भीलवाड़ा को काला पानी मुक्त करने की मांग : लक्ष्मण सिंह राठौड़ 

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भीलवाड़ा। भीलवाड़ा जिसकी पहचान अंतरास्ट्रीय स्तर पर वस्त्रनगरी के नाम से है,जो एशिया का मैनचेस्टर कहलाता है। भीलवाड़ा में जब कोई व्यक्ति बाहर से भीलवाड़ा शहर की सीमा में प्रवेश करता है तो 10-15 किलोमीटर दूर से ही आभास हो जाता है कि अपना भीलवाड़ा आ गया है। भीलवाड़ा वस्त्र नगरी है यहाँ के लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत्र भी इंडस्ट्री ही है। अभी जब कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन था। सब उद्योग धंधे बंद पड़े थे। मानव मानव मात्र की सेवा करने में अपने आप को धन्य समझ रहा था। किसी भी मनुष्य में आपस में गलाकाट प्रतिस्पर्धा नही थी। चारो ओर का वातावरण सुंदर था आबो हवा में किसी तरह का जहर नही गुला था, लेकिन जैसे ही लॉक डाउन खत्म हुआ प्रशासन ने काम धंधे चालू करने की स्वीकृति प्रदान की वातावरण में पुनः जहर गुलने लग गया।


प्रोसेस हाऊस से निकलने वाला काला पानी ऐसे लगता है जैसे शहर वासी आजादी से पहले की काले पानी की सजा भुगत रहे हो आज प्रोसेस हाऊस के दूषित काले पानी की वजह से  ही शहर की जनता धीरे धीरे काल का ग्रास बन रही है। जनता को स्लो पायजन खाद्यान, सब्जियों, दूध, पानी के माध्यम से निरंतर मिल रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप भीलवाड़ा में कैंसर और चर्म रोग के मरीजों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। प्रोसेस हाऊस से कई किलोमीटर लंबी पाईप लाईन द्वारा चोरी छिपे रात्रि में काला पानी छोड़ा जाता है। जो नालो,बांध के माध्यम से नदी में जाकर मिलता है। इस पानी की वजह से ही कुँए ओर नलकूपों का पानी जहरीला हो गया है। हजारों हजार बीघा उपजाऊ कृषि भूमि जिसे बनास का पेटा कहा जाता जिसे काले पानी ने निगल लिया। हमारे अन्नदाता बेरोजगार हो गये, जिसके कारण ये रोजगार की तलाश में पलायन करने के लिये मजबूर हो गये ओर देश मे अन्य स्थानों पर जाकर छोटा मोटा रोजगार करने लग गये थे। लेकिन कोरोना महामारी के चलते पुनः अपने गाँव  आगये तो उनके सामने रोजी रोटी का संकट आ खड़ा हुआ।


काले पानी की वजह से धरती माँ का दामन तो पहले ही काला हो चुका है। सरकार की गाईड लाईन के अनुसार कोई भी प्रोसेस हाऊस प्रदूषित पानी को चार दिवारी के बाहर नही  छोड़  सकते और छोड़ने पर कंसेंट टू आपरेट तक निरस्त करने का प्रावधान है ,लेकिन बरसो से काला पानी बाहर छोड़ा जा रहा है, लेकिन आज तक एक भी प्रोसेस हाऊस के साथ ये कदम नही उठाया गया क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल भीलवाड़ा भी कान में तेल डालकर सो रहा है,सरकार ने इस बारे में स्पष्ट गाईड लाईन जारी कर रखी है कि कोई भी प्रोसेस हाऊस जनहित के विरोध में कार्य करता है तो उसके साथ कोई समझौता नही करना चाहिए। राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने एमईई संचालन की प्रतिदिन की रिपोर्ट भी मांगी। जिसके आधार पर रैंडम भौतिक सत्यापन भी  होगा। रेकॉर्ड ओर मौके पर कुछ भी  गड़बड़ी मिली तो तुरंत उद्योग बंद करने का नोटिस जारी कर सकते है, लेकिन नतीजा वो ही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।


