तुलसी को प्रसिद्ध के चरम पर पहुंचाने में रत्नावली की अहम भूमिका 


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प्रख्यात इतिहास मर्मज्ञ डा. संतोष पटैरिया ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं जिनकी विद्वता  किसी परिचय की मोहताज नहीं है। करीब हजार साल से भी पुराने अबूझे अनजाने ग्रंथों के संग्रह का गौरव भी उन्हें प्राप्त है। उनका आवास आवास नहीं एक संग्रहालय सरीखा है। मैं स्वयं इसका जीता जागता प्रमाण हूं जिसने साहित्याकाश के उस विलक्षण भंडार में साक्षात सैकड़ों ऐसी पांडुलिपियों को देखा है जो आज भी इतिहास की धरोहर हैं। डा. पटैरिया के अनुसार हमारे महाग्रंथ रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास को प्रसिद्ध के शीर्ष पर पहुंचाने में उनकी पत्नी रत्नावली जो महान विदुषी थीं, की प्रमुख भूमिका थी। -ज्ञानेन्द्र रावत



डा. संतोष कुमार पटैरिया की माने तो--
तुलसी को प्रसिद्धि के मार्ग पर पहुंचाने वाली उनकी पत्नी विदुषी रत्नावली आशुकवयित्री थी। सन् 1772 में मुरलीधर चतुर्वेदी कृत रत्नावली चरित प्रकाश में आया है। रत्नावली द्वारा रचित 201 दोहे और 7 पद उन्हीं की हस्तलिपि में लिखे हुए कासगंज में तुलसी पीठ नरिद्वार में रखे हुए हैं। रत्नावली के दोहों में संस्कृत ग्रंथों में उल्लिखित भाव व अन्य कवियों के दोहों के भाव की छाया  कतिपय दोहों में मिलती है रत्नावली  का जन्म संवत् 1577 में व मृत्यु संवत् 1651 में 74 वर्ष में हुई थी इनका तुलसी से विवाह संवत् 1589 में गौना संवत् 1593 में औरइनकी 27 वर्ष की अवस्था में तुलसी ने इनको त्याग दिया था इनके तारापति नामक पुत्र था जो अल्पायु में दिवंगत हो गया था। रत्नावली की रचनाओं में उनकी व्यथा दिखाई देती है -


वैस बारहीं कर गह्यो, सोरहिं गौन कराय। 
सत्ताईस लागत करी, नाथ रतन असहाय। 


इनके पिता दीनबंधु पाठक और मां दयावती थीं।  तुलसी के प्रस्थान वर्ष में ही मां दयावती का निधन हो गया था एक साहित्यिक अंकगणित भी होती है जो प्राचीन रचनाओं, शिलालेखों में देखने को मिलती है
मुरलीधर द्वारा रचित रत्नावली का मृत्युवर्ष है विषयक पंक्तियां देखिए---


भू शर रसभूं बरस पूरि.
स्वर्ग गई लहि सुजस पूरि.
बाएं से दाएं  पढ़े जाते हैं और दाएं से बाएं लिखे जाते हैं
भू-1शर-5रस-6( स्वाद वाले)भू-1


संतोष कुमार पटेरिया महोबा 99569590