प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान
(daylife.page)
शांति प्राप्त करना मनुष्य के अपने वश में है। यदि मनुष्य प्राणियों के साथ मेल-जोल सद्भावना और समतापूर्वक रहता है तो उसके जीवन में शांति बनी रहती है। शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए सहअस्तित्व की कल्पना आवश्यक है। सहअस्तित्व का अर्थ है कि जीवन जितना हमे प्रिय है उतना ही अन्य प्राणियों को भी प्रिय है। यदि हम किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप किसी अन्य प्राणी के जीवन में करते है तो उसको दुःख होता है। इसलिए प्रेम से और सद्भावना से किसी भी प्राणी को वश में किया जा सकता है। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व में मनुष्य को ही केन्द्रीय स्थान मिला है। यह विचारधारा मनुष्य के हितों से संबन्धित है। यह सिद्धांत मुख्यतः इहलोक, बुद्धिवाद और व्यक्तिवाद के साथ मानव जीवन और उसकी अनुभुतियों को महत्व देता है। इस रूप में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व से अभिप्राय उस दर्शन से रहा हैं जिसका केन्द्र व प्रमाण दोनों मनुष्य ही है। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व मानवतावादी दृष्टिकोण का परिचायक है।
मनुष्य के कल्याण एवं सर्वतोमुखी विकास की दृष्टि से जाति, वर्ग, सम्प्रदाय को अधिक महत्व नही देता। मानवतावाद की मुख्य मान्यता है कि हमारे प्रयत्नों एवं लाभ हानि का प्रधान कार्य क्षेत्र इहलौकिक जीवन है। इस प्रकार मानवतावाद का मुख्य केन्द्र वर्तमान जीवन और उसका उच्चतम निर्माण है। भारत में सभी वर्गो में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का समर्थन मिलता है। इसमें मानव व्यक्तित्व और उसके पूर्ण विकास को मानव जीवन का चरम लक्ष्य माना गया है। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की स्थापना के लिए सहिष्णुता, तितिक्षा, करूणा और अपरिग्रह की मान्यता एक अनिवार्य शर्त है। “परस्परोपग्रहोजीवानाम्“ से लेकर ’जियो और जीने दो’ का सिद्धान्त ही शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की मुख्य धुरी है, जिसमें मानवतावाद का पर्याप्त पोषण किया गया है। आचार शुद्धि, व्यवहार शुद्धि और विचार शुद्धि के आधार पर मनुष्य बिना किसी अतीन्द्रिय सत्ता के सहयोग से स्वयं को विकसित बना सकता है। दया और करूणा का भाव ही शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के मूल में प्रतिष्ठित है, अतः शांतिपूर्ण सहअस्तित्व कोरा दर्शन न होकर जीवन दर्शन है, जो किसी भी जीव के अस्तित्व व गरिमा को स्थापित करता है।
इसके अंतर्गत व्यक्ति की संवेदना व दया, करुणा का भाव समस्त सृष्टि के जीवधारियों के लिए होता है। अतः अहिंसा इस दर्शन की प्रतिष्ठा के लिए सबसे अनिवार्य शर्त हैं। धर्म दर्शनों में धर्म के व्यावहारिक स्वरूप को मानव जीवन के साथ जोड़ने का प्रयास किया गया है इसलिए इन दर्शनों में धर्म के रूप में कर्म को प्रधानता दी गई है। मानव जीवन में उत्पन्न समस्याओं का व्यावहारिक समाधान एवं मनुष्य को ईश्वर तुल्य महत्ता प्रदान की गई है। इन दर्शनों में पारलौकिक उद्देश्यों की पूर्ति की अपेक्षा सांसारिक हितों की उपेक्षा नहीं की गई है। आध्यात्मिक लक्ष्य को स्वीकार करते हुए भी वर्तमान जीवन को उपेक्षित नहीं माना गया है। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के अनुसार मानव जीवन का उद्देश्य मात्र इतना नहीं है कि वह सत्य का साक्षात्कार करे अपितु सत्य के साक्षात्कार के साथ-साथ उस व्यवहार (आचार) को भी सतत अपने जीवन में उतारे जिसके आधार पर उसने सत्य बोध प्राप्त किया इसलिए भारत को सभी दर्शनों में तत्व मीमांसा के साथ-साथ आचार-मीमांसा का भी उतना ही महत्व हैं।
भारत ही नही वरन् विश्व के सभी श्रेष्ठ चिंतकों, दार्शनिकों एवं समाज सुधारकों ने शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को विकास के लिए आवश्यक माना है। इस रूप में संसार के सभी प्रमुख प्राचीन धर्म मानवतावाद की भूमिका पर प्रतिष्ठित हैं। प्रत्येक धर्म प्रवर्तक के मन में विश्व के प्राणियों के प्रति असीम संवेदना और करूणा का भाव रहा है। मानव के साथ-साथ प्रत्येक प्राणी शांति सौहार्द एवं सद्भावना के साथ जीवन निर्वाह कर सके यही उद्देश्य शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पंचशील सिद्धांत के अंतर्गत शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को विशेष महत्व दिया था। आज भी हमारे देश की विचारधारा इसी सिद्धांत पर चल रही है। भारत ने कभी भी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया बल्कि भारत पर ही अनेक विदेशी आक्रांताओ ने आक्रमण करके यहां की संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया।
किन्तु वे अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सके। आज भी भारत इस सिद्धांत को महत्व देता है क्योंकि यह सूत्र भारतीय संस्कृति में समाया हुआ है। इसके मूल में यह है कि जिस प्रकार जीवन हमें प्रिय है उसी प्रकार से अन्य प्राणियों को भी उनका जीवन उन्हें प्रिय है। दुःख कोई नहीं चाहता। सभी सुख चाहते है। इस सिद्धांत के पीछे यही सांस्कृतिक विचारधारा काम कर रही है। हमारे देश की यह विशेषता रही है कि यहां पर दंड का सुधारात्मक स्वरूप स्वीकार किया गया है। अपराधी को भी सुधरने का मौका दिया जाता है। बुराई को अच्छाई से जीतने का प्रयास किया जाता है। हमारे देश में हृदय परिवर्तन को विशेष महत्व दिया गया है। महात्मा गांधी ने कहा था कि यदि कोई व्यक्ति गाल पर एक तमाचा मारे तो दुसरा गाल भी उसकी तरफ कर दो। यह विचारधारा कितनी उदार और दुसरों को परिवर्तित करने वाली है। अपराधी भी देशकाल और परिस्थिति के अनुसार बुरे मार्ग को चुनता है। उसको भी यदि अच्छा वातावरण और सुधारात्मक गतिविधि से परिचित कराया जाये और उसे प्रशिक्षण दिया जाये तो वह भी गलत मार्ग छोड़कर सद्मार्ग पर आ जायेगा। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व सभी प्राणियों में समता का भाव है। (लेखक का अपने विचार है)