सुरा सम्राट विजय माल्या
 


 

(डे लाइफ डेस्क)

 

मैं पाखंडी नहीं हूं। न कभी बन पाऊंगा। जो मैं हूँ , वह मैं हूँ। दुनिया मुझे उसी तरह देखने लगी है , यह अच्छी बात है। बयानों की यह गुब्बारेबाजी या फुग्गेबाजी सुरा सम्राट के विशेषण से लबालब विजय माल्या ने एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कही थी।उनके गुणगान करने को मजबूर कलम के  सौदागर यहां तक लिख गए कि विजय माल्या के कई चेहरे हैं, मगर यह किसी चेहरे को छिपाते नहीं। यदि इसी को सच मान लिया जाएं तो सवाल मात्र इतना - सा है कि वे बैंकों के साथ नौ हजार करोड़ रुपए की धोखाधड़ी और मनी लांड्रिंग के विभिन्न आरोपी है। उन्हें भगोड़ा घोषित किया जा चुका है और वे कुछ सालों से ब्रिटेन में मुहं छिपाए फिर रहे है। यह है उनकी असली फितरत। प्रत्यर्पण के मामले में यूके की अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी है।

 

नतीजन उन्हें 28 दिनों में भारत लाया जा सकता है। हर दाँव चलने में माहिर माल्या ने पुनः कहा है कि मैं पूरा कर्ज बिना शर्त लौटाने को तैयार हूं, मगर मेरे खिलाफ सभी केसों को बंद कर दिया जाए। चोरी तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी। एक बार पराक्रमी फौजदारी वकील स्व. राम जेठमलानी ने भी इससे मिलती- जुलती बात कही थी। उन्होंने कहा था मैं दाऊद इब्राहिम को भारत ला सकता हूं, लेकिन उन्हें फाँसी की सजा नहीं होना चाहिए। ऐसी बातें की तुलना तो गाँधीजी के आश्रम से ही की जा सकती है, जहाँ हर किसी को क्षमा का प्रावधान होता है।

 

सुरा सुल्तान ने अपने आप को जहां तक पहुंचाया था, उसकी तारीफ करने वालों ने कभी विजय माल्या को पारदर्शी तथा नो नानसेंस मेटर जैसे विशेषणों से नवाजा था। विभिन्न कारोबारों को अपना चुके इस बदचलन  का कभी कहा एक बयान याद आ रहा है। मेरी किंगफिशर बीयर का ब्रांड घाघरा नहीं कॉस्ट्यूम ही कर सकता है। बीयर  सृजन से विजय माल्या ने इसलिए हाथ निकाल लिया था कि उन्हें वहां  उसकी जरूरत ही नहीं रह गई थी। फिर हवाई सेवा में गोते लगाएं, जिसका नाम रखा गया किंगफिशर एयरलाइंस। इस निजी विमान सेवा ने पहली घरेलू उड़ान 9 मई 2005 को मुंबई से दिल्ली के लिए भरी।

 

एक जमाना ऐसा भी आया कि देश तथा दुनिया के कई हिस्सों के आसमान में किंगफिशर एयरलाइंस विमान सेवा के जहाज उड़ान भरने लगे। इस सफलता को विजय माल्या पचा नहीं पाए और खुद भी हवा से बातें करने लगे। हवा में गोते लगाने लगे और  उनके बयान ऐसे आने लगे जैसे उनमें कोई सुर्खाब पर लगे हों। हमारी युवा पीढ़ी को फिल्मी तारिकाएं तथा क्रिकेटर्स सबसे पहले लुभाते हैं। इसलिए इंडियन प्रीमियर लीग  के लिए विजय माल्या ने रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु का गठन कर लिया। स्टेडियम में जनाब के बगल में कोई फिल्मी सनसनी जरूर हुआ करती थी।

 

देश मे यूवी ग्रुप तथा किंगफिशर ( बंद हो चुकी) के चेयरपर्सन  रहे कभी स्पोर्ट्स, विंटेज कारो, रेसिंग होर्सेस, लग्जरी नौंकाओं , फुटबॉल क्लब, पाश विलास में उड़ान भराया करते थे। उनकी महंगी कॉकटेल पार्टियों के लिए लोग तरसते थे। विजय माल्या ने कारोबार के हर क्षेत्र विहस्की, रम ,बोतका, बीयर आदि में मूवी ग्रुप को आजमाया। सालों की उठापटकके बाद उन्होंने शॉ  पैलेस को भी टेक ओवर कर लिया । जुमलेबाजी में भी उस्ताद विजय माल्या ने तब कहा था यह कोई खिलौना नहीं जो मैंने बालहठ से प्राप्त किया हो। यह मेरे बिजनेस की जरूरत थी। मैंने समय, श्रम और पैसा खर्च करके इसे हथियाया है। सन 2004 तक तो यूवी ग्रुप दुनिया की सबसे बड़ी  लिकर कंपनी बन गई थी। उन्होंने फ़्रेंच वाइन कंपनी में भी टेक ओवर किया। उनका कभी जो सपना था  वह कभी मयकशों में यह सुनकर दीवाना बना सकता था कि किसी दिन युवी समूह  दुनिया का लीकर किंग बन जाएं।

 

विजय माल्या जिस तरह से मीडिया से रूबरू होते थे, उससे लगता था कि असली नशा तो अंदर भरा पड़ा है। इसलिए हर साल वे एक्सक्लुसिव और बहुआलोचित स्त्रिय कैलेंडर जारी  रहे। कभी विजय माल्या शान बघारा करते थे - पास्ट इज हिस्ट्री ,फ्यूचर इज मिस्ट्री, यानी जो बीत गया  वह इतिहास है जो भविष्य है वह रहस्य में छिपा है। खबर है कि विजय माल्या को भारत 28 दिनों में लाना तय है। अगर ऐसा है तो पता नहीं उनके लिए भारतीय कानून की किताबों में क्या लिखा है। (लेखक के अपने विचार है)

 


लेखक : नवीन जैन, इंदौर