लेखिका : विजयलक्ष्मी जांगिड़
जयपुर (राजस्थान)
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दीपावली से सबसे बड़ी बात जो सीखने को मिलती है आपसी प्रेम।रामायण में हम देखते हैं वनवास सिर्फ राम को मिला लेकिन लक्ष्मण अपने भाई भाभी की सेवा के लिए वन चले गए। उर्मिला अपने पति की जगह जिम्मेदारियां निभाती रही। भरत ने राम के नाम पर शासन किया।सभी कर्तव्य निभाए मगर गद्दी पर नही बैठे। श्रुतकीर्ति, मांडवी महल में रहकर अपने कर्तव्य निभाती रही।शत्रुघ्न भी भरत की सेवा में लगे रहे। आज जब हम दीपावली मना रहे हैं तो क्या सिर्फ दिए जला देना व माँ लक्ष्मी की पूजा कर लेना ही काफ़ी है। कोरोना के इस समय मे जब परिवारों में सबको एक दूसरे के साथ की जरूरत है। समाज मे जब हम एक दूसरे की जिम्मेदारियो का बोझ उठाने की जरूरत है हम क्या कर रहे हैं?जो सक्षम है क्या वो थोड़े दिन अपनो की मदद नही कर सकते?क्या कभी जब सब ठीक हो जाएगा हम ये कह सकेगे कि विपरीत घड़ी में भी हम ,हमारा परिवार,समाज एक रहा।वक्त तो बदलता है। हमारे शरीर मे भी एक अंग न रहे तो दूसरे अंग खुशी से उसका बोझ उठा लेते हैं किंतु हम मानव होकर भी ये नहीं समझ पाते कि दीपावली के असली मायने हैं अपनो का साथ। इसी साथ कि वजह से राम रावण को मार सके, वनवास पूर्ण कर सके। शुभ दीपावली !!