कोरोना काल में इलाज के साथ इस पर भी विचार जरूरी है

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं)

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कोरोना निश्चित ही एक महामारी है जिसने समूचे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है। दुनिया में आबादी के लिहाज से दूसरे नम्बर के हमारे देश में अब इसने हाहाकार मचा रखा है। इसका सबूत है कि बीते चौबीस घंटों में दो लाख सत्तर हजार से भी ज्यादा लोगों का कोरोना संक्रमित होना। इसकी तादाद दिनों दिन तेजी से बढ़ती ही जा रही है। असलियत यह है कि ना तो कोरोना संक्रमितों और ना ही मरने वालों का सही आंकडा़ ही सामने आ रहा है। हां अस्पतालों मैं बैड, दवाई, इजैक्शन, वैंटीलेटर,एंबुलैंस और आक्सीजन न मिलने से हुई मौतों की खबरें जरूर सामने आ रही हैं। साथ ही शमशान गृहों और कब्रिस्तानों में अंतिम संस्कारों हेतु जगह ना होना और उसके लिए भी घंटों इंतजार करना इसकी भयावहता का सबूत तो है। यहां इस तथ्य को नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि इस दौर में हुई मौतें कोरोना से ही हुई हैं लेकिन उनमें अधिकांश ऐसे भी थे जो अन्य घातक बीमारियों के शिकार थे। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। यह भी सही है कि हमारे देश की चिकित्सा स्वास्थ्य सुविधायें निचले स्तर की हैं, उनमें बहुत सुधार की जरूरत है। 

जाहिर है यह हमारे नेतृत्व की दिशाहीनता कहें या नाकारेपन का जीता जागता सबूत है। असलियत तो यह है कि यहां मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं तक का अभाव है। सरकारी अस्पताल इसके ज्वलंत प्रमाण हैं। प्रायवेट बडे़ अस्पतालों जो आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से युक्त हैं, वहां इलाज करा पाना आम आदमी के बस के बाहर की बात है। फिर जो छोटे निजी अस्पताल भी हैं, वह भी ऐसे हालात में पूरी सुविधाएं न होने के बावजूद अपनी तिजोरियां भरने में पीछे नहीं हैं। वह भी बिना जरूरत टैस्ट और फर्जी बिल बनाने में कीर्तिमान बना रहे हैं। यह हालत तो बडे़ प्रतिष्ठित अस्पतालों में भी है। वहां कोरोना रोगी के इलाज के लिए आम गरीब आदमी बीस-पच्चीस लाख कहां से लायेगा। ऐसे में आम आदमी क्या करेगा। वह तो सरकारी अस्पतालों का ही रुख करेगा जहां की बदहाल स्थिति,दावे कुछ भी किये जायें जगजाहिर है। दवाओं, इंजैक्शन, आक्सीजन और वैंटीलेटर की अनुपलब्धता से आये दिन हो रही वहां मौतें इसका सबूत हैं। हां स्वास्थ्य कर्मियों की इस दौरान सेवा भावना, कर्तव्यपरायणता की जितनी भी प्रशंसा की जाये वह कम है। 

जहां तक स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का सवाल है,यह किसी एक राज्य की स्थिति नहीं है, सभी की स्थिति एक जैसी है। हां इसमें एक राज्य के बड़बोले मुख्यमंत्री जिन्होंने बीते साल खरीद-फरोख्त के जरिये पुनः सत्ता हासिल की, ने कीर्तिमान स्थापित किया है जहां एक भी आक्सीजन प्लांट नहीं है और तो और उसी राज्य के प्रभारी मंत्री राज्य के इंदौर महानगर में आक्सीजन के टैंकर का फूलमालाओं-गुब्बारों से सजाकर सांसद,विधायक, स्थानीय महापौर, जनप्रतिनिधियों व सैकडो़ की तादाद में बिना मास्क व दो गज की दूरी के नियम का पालन न कर जनता की भारी तादाद में मौजूदगी में उसका लोकार्पण कर अपनी पीठ ठोंकने में लगे हैं। ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है। यहां कोरोना काल में कुंभ में बिना मास्क व दो गज की दूरी के नियम का पालन न करते हुए करोडो़ं, चुनावी रैलियों, रोड शो मे लाखों की मौजूदगी पर चर्चा करना गर्व की बात नहीं होगी, यह नेतृत्व के मानसिक दिवालिएपन, अमानवीयता और जनता को मौत के मुंह में झोंकने का प्रमाण है।

