देश में खिलाड़ियों के साथ भेदभाव दुर्भाग्यपूर्ण है


लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत


लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरणविद हैं


http//daylife.page


हमारा देश संस्कृति, संस्कार, शिक्षा और वीरता के लिए समूची दुनिया में विख्यात है। वीरता के क्षेत्र में दुनिया हमारे रण-बांकुरों का लोहा मानते है। खेलों में भी हमारे देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है और अपनी क्षमता का देश के खिलाड़ियों ने बखूबी प्रमाण भी दिया है। यह सर्वविदित है। लेकिन दुख इस बात का है कि जब खिलाड़ियों को सम्मान देने की बात आती है तो उसमें भेदभाव किया जाता है। इस तरह का पक्षपातपूर्ण रवैया देश में एक अरसे से चला आ रहा है। इसे किसी भी दृष्टि से न्याय संगत नहीं कहा जा सकता। प्रतिभा पलायन का एक अहम कारण यह भी है।


 


बीते दिनों एक मामला प्रकाश में आया उड़नपरी हिमादास के साथ पक्षपात का जिसने छह स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। हुआ यह कि हिमादास को केन्द्र सरकार ने पचास हजार, असम सरकार ने एक लाख की राशि सम्मान स्वरूप प्रदान की जबकि कांस्य पदक विजेता पी वी संधू को हरियाणा की राज्य सरकार ने सम्मान राशि  के रूप में चार करोड़, दिल्ली ने दो करोड़, तेलंगाना ने एक करोड़ पचास लाख के साथ जमीन, फ्लैट और बीएमडब्लयू कार तथा मध्य प्रदेश सरकार ने पचास लाख देकर सम्मानित किया। मेरा किसी खिलाड़ी को सम्मानित करने पर विरोध नहीं है, वह किया जाना चाहिए लेकिन इसका एक निर्धारित मापदण्ड होना चाहिए। उसमें भेदभाव और पक्षपातपूर्ण व्यवहार के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। 



खिलाड़ी को वह चाहे किसी भी क्षेत्र का क्यों ना हो, उसका सम्मान उसकी प्रतिभा को दृष्टिगत रखते हुए बिना भेदभाव और पक्षपात के समान रूप से होना चाहिए । यही नीति खेल पुरुस्कारों के चयन में भी अपनानी चाहिए। विडम्बना यह है कि इसमें भी हिमादास के साथ अन्याय हुआ है और 2020 के लिए खेल पुरुस्कारों की सूची में  भी उसका नाम शामिल नहीं किया गया है। यह भारत सरकार के खेल मंत्रालय की दिशाहीनता और अदूरदर्शिता का प्रमाण है। खेल मंत्रालय की यह नीति ही खेलों के प्रति खिलाड़ियों की बढ़ती अरुचि की जीती जागती मिसाल है। यदि सरकार और मंत्रालय का यही रवैया बरकरार रहा तो वह दिन दूर नहीं जब देश से खेलों के प्रति नौजवानों का मोहभंग हो जाये। (लेखक के अपने विचार हैं)