यंग्यात्मक  विचार है) 

व्यंग्य लेखक : रमेश जोशी

सीकर (राजस्थान), 9460155700   

प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.