अब बात करते हैं इस दौरान इसके इलाज की। जाहिर है पीडि़त इलाज तो करवायेगा ही। कहीं भी समय रहते उसे इलाज मिल जाये, इसी प्रयास में वह एडी़ चोटी का जोर लगाता है भले वह अपनी संपत्ति ही क्यों न बेच दे। हकीकत है ऐसा करने में वह अपनी सामर्थ्यानुसार पीछे हटा भी नहीं है। सबसे बडी़ बात इस दौरान जो सामने आयी कि सरकार के साथ-साथ हरेक व्यक्ति ने अपने ज्ञानकोष के अनुसार इसके उपचार के नुस्खे भी बताये और बचाव के तरीके भी। यह भी सत्य है कि वह चाहे आयुर्वेद से जुडे़ रहे, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से हों या फिर घरेलू पुराने नुस्खे, उनको जनता ने अपनाया भी और ज्यादातर बचाव में कामयाब भी रहे। इसमें भी दो राय नहीं है।

यहां में जिस बात का यहां जिक्र कर रहा हूं वह सबसे बडी़ बात है भय की। जनता में कोरोना का भय ठीक उसी प्रकार फैला हुआ है जैसा सुना जाता है एक समय प्लेग का फैला था। इसे किसने फैलाया, इस पर न जाकर मैं असली मुद्दे पर आता हूं। देखा जाये तो भय सबसे बडा़ रोग है बल्कि मैं कहूं कि महामारी है तो कुछ गलत नहीं होगा। यहां इससे सम्बंधित जो जानकारी मुझे मेरे अग्रज श्री सुशील कुमार सिन्हा जी से मिली है, उसे मैं आपके साथ साझा करना जरूरी समझता हूं। बीमारी का इलाज कराइये,यह बेहद जरूरी है और कराना भी चाहिए लेकिन भय का कोई इलाज नहीं है। यह कटु सत्य है। 

जानकारी के अनुसार यह कहा गया है कि कोरोना सबको होगा ,खांसी, बुखार, जुकाम के लक्षण तो सामान्यतः होते ही हैं और वह ठीक भी हो जाते हैं। इस दौरान यह विकराल रूप में है तो उसकी बात अलग है। ध्यान देने वाली अहम बात यह है कि जानकारी के अनुसार अमरीका में एक कैदी को जब फाँसी की सजा सुनाई गयी ,तब वहाँ के कुछ वैज्ञानिकों ने विचार किया कि इस कैदी पर एक प्रयोग किया जाये, तब उस कैदी को बताया गया कि उसे फाँसी के बजाय विषधर कोबरा से डसवा कर मारा जाएगा। फाँसी वाले दिन उसके सामने एक बड़ा विषधर साँप लाया गया तथा कैदी की आँखों पर पट्टी बाँध कर उसे कुर्सी पर बाँध दिया गया। इसके बाद उसे साँप से ना डसवा कर सेफ्टी पिन चुभाई गईं । आश्चर्य की बात यह हुई कि कैदी की २ सेकंड में ही मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कैदी के शरीर में "व्हेनम सदु्श्यम" नामक विष मिला । यह विष कहाँ से आया जिससे कैदी की मृत्यु हुई ? पोस्टमार्टम के बाद पता चला कि यह विष कैदी के शरीर में मानसिक डर  की वजह से, उसके शरीर ने स्वयं ही उत्पन्न किया था। अतः तात्पर्य यह है कि  हमारी अपनी मानसिक  स्थिति के अनुसार Positive अथवा Negative एनर्जी उत्पन्न होती है।  तदनुसार ही हमारे शरीर में हारमोन्स पैदा होते हैं। नब्बे फीसदी बीमारी का मूल कारण नकारात्मक विचार ऊर्जा का उत्पन्न होना होता है।

