लेखिका : रश्मि अग्रवाल
नजीबाबाद, 9837028700
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किसी रचना को बकवास कहकर ख़ारिज कर देना तर्क संगत नहीं, यह उतना ही गलत जैसे एक शब्द में बेहतरीन कहकर छोड़ देना। हो सकता है कि समीक्षक कुछ हिस्से पढ़े, उन्हें घटिया लगे और उन्हीं पर दो पंक्ति में प्रतिक्रिया भी दे दी, कम से कम उसे समीक्षा तो न कहें और न यह कहकर कि ये अच्छा, ये बुरा, भाग सकते क्योंकि इसमें क्यों और कैसे की भी बात हो? वरना वो समीक्षा खोखली होगी। मेरा विचार है कि साहित्य के क्षेत्र में समीक्षा शीर्ष एवं सर्वाधिक कठिन विद्या है। साहित्यिक कृतियों का मंथन करके नीर-क्षीर विवेकी निष्कर्ष निकालना तथा उन्हें उपयुक्त शब्दावली में प्रस्तुत करना सरल नहीं होता क्येांकि कभी-कभी अभिव्यक्तियाँ अपनी विलक्षणता के कारण रचनाकार की कल्पना से इतर भी बहुत कुछ कह जाती हैं, जिन्हें समीक्षक की पैनी नज़र देख पाती और इन्हीं परिपक्व विचारों को पढ़कर, रचनाकार स्वयं अपनी रचना का समीक्षक बन जाता है। तब उसे नये आयाम मिल जाते हैं। (लेखिका के अपने विचार हैं)