रक्षा बंधन : रेशमी धागे

कहानी : रक्षा बंधन पर विशेष 



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अजय ने आफिस जाते समय माँ जी से कहा माँ कल दीदी की राखी दुकान पर आ गयी थी, आप से बात तो हुई थी
हाँ बेटा, फोन पे तो बात होती रहती है, हाल-चाल मिलता रहता है, तुम जाओगे कानपुर रीमा को लेकर?
नहीं माँ त्योहार पे दुकान बंद करने पे बहुत नुकसान होता है। 
हाँ बेटा वो तो है, कोई नही माँ आप रीमा से बात करना, अभी तो मैं चलता हूँ। आकर बात करूंगा, ठीक है  बेटा आराम से जाओ जय मातारानी, थोड़ी देर में रीमा कमरे में आयी, माँ चाय पीते हैं। हाँ बेटा आती हूँ। जरा चश्मा ढूढ रही थी। अरे माँ वो तो यहीं आप की तकिया पे रखा है। अच्छा-अच्छा माँ जी ने चाय लेते हुए कहा बहू राखी आने वाली है। बच्चो के लिए कपड़े ले आती और मिठाई तो तुम घर पर ही बनाओगी समान वगैरह ले आती बाजार से, हाँ माँ जी  लाऊँगी अभी तो पन्द्रह दिन है। 


अच्छा, हाँ अजय कह रहा था इस बार कानपुर जाना नहीं हो पायगा। हाँ माँ जी पता है। देखती हूँ, भैया, भाभी से बात करुँगी, फिर जैसी भी सुविधा होगी, नहीं तो दीपू भैया के हाथों राखी भेज दूँगी। वो अक्सर लखनऊ से कानपुर जाते है। 


ठीख कह रही हो, बहू त्योहार धूम-धाम से ही अच्छे लगते है अपने लिए श्रंगार का सामान ले आना और साड़ी भी पहना करो कभी-कभी। इस राखी पर पीछे साल भाभी ने जो तुम्हारी दी थी साड़ी उसी को पहन लेना। 



राखी पे याद आती रहेगी
ठीख कह रही हो  माँ जी


एक साल हो रहा है, अभी तक तैयार भी नही की है। 


ओ, बहू जाओ आज ही तैयार करो। ठीख माँ आज ही सब जल्दी से काम निपटा कर करती हूँ। रीमा फटाफट काम में लग गयी। 


दोपहर में बच्चों के स्कूल से आने के पहले काम खत्म करना है। रीमा ने आलमारी से साड़ी निकाली तो बहुत सारी यादे भी निकल आयी रीमा मुस्कराती हुयी  साड़ी के किनारे संभालने लगी, दोनी छोर की तुरपन करली, तभी नजर पड़ी की साड़ी तो बीच बीच से कटी हुई है। मन में अनेकों विचार आने लगे, मन कुछ उदास, कुछ चिंतित हुआ सोचने लगी, अगर यह साड़ी नहीं पहनी तो माजी हजार सवाल करेंगी। पहनी तो भी तमाम बातें, इसी उथल, पुथल में थी तभी बच्चे स्कूल से आ गए, बच्चो में लग गयी। धीरे -धीरे समय बीतता जा रहा था। राखी के अब चार दिन बचे थे पर भाभी से बात नही कर पायी। रीमा  हिम्मत कर के सोची की आज बात करुँगी भाभी से और साड़ी की बात भी कह दूँगी।



पर फोन किया तो बहुत सारी बाते हुई। पर जो सोच था वही नहीं कहा। फिर रीमा ने साड़ी को खोला उससे मिलती जुलती कुछ कतरन निकाली कुछ रेशमी धागे, फिर टीप लगाकर कर रेशमी धागे से फूल बना दिए, सोचती रही रिश्ते बड़े रेशमी होते है। जरा सी खींच पर टूट जाते है। इनमे टीप लगा देना, फूलो से सजा देना, कुछ भुला देना, परत चढ़ा देना ही दुनियादारी है। रवायत है, यही निभाना है, यही निभाते हैं यही औरत की किफ़ायत है। राखी का शुभदिन आ गया रीमा सुबह ही नहा कर तैयार हो गयी पूजा की बच्चों को तैयार करने लगी खाने की तैयारी भी झटपट हो गयी। कितनी सारी मिठाई एक दिन पहले ही बना ली, घर, परिवार बच्चो की यही खुशियां ही तो सुखद लगती है। 


तभी दरवाजे की घण्टी बजी, अजय ने दरवाज़ा खोला और धीरे से कुछ देर बाद कमरे में आकर कहा रीमा देखो कौन आया है। रीमा जैसे मुड़ी देखा सामने भैया-भाभी खड़े है। रीमा की खुशी का ठिकाना नही था, तुरन्त भैया-भाभी के लिए मिठाई पानी, के साथ राखी का थाल सजा कर ले आयी। आज भाई-भाभी को राखी बांधी तो माहौल खुशियों से भर गया। पर रीमा महसूस कर रही थी कि भाभी साड़ी देख कर, चमकते रेशमी फूलों की कहानी समझ रही थी रीमा ने आत्मसात कर लिया था। 


फूलों की खूबसूरती में कांटों का सा था...



लेखिका : ममता सिंह राठौर