असलियत में आज मनुष्य गलत विचारों का भस्मासुर बन कर खुद का विनाश कर रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि  कोरोना को मन से ना लगाओ। आज 5 वर्ष से लेकर 80 वर्ष तक के लोग नेगेटिव यानी नकारात्मक हो गये हैं। आकड़ों पर ना जाएं ,आधे से ज्यादा लोग व्यवस्थित हैं। मृत्यु पाने वाले केवल कोरोना की वजह से ही नहीं बल्कि उन्हें अन्य बीमारियाँ भी थीं ,जिसका मुकाबला वे कर नहीं सके। यह भी याद रखें  कि कोरोना की वजह से कोई भी घर पर नहीं मरा, सबकी मृत्यु अस्पताल मे ही हुई है। इसका अहम कारण है अस्पताल का वातावरण एवं मन का भय। इसलिए अपने विचार सकारात्मक रखें और आनंद से रहें।


इस बारे में मनोचिकित्सक की सलाह पर भी विचार करेंं :

कोरोना से जुड़ी ज्यादा खबरें ना देखें ना सुनें। आपको जितनी जानकारी चाहिए आप पहले से ही जान चुके हैं।

कहीं से भी अधिक जानकारी एकत्र करने का प्रयास करना छोड़ें क्योंकि ये आपकी मानसिक स्थिति को और ज्यादा कमजोर ही करेगा ।

दूसरों को वायरस से संबंधित सलाह ना दें क्योंकि सभी व्यक्तियों की मानसिक क्षमता एक सी नहीं होती। कुछ डिप्रेशन अर्थात अवसाद का भी शिकार हो सकते हैं। 

जितना संभव हो संगीत सुनें , अध्यात्म, भजन आदि भी सुन सकते हैं।  बच्चों के साथ बोर्ड गेम खेलें ।परिवार के साथ बैठकर आने वाले वर्षों के लिए प्रोग्राम बनाएं।

अपने हाथों को साबुन से नियमित अंतराल पर अच्छे से धोएं। सभी वस्तुओं की सफाई भी करें। किसी भी नव आगंतुक को एक मीटर दूर से ही मिलें।

आपकी नकारात्मक सोच-विचार की प्रवृति डिप्रेशन बढ़ाएगी और वायरस से लड़ने की क्षमता कम करेगी। दूसरी ओर सकारात्मक सोच आपको शरीर और मानसिक रूप से मजबूत बनाकर किसी भी स्थिति या बीमारी से लड़ने में सक्षम बनाएगी।

अत्यंत आवश्यक ...अपना विश्वास दृढ़ रखें कि ये समय शीघ्र या देर सबेर  निकलने ही वाला है यानी खत्म हो ही जायेगा और आप हमेशा स्वस्थ और सुरक्षित रहेंगे । आप सकारात्मक रहें -स्वस्थ रहें, यही कामना है ।

आइये मिलकर-सकारात्मक विचार फैलाएं ताकि देश और समाज स्वस्थ रहें।

यहां इस उद्धरण देने का मेरा आशय मात्र इतना ही है कि आप अपना मनोबल ना गिरने दें, सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहें और भयमुक्त हो हर विषम से विषम स्थिति का मुकाबला करने को तैयार रहें, यह ध्यान रखें कि समय परिवर्तनशील है,निश्चित ही विजय आपकी होगी। इसमें दो राय नहीं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)