नवीन जैन, वरिष्ठ पत्रकार
इन्दौर, 98935 18228
http//daylife.page
बिहार में 243 विधानसभा सीटों, मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों के उप चुनावों, गुजरात और उत्तर प्रदेश में कुछ विधानसभा उप चुनावो के नतीजों ने सिद्ध कर दिया है कि भले उक्त चुनाव विधानसभा के रहे हो, जो कि अक्सर राज्य स्तरीय या स्थानीय मुद्दों पर ही लड़े जाते हैं, मग़र इन परिणामों के भाजपा के हक में जाने से यह भी ज़ाहिर होता है कि कम अज़ कम उक्त सूबों में तो पीएम नरेंद्र मोदी का मोदी मैजिक या मोदी का अंडर करंट ही मुख्य रूप से निर्णायक रहा।खास बात यह रही कि मोदी ने सिर्फ बिहार में बीस से अधिक चुनावी रैलियों को सम्बोधित किया, लेकिन दूसरी सीटों के लिए उन्होंने सम्बंधित नेताओं पर ही ऑंख मूंदकर विश्वास किया। प्रकट यह भी हुआ कि बिहार में तो खैर राजद की तरफ से चूँकि तेजस्वी यादव इकतीस वर्ष के होंने के कारण बेरोजगार युवा वर्ग के लिए आशाओं का केन्द्र रहे, लेकिन सभी सूबों में पीएम मोदी फेक्टर ही काम आया। विशेषकर युवा वर्ग ने भी स्थानीय ने सूत्रों के मुताबिक मोदी में भरोसा जताया।
यदि सूत्रों की इस जानकारी को ही आधार बनाया जाए, तो निष्कर्ष यहाँ तक निकलता है कि पहली बार वोट करने वाले युवा ने भी कोई नया प्रयोग अथवा जोखिम उठाना उचित नहीं समझा। यह ब्लॉक अन्य वोटर्स के समान मानकर चला कि फ़िलवक्त तो मोदी का कोई विकल्प नहीँ, और पूरे देश की बेहतरी इसी में है कि मोदी का रास्ता काटा न जाए, क्योंकि उससे कोई फायदा होने वाला नहीं है। कॉंग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं पूर्व अध्यक्ष सांसद राहुल गांधी की सियासी पूँजी में घसारा होना जारी है। बिहार एवं मध्यप्रदेश के चुनाव परिणाम इस विश्लेषण के ताजा प्रमाण माना जा सकता हैं। बिहार के वोटों की गिनती नवम्बर 10 को सुबह आठ बजे प्रारंभ होकर रात नो बजे तक जारी रही, जिसे कीर्तिमान कहा जा रहा है। शुरुआत से ही कभीं महागठबंधन तो कभी राजग एक दूसरे को छकाते रहे।कई बार तो लगने लगा कि महागठबंधन महापराजय की ओर बढ़ रहा है।
तेजस्वी यादव जिनका सिलेक्शन आईपीएल की दिल्ली टीम में भी हो चुका था, के घर में तो उनके परिजनों के साथ जीत का जश्न भी मन चुका था, फ़िर वे विपक्ष में बैठने को मजबूर क्यों हुए? इसका परिपक्व एवं बिल्कुल सधा सा उत्तर यह हो सकता है कि इसका एक और बड़ा कारण यह है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा यूँ तो हिमाचल प्रदेश से वास्ता रखते हैं, मग़र चूँकि उन्होंने लोकनायक जेपी के सम्पूर्ण क्रान्ति आंदोलन से अपना पोलिटिकल करियर बिहार से ही प्रारंभ किया था, इसलिए इस प्रदेश की जमीनी सियासत में वे दूध का दूध तथा पानी का पानी करने जैसी समझ रखते हैं। इसी राज्य से सबसे अधिक मजदूर विभिन्न इलाकों में काम धंधों के लिएजाते हैं, जिनका हजारों की संख्या में पलायन हुआ था। जानकारों का कहना है कि चूंकि नीतीश कुमार ने अपनी पिछली तीन पारियों में स्वच्छ प्रसाशन, भ्र्ष्टाचार रहित व्यवस्था, विकास का आधुनिक नज़रिया ,गुण्डा या जंगल राज के सफाए की भरपूर कोशिश की।
सोने में सुहागा जैसी बात यह हुई कि कोविड-19 से उचित तरीके से न निपट पाने और बाढ़ पीड़ितों की सहायता न करने के नीतीश कुमार सरकार पर लगे आरोप भी विशेष असर नहीं दिखा पाए। जब ये पंक्तियाँ लिखी जा रही हैं, तब तक राजग उर्फ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने रुझानों के मुताबिक स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है। कुल 243 में से 122 सीटों की उसे चौथी पारी के लिए जरूरत है, जबकि उसके खाते में 125 सीटें आती दिख रही हैं। इनमें से भी 122 सीटें तो उसे मिल चुकी हैं, जबकि तीन जगह वह विपक्ष को मात देती दिख रही है। दुनिया को सबसे पहले गणराज्य, यानी वैशाली, जहां भगवान महावीर ने जन्म लिया था, में मज़ेदार गुफ्तगू आम है कि चूंकि राजग की जीत में ज्यादातर कमल का फूल ही खिला है इसलिए अब नीतीश कुमार की भाजपा की नीतियों पर चलना पड़ेगा वर्ना भाजपा अपना आदमी नीतीश कुमार की जगह रिप्लेस करने के लिए हाथ खुला रखेगी। नीतीश कुमार का तो और भी उपयोग किया जा सकता है, जो सम्माजनक हो। भाजपा को अभी तक अकेले 74 सीटें मिलने के स्पष्ट संकेत हैं। याद करे जब अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली के क़रीब ढेड़ वर्ष साल पहले हुए चुनाव में एकतरफा जीत मिली थी,तो उनके पिछले कार्यकाल के आधार पर नारा उछला था कि काम बोलता है, नारे नहीं। यही बिहार में हुआ। यह क्यों नहीं माना जाना चाहिए कि लोजपा रास्ते में रोड़ा नहीं डालती तो राजद की राह और आसान होती।
