माँ क्या है? उनसे पूछो जिनके माँ नहीं

लघु कथा


मीठे स्वर की लहरी ‘माँ’



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                माँ इस छोटे से शब्द में संसार निहित है। इसलिए माँ को संसार का सबसे बड़ा एवं प्रभावशाली विश्व विद्यालय माना गया, वह नर-नारायण की जननी, संतति, परम्परा की जननी, क्योंकि माँ का सम्बन्ध ईश्वर द्वारा प्रदत्त, अतः नैसर्गिक अन्य सम्बन्ध मनुष्य द्वारा बनाये गये हैं। इसलिए और सम्बन्धों में विकार का भाव आ सकता पर इस निर्मल, निःस्वार्थ सम्बन्ध में न कोई जोड़ है ना तोड़।


                माँ के वो मीठे स्वर की लहरी, बालक के अस्तित्व का अहसास कराती तो अनायास ही ब्रह्मा के सिंहासन पर बैठा दी जाती, वहीं नैनो से टपकती स्नेह, त्याग की अनुपम धारा जिसके अनन्त अथाह सरोवर के मर्म का संसार जान नहीं पाता क्योंकि माँ के हृदय को माँ ही जानती, नहीं जानता संसार।


                माँ सिसकती तबही बच्चे खुलकर अट्टाहस कर पाते, व्यवस्थित रहती ताकि उसकी संतान ऊँचा उठ सके, झुकती ताकि उसके बच्चों को अहंकार का आकाश विस्तृत हो पाता, स्वयं तिरस्कृत होती ताकि उसकी संतान का आहत न हो, उनका अभिमान असुरक्षित न हो। उसके ये समर्पित भाव बच्चों को अर्थवान बनाते हैं। इसलिए भारत की स्त्री के जीवन का आदर्श, प्रारम्भ और अंत मातृत्व में होता है, इन रसों से पूरा परिवार चिपका रहता क्योंकि इनमें महानता, स्वार्थशून्यता, करुणा, क्षमा, सहिष्णुता व त्याग के भाव जो निहित हैं।


                       माँ क्या होती, यह पूछो उन बच्चों से


                       जिनकी माँ ही नहीं होती......।।



लेखिका : रश्मि अग्रवाल


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