उत्तर प्रदेश की स्कूलों में प्रयोगात्मक पाठ्यक्रम एवं उनकी परीक्षाओं का सच
लेखक : डा रक्षपाल सिंह

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अलीगढ़ । डा.बी आर अम्बेडकर विश्व वित्रद्यालय आगरा शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रख्यात शिक्षाविद डा. रक्षपाल सिंह का कहना है कि विज्ञान, कृषि, भूगोल, ग्रह विज्ञान, ड्राइंग, पुस्तक कला आदि विषयों में माध्यमिक स्तर से ही कक्षाओं में इन  विषयों की पढ़ाई के साथ- साथ प्रयोगशालाओं में पाठ्यक्रम से  सम्बंधित प्रयोगात्मक कार्य संपन्न कराये जाने का प्रावधान है। नई शिक्षा नीति-1986/92 लागू होने से पूर्व तक विषयों का पूरा पाठ्यक्रम थ्यौरी  व प्रयोगात्मक कार्य शिक्षण संस्थानों में  कराया जाता रहा है। 1992 के बाद शिक्षा में सरकार की उदारीकरण नीति के तहत नये निजी शिक्षण संस्थानों को मान्यता दिये जाने का सिलसिला शुरू हुआ। 

पहले तो मान्यता की सभी शर्तों को पूरा किये जाने की नीति पर अमल करते हुए ही मान्यतायें दी गईं थीं, लेकिन 20वीं सदी के समाप्त होते- होते  मान्यता समितियों द्वारा लिफ़ाफ़ा संस्कृति के आधार पर मान्यता की शर्तों को बलाए ताक पर रखकर मान्यताओं की संस्तुतियां की गईं ।परिणामस्वरुप नवीन शिक्षण संस्थानों में प्रयोगशाला भवनों व उनमें आवश्यक साजो सामान, स्टाफ रुम, कामन रुम, शौचालय,खेल मैदान आदि की अधिकांश  कमियों  को नज़रंदाज करते हुए ही मान्यताओं की सन्सुतियां करके मान्यता दिलवा दीं गईं।        

उल्लेखनीय  है कि 20वीं सदी के समाप्त होने तक मिली मान्यताओं वाले अधिकांश शिक्षण संस्थान आज भी अपने यहां पठन पाठन का सम्यक वातावरण बनाये हुए हैं, लेकिन 21 वीं सदी में मान्यतायें पाने वाले 75% से भी अधिक निजी शिक्षण संस्थानों में तो प्रवेशों, परीक्षाओं की रस्म अदायगी तो होती रही है, लेकिन पठन पाठन, प्रयोगात्मक कार्य, खेलकूद एवं अन्य गतिविधियों की तो पूरी अनदेखी ही होती रही है। 

यूपी बोर्ड से सम्बद्ध प्रदेश के लगभग 9100 माध्यमिक विद्यालयों में से जनपद मुख्यालयों के सहायता प्राप्त, सरकारी माध्यमिक विद्यालयों एवं 5-6%निजी विद्यालयों के अलावा 75% विद्यालयों में विभिन्न विषयों के प्रयोगात्मक कार्यों का न कराया जाना प्रदेश की  माध्यमिक शिक्षा का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।

यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रयोगात्मक कार्य के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए ही विभिन्न विषयों की प्रयोगात्मक परीक्षाओं हेतु प्रति विषय 30% अंक निर्धारित किये गये। 20 वीं सदी की प्रयोगात्मक परीक्षाओं में विद्यार्थियों की प्रयोगात्मक कार्यों को करने की क्षमता और योग्यता के आधार पर उन्हें 10 से लेकर 29 अंक तक मिलते थे, लेकिन 21 वीं सदी में जिन 75% माध्यमिक विद्यालयों में पूरे शिक्षा सत्र विद्यार्थियों को प्रयोगात्मक कार्य कराया नहीं जाता है, उन तथाकथित परीक्षार्थियों को बिना कुछ प्रयोगात्मक कार्य  किये  28 या 29 अथवा 30 अंक (30में से) प्राप्त होते हैं। इससे ज्यादा प्रयोगात्मक कार्य एवं उसकी परीक्षा का  क्या दुर्भाग्य हो सकता है? ऐसे प्रथम श्रेणी प्राप्त तथाकथित परीक्षार्थी तो अपनी अंकतालिकाओं के बल पर उच्च शिक्षा में प्रवेश पाकर पढ़ाई में कोरे ही रहेंगे एवं उच्च शिक्षा को कलंकित ही करेंगे। आश्चर्य एवं अफसोस है कि प्रयोगात्मक परीक्षाओं का ये फर्जीवाड़ा विगत 20 वर्ष से अधिक समय से चल रहा है और किसी भी दल की सरकार ने शिक्षा के साथ हो रहे इस महा घोटाले की ओर ध्यान देना मुनासिब ही समझा। माध्यमिक शिक्षा स्तर पर प्रयोगात्मक कार्यों के प्रति सरकार, प्रबंधकों, शिक्षकों, विद्यार्थियों की ये बेरुखी अत्यधिक खतरनाक है। 

अत: सरकार को माध्यमिक विद्यालयों में निरन्तर छात्रों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने, मानकों के अनुरूप शिक्षकों की नियुक्तियां कराने एवं  निरंतरता के साथ उनका पठन पाठन, प्रयोगात्मक कार्यों को संपन्न कराये जाने के लिये मजबूत निगरानी व नियन्त्रण व्यवस्थायें बनानी चाहिये जिससे प्रदेश के माध्यमिक स्कूलों  की बदहाल व्यवस्थाओं में वांछित सुधार ही सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)