आंतरिक पूर्णता को अभिव्यक्त करना शिक्षा है...!


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तकनीकी आधार पर विकास?


मनुष्य की आंतरिक पूर्णता को अभिव्यक्त करना शिक्षा है। शिक्षा का अर्थ व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, व्यक्तिगत तथा सामाजिक अर्थात् सर्वांगीण विकास है।


आधुनिक युग की दौड़भाग का जीवन तथा धन लोलुपता प्राप्ति की लालची प्रवृति से व्यक्ति विश्व की दूरियां को कम कर रहा, लेकिन स्वयं को संकुचित कर लिया, जिसका मूल कारण बढ़ता हुआ आदिवाद। आज मानवीय संवेदनाएं गौण हो चुकी, इसी असंतुलित जीवनधारा ने युवाओं के समक्ष प्रश्नचिन्ह लगा दिया? कि उन्हें किस तरह की जीवनशैली अपनानी है।


इक्कीसवीं सदी ने सुख-सुविधाओं, विकसित तकनीक वाले उपकरण, नए संसाधन यहां तक की मानव, चांद पर पहुंच कर दुनिया बसाने की चाह कर रहा है। देखा जाए तो शिक्षा के मायने व स्तर दोनों बदले, शिक्षा का खुले आम व्यवसायीकरण हो रहा है। रोजगार के अभाव में बुद्धिमान युवाओं में आक्रोश पल रहा है। इसलिए वो गलत धंधों में संलिप्त होने लगे हैं।



आज के युवाओं में साधनों के प्रति आसक्ति बढ़ रही, जिसके कारण मिथ्या दृष्टि होकर भोग विलास एवं इंद्रिय सुखों की वासनाओं में फंसकर कर्मजनित भार से आत्मा को मारकर असंवैधानिक कार्य कर रहे हैं। प्रगति की अंधी दौड़ में मानवीय मर्यादाएं, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को तिलांजली दे चुके हैं। आज 17-18 वर्ष की आयु तक पहुंचने वाले बच्चे कहें या युवा, इंटरनेट का उपयोग खुलेआम कर रहे उम्र से पूर्व बुद्धिमानी प्राप्त कर चुके, क्षणिक उन्माद के लिए मदिरापान, जुआ, चोरी, चेन स्मोकिंग व शोषण जैसे कुकृत्यों में लिप्त पाये जाने लगे हैं। ऐसी अंधी नैतिक मूल्यों की होली दिन-प्रतिदिन जलती जा रही, जिनकी तपिश से भारत का भावी नागरिक अछूता नहीं है। ये वो युवाशक्ति जिनके दम व त्याग-तपस्या के कारण, आज़ादी का झंडा फहराया था। जिन्हें महात्मा गांधी, सरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे जुझारू नेताओं को गर्व हुआ करता था। पर आज प्रगति की दौड़, प्रतिस्पर्धा व रफ्तार के क्रम में युवा पीढ़ी चारों ओर हैरान-परेशान, जीवन के थके पखेरू बन हिम्मत हारे बैठे हैं।



साभार 


आज बच्चों की संस्कृति का विकास तकनीकी आधार पर हो रहा और ये सत्य कि तकनीक शिक्षा ज्ञानवर्द्धन करती, समय बचाती व देश, विदेश से जुड़ने व सीखने का माध्यम बनती है। पर बच्चों के मानव मूल्यों का विकास उपकरणों के दुरूपयोग से नष्ट हो रहा,  जिसके फलस्वरूप गैंगरेप, किडनैप, भ्रष्टाचार तथा स्पाॅट फिक्सिंग जैसी दुर्घटनाएं विकसित हुई हैं। जिन पर लगाम लगा पाना, आज सरकार के लिए अत्यन्त कठिन हो रहा है। अगर हम जापान की शिक्षा पद्धति का अवलोकन करें तो वहां के अधिकांश शिक्षित व्यक्ति ज्यादा सक्रिय हैं। इसका कारण जो प्रशिक्षण उन्हें दिया जाता, वह प्रयोगतात्मक है। इसलिए वहां के नागरिकों में कार्य करने की क्षमता हमारे भारत के लोगों से कहीं अधिक है।


सोचना होगा ही कि उच्च शिक्षा मानविकी विषयों की उपेक्षा कहीं विनाश कारण न बन जाए। जैसे ईश्वर ने शरीर रूपी मशीन बनायी जिसका सही उपयोग करने पर स्वस्थ रख सकते हैं। मशीनी प्रयोग की अधिकता बिगाड़ देती क्योंकि भावननाएं रिमोट कन्ट्रोल से नहीं,  समग्र व उचित विकास से प्राप्त होती हैं। इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में शारीरिक शक्ति और बुद्धि की प्रखरता की जितनी आवश्यकता उससे कहीं अधिक श्रेष्ठ चरित्र स्थिरता की व स्वच्छ राजनीति की भी। (लेखिका के अपने विचार हैं) 



लेखिका : रश्मि अग्रवाल


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