पतझड़ के सूने मौसम मे...


कभी तो घर से बाहर आओ 
     सीखो कुछ अंदाज़ नये 
जीवन के सुर झंकृत होंगे 
   और सजेँगे साज नये !
घर मे करते प्यार सभी 
  मान और मनुहार.सभी 
पर अब बाहर आकर देखो 
  जीवन इतना सरल नही !
कहाँ कहाँ ठोकर लगनी है...? 
कैसे कहाँ सम्भलना है ?
  अभी दूर है मंजिल मेरी 
अभी तो कितना चलना है ।
  चलते चलते शाम हो गई 
दीप जल उठे राहों मे...
  ऐसे ही है हाथ तुम्हारा 
हर पल मेरे हाथो मे !
  जब से पाया साथ तुम्हारा 
जैसे पाई राह नई 
  पतझड़ के सूने मौसम मे


जैसे बिखरे फूल कई !
  प्रभु की शरण मे जो भी आये 
उसे नही मुश्किल कुछ भी !
  जीवन नैया पार लगेगी 
कट जायें पाप सभी ॥


ज्योतिषाचार्या रश्मि चौधरी 


कोटद्वार (Uttarakhand)


 


Phone No. 9761712285