हजारों लीटर एसिड का प्रयोग प्रतिदिन प्रोसेस हाऊस द्वारा किया जाता है और जहरीला पानी बाहर छोड़ दिया जाता है। जिससे धरती माता का दामन तो काला हो ही रहा है। साथ ही गो माता वह अन्य मवेशियों को भी नुकसान हो रहा है। भीलवाड़ा में अब तक किसी मजबूत अधिकारी ने कोई ठोस कदम नही उठाया जो आर पार का निर्णय कर सके कुछ अधिकारी कार्यवाही का दिखावा करते हैं तो मात्र अपने निजी लाभ के लिये ,भीलवाड़ा के उद्योगपतियों के राजनीतिक रसूखात भी है जिसके चलते कोइ अधिकारी ठोस कार्यवाही भी नहीं करते, क्योंकि भीलवाड़ा प्रदूषण नियंत्रण मंडल दूध देने वाली गाय है। इसे कोई नही छोड़ना चाहता है तू भी जेब भर मुझे भी भरने दे भाड़ में जाये जनता, ओर यहा की जनता भी विरोध करते करते थक चुकी है। क्योंकि सही नेतृत्व नही मिलता, जो भी नेतृत्व करने आता है यहा तो  उद्योगपति द्वारा खरीद लिया जाता है या  डरा धमका कर बिठा दिया जाता है या किसी राजनीतिक दल से जोड़ दिया जाता हैं।  


प्रत्येक प्रोसेस हाऊस दिखावे के लिये etp प्लांट लगा रखा है जो दूषित पानी को रीयूज करके वापस काम मे लेते है और जो ज्यादा खराब पानी बचता है। उसे वाष्प बनाकर जीरो डिस्चार्ज करते है ,जिससे काफी खर्चा आता है ,भीलवाड़ा में एक आध ही प्रोसेस हाऊस है जो इस का सही तरीके से काम मे लेता है। बाकी प्रोसेस में तो etp प्लांट मात्र सो पीस है, क्योंकि प्रोसेस सफेद हाथी है,प्लांट लगाना आसान है लेकिन उन्हें नियमानुसार चलना बहुत  कठिन है। माननीय प्रधानमंत्री जी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो गुजरात मे कमान etp सिस्टम लागू किया था, जो सहराहनी पहल थी। जिसकी वजह से आज गुजरात की आबोहवा स्वच्छ है। अगर यही सिस्टम भीलवाड़ा में लागू  किया जाये हर प्रोसेस से उसके स्टैण्डर्ड के हिसाब से चार्ज वसूला जाये।  अगर कॉमन etp प्लांट लगता है तो उद्योगपतियों को भी कोई आपत्ति नही होनी चाइये, क्योंकि प्रत्येक प्रोसेस वाले को अपनी चोरी छिपाने के लिये  प्रदूषण नियंत्रण  मंडल, स्थानीय छूट भये नेता, मीडिया, प्रशासन हर  किसी के सामने मजबूरी में दबना पड़ता है। उनकी जायज नाजायज हर मांग माननी पड़ती है।


अगर  कॉमन प्लांट लगाने के लिये स्थानीय प्रशासन पहल कर ओर एक बड़ी सरकारी जगह पर ये प्लांट लगती है। जिसमे प्रत्येक प्रोसेस का काला पानी भूमिगत पाईप लाईन द्वारा वहा लाया जाये, ओर उस प्रोसेस के स्टैण्डर्ड के हिसाब से उस का खर्चा उससे लिया जाये।  इस प्लांट पर सरकार का नियंत्रण रहे तो भीलवाड़ा वासियो को काले पानी की सजा से मुक्ति मिल सकती है, क्योंकि जो दूषित पानी प्रोसेस हाऊस से निकलता है वो जहर के  समान ही है। क्योकि ये जमीने तो बंजर कर ही रहा है साथ ही साथ,किसी ने किसी माध्यम से ये जहर हमारे शरीर मे पहुंच रहा है जिसकी वजह से 10 सालो में भीलवाड़ा में कैंसर के मरीजो को संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। आज कोई गली मोहल्ले ऐसे नही है जहाँ केंसर के मरीज ना हो। कोरोना महामारी का प्रकोप हम देख ही रहे है। अभी भी समय है अगर प्रशासन अभी भी नही चेता तो कब लाड़ो स्पोर्ट्स एकेडमी अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह राठौड़ ने प्रशासन से मांग की है कि इस दिशा में उचित कदम उठाते हुए एक प्लान बनाकर राज्य सरकार से स्वीकृति लेकर जनहित में एक सकारात्मक कदम उठाए ताकि भीलवाड़ावासी आपको हमेशा अपने ह्रदय में स्थान देकर याद रखे।