कभी तो घर से बाहर आओ
सीखो कुछ अंदाज़ नये
जीवन के सुर झंकृत होंगे
और सजेँगे साज नये !
घर मे करते प्यार सभी
मान और मनुहार.सभी
पर अब बाहर आकर देखो
जीवन इतना सरल नही !
कहाँ कहाँ ठोकर लगनी है...?
कैसे कहाँ सम्भलना है ?
अभी दूर है मंजिल मेरी
अभी तो कितना चलना है ।
चलते चलते शाम हो गई
दीप जल उठे राहों मे...
ऐसे ही है हाथ तुम्हारा
हर पल मेरे हाथो मे !
जब से पाया साथ तुम्हारा
जैसे पाई राह नई
पतझड़ के सूने मौसम मे
जैसे बिखरे फूल कई !
प्रभु की शरण मे जो भी आये
उसे नही मुश्किल कुछ भी !
जीवन नैया पार लगेगी
कट जायें पाप सभी ॥
ज्योतिषाचार्या रश्मि चौधरी
कोटद्वार (Uttarakhand)
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