जीने का मूलमंत्र गीता संदेश

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कहते हैं कलयुग में श्रीकृष्ण का महत्व और बढ़ेगा क्योंकि श्रीकृष्ण सिर्फ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। उनके मुखारबिंद से निकली गीता में बहुत सारे श्लोक जीवन दर्शन का अहसास कराते हैं। ‘कर्म कर फल की चिंता मत कर’। गीता में दर्शन का प्रतिपादन करते हुए भी जो साहित्य का आनन्द है, वह इसकी अतिरिक्त विशेषता है।



तत्वज्ञान का सुसंस्कृत काव्यशैली के द्वारा वर्णन गीता का निजी सौरभ है जो किसी भी सहृदय को मुग्ध किये बिना नहीं रहता। इसलिए इसका नाम भगवद्गीता पड़ा, भगवान का गाया हुआ ज्ञान।


यही विलक्षणता और यही उनका विलक्षण जीवन दर्शन भी है। कृष्ण अपनी बालसुलभ लीलाओं सरस एवं मोहक, परम पावन उपदेशों से अन्तः एवं बाहरी दृष्टि द्वारा जो अमूल्य शिक्षण उन्होंने दिया, वह किसी वाणी अथवा लेखनी की वर्णनीय शक्ति एवं मन की कल्पना की सीमा में नहीं समेटा जा सकता है।



श्रीकृष्ण सर्वशक्तिमान, अजन्मा होकर भी पृथ्वी पर जन्म लेते और मृत्युंजय होने पर मृत्यु का वरण करते हैं।


गीता श्रीकृष्ण के उपदेशों को समझकर, जीवन जीने का मूलमंत्र और विवेकरूपी तलवार की धार को तेज करने और युवाओं के लिए और अधिक प्रासंगिक क्योंकि प्रत्येक कर्तव्य के मोर्चे पर डटे रहने व धर्म के प्रति आस्थावान रहने का संदेश देती है। (लेखिका के अपने विचार हैं)



लेखिका : रश्मि अग्रवाल 
नजीबाबाद
9837028700