कभी जी जाती हूँ, कभी मर जाती हूँ : मैं औरत हूँ

मैं औरत हूँ


मैं उदगम हूँ
उदगार भी हूँ
पर ख़ुद के लिए बेहाल हूँ
मैं औरत हूँ


मैं जीवन हूँ
उल्लास हूँ
कभी हास्-परिहास हूँ
पर मर्जी की मोहताज हूँ
मैं  औरत हूँ


चंचल हूँ
वाचाल हूँ
पर फरियादी लाचार हूँ
मैं   औरत हूँ


जीने का अहसास हूँ
तपन में फुहार हूँ
हर घड़ी सवाल हूँ
कठपुतली सी जान हूँ
मैं औरत हूँ


दीवारों में  संचित हूँ
काब्य कलाओ में अंकित हूँ
पर ख्वाबों से वंचित हूँ
मैं औरत हूँ


मैं सोच -समझ ,संस्कार हूँ
जीवन का आधार हूँ
पर पुरुषों पर निर्भर हूँ
मैं औरत हूँ


मैं मुड़ जाती हूँ
खिल जाती हूँ
फिर भी कुचली जाती हूँ
जीवन भर बस डर -डर के
कभी जी जाती हूँ
कभी मर जाती हूँ



लेखिका : ममता सिंह राठौर