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भूल जाते है उन्हें क्योंकि वों किसी मूवी में हीरो नहीं,
भूल जाते है उन्हें क्योंकि उनके चले जाने से हमे क्या ही फर्क पड़ेगा,
वो सुशांत थोड़ी है जिसके जाने पर हमारे न्यूज़ एंकर आंदोलन करेंगे,
आखिर वो किसान है सुशांत नहीं।
उनकी मौत पर हम क्यों ही करें debate कर हमारा वक्त बर्बाद करें
अभी चुनाव आ रहा है तो कुछ झूठी उम्मीद ही दे देते है,
उन्हें ना ही राजनीती आती है ना ही उनकी कोई फैन फॉलोइंग है,
ना ही हम कुछ बोलेंगे ना किसी को बोलने का बोलेंगे क्योंकि
आखिर वो किसान है सुशांत नहीं।
इन पंक्तियों से आज के आर्टिकल की शुरुआत करते है। “आखिर वो किसान है सुशांत नहीं” ये छोटी सी लाइन बहुत कुछ कहती है। एक तरफ है हमारे देश के दिवगंत अभिनेता जी जिनकी आत्महत्या करने पर जिस तरह पुरे देश में दुख की लहर छा गई थी वो आप सभी को याद होगा। देश के बड़े नेताओं से लेकर बच्चे-बच्चे ने अभिनेता की मौत पर उच्च स्तरीय जाँच की मांग की थी। अभिनेता की मौत की खबर के सदमें में कुछ युवाओं ने आत्महत्या ही कर ली थी और सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर #wewantjustice ट्रेंड कर रहा था।दूसरी तरफ है हमारे देश के किसान जो कर्ज में डूबने की वजह से या फिर कम सरकारी मुआवजे की वजह से आत्महत्या कर लें किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता दिख रहा है। झूठी बयानबाजी को नज़रअंदाज करे तो ना ही सरकार कुछ कर रही है ना ही विपक्ष से कोई कुछ बोल रहा है। ना ही कोई नेता किसी किसान के लिए बोलता है ना ही इस देश का युवा कुछ बोलता है क्योंकि फर्क किसी को नहीं पड़ता है।
आखिर ये किसान है सुशांत नहीं इनकी कोई क्यों ही बोलेगा क्योकि किसान की आत्महत्या करके किसी को सोशल मीडिया पर फॉलोवर्स नहीं मिलेंगे। हम ये नहीं बोल रहे है की अभिनेता की मौत का गम बनाना गलत है लेकिन क्या इस देश को अन्न उत्पन करके देने वाले अन्नदाता को इतना भी सम्मान नहीं मिल सकता है??
किसान भाइयों के लिए पंक्तियाँ : चलो भूल जाते है उन्हें आखिर वो किसान है सुशांत नहीं, भूल जाते है उन्हें क्योंकि वों किसी मूवी में हीरो नहीं, भूल जाते है उन्हें क्योंकि उनके चले जाने से हमे क्या ही फर्क पड़ेगा, वो सुशांत थोड़ी है जिसके जाने पर हमारे न्यूज़ एंकर आंदोलन करेंगे, आखिर वो किसान है सुशांत नहीं। (PR)