अब बात करें मध्यप्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के उप चुनावों कीजिसमें से 19 सीटें भाजपा को मिलीं।यह ऐसी सफलता है, जिस पर मार्च से अल्प मत की सरकार चला रहे मुखिया शिवराज सिंह को भी आश्चर्य में डाल गई होगी। कारण यह था कि जब उक्त महीने में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया करीब 19 वर्ष तक कांग्रेस में केन्द्रीय मंत्री रहते हुए भी भाजपा में अपने मध्यप्रदेश के समर्थक 22 मंत्रियों एवं विधायको सहित भाजपा में सम्मिलित हो गए थे, तब जमकर बावेला मचा था। उन्हें कांग्रेस ने बार-बार गद्दार कहा, कभी दल बदलू कहा लेकिन कदाचित कम ही लोगों ने इन जमलो पर ध्यान दिया। वास्तविकता है कि अपने गढ़ ग्वालियर चंबल सम्भाग में उन्हें पहले जैसी 16 सीटें निकालने में कामयाबी नहीं मिल पाई। लेकिन ज्योतिरादित्य के इस जलवे को मानना ही पड़ेगा कि उन्होंने अपने पोलिटिकल करियर के दांव पर लगी साँवेर सीट अपने प्रमुख सहयोगी तुलसी राम सिलावट को तमाम उलती सीधी अटकलों के बावज़ूद 53 हजार से अधिक वोटों से जितवाने में निर्णायक भूमिका अदा की।
सिलावट के खिलाफ कभी भाजपा में और उसके बाद कांग्रेस में शामिल हुए कांग्रेस से उज्जैन के पूर्व सांसद रहे प्रेमचंद गुड्डू मैदान में थे। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उन्हें जितवाने की हर सम्भव कोशिश की, मग़र भाजपा के बूथ मेनेजमेंट, राष्ट्रीय स्वयं सेवकों के चुपचाप सिलावट के लिए काम करने, चुनाव प्रचार में तमाम नेताजी द्वारा संयत भाषा का उपयोग करने, भाजपा के पिछले सात महीनों के लगभग सफल कार्यकाल पर जनता के भरोसे को भी श्रेय जाता है। माना जा रहा है कि भाजपा में शिवराज सिंह के साथ ही भाजपा की तरफ से कुछ माह फहल राज्यसभा में भेजे गए ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा में एक तरफा व्रद्धि होगी। जहां तक ग्वालियर चंबल सम्भाग में सिंधिया की नहीं चल पाने की बात है तो हवाला दिया जाने में कोई दिक्कत नहीं होंनी चाहिए उक्त इलाक़ों में व्यक्तिगत कारणों से सिंधिया विरोधियों ने भाजपा के ही लोगों ने ही तोड़ फोड़ या सबोटेज किया। वैसे, यह राजनीति की अनिवार्य बुराई है। उक्त सम्भाग में सिंधिया के पार्टी में आने से अनेक पार्टी जनों की नाराजग़ी पहले से ही मुखरित हो रही थी। अब इसका तो कोई पेंच वर्क नहीं होता है न लेकिन मालवा की पट्टी में जो आठ में से सात सीटें भाजपा को मिलीं, उसका श्रेय सिंधिया को भी जाता है।
उत्तर प्रदेश में सात सीटों पर ही चुनाव हुए, लेकिन सत्ताधारी भाजपा के लिए ये उप चुनाव भी आर पार की लड़ाई हो गए थे। हाथरस कांड, कोरोना में कथित असफलता, गुंडागर्दी महंगाई, दलित अत्याचार, भ्र्ष्टाचार जैसे मुद्दों पर विपक्ष ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार को जमकर लताड़ा लेकिन योगी ने जगह जगह जन सभाएं वर्चुअल रैली लेकर विपक्ष की हरेक बेख़याली दूर कर दी। सिर्फ सपा को एक सीट मिली। कांग्रेस और बसपा तो एक बार फिर हाथ मलते रह गए। भाजपा को फिर सफलता मिलने का कारण मोदी के नेतृत्व में अयोध्या में मंदिर निमार्ण को प्रमुख रूप से दिया जा सकता है। ये उप चुनाव इसलिए पॉलिटिकल टेम्परेचर देखने के लिए आवश्यक थे क्योंकि करीब डेढ़ साल पश्चात ही सूबे की सभी 403 विधानसभा सीटों पर आम चुनाव होने हैं।गुजरात में भी नरेंद्र मोदी की आवाज मुख्यमंत्री विजय रुपाणी तथा प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील के तहत गूँजी ।सभी आठ सीटो पर उप चुनाव में फ़तेह हासिल कर भाजपा की सभी गलतफहमियां दूर हो गईं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)