खेलरत्न बिपाशा बसु को...


आते ही तोताराम चालू हो गया बोला- यह सरकार भी अजीब है । जिस हाकी में भारत क्वालीफाई भी नहीं कर सका उसके अधिकारियों को तो बीजिंग घूमने भेज दिया पर बेचारी बिपाशा बसु को खेल रत्न भी नहीं दिया गया । हम चौंके । क्या बिपाशा को खेल रत्न! भई जो खेल बिपाशा खेलती है वे विज्ञापन मीडिया और सिनेमा में तो चर्चित् हो सकते हैं पर ओलम्पिक में तो नहीं ही खेले जाते । जान अब्राहम के साथ वह जो खेल खेल रही है या पर्दे पर रिकार्ड संख्या में चुम्बन दस्य कर रही है वे किसी और ही खेल का हिस्सा हैं । हाँ नेताओं ने ज़रूर खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए लाखों करोड़ों के नक़द पुरस्कार देने की घोषणा की है ।


तोताराम हंसा. बन गया ना उल्लू। अरे! इन पुरस्कारों में नेताओं के बाप का क्या जाता है जनता का पैसा है। लुटाने में किसी को क्या दर्द । अपनी कमाई में से देते तो भी एक बात । बिपाशा को देख । कांस्य पदक की घोषणा होते ही उसने बिजेंद्र को फोन कर दिया कि वह उसके साथ डेटिंग करके उसे पुरस्कृत कराने के लिए तैयार है । इसमें जो शारीरिक या मानसिक ख़तरा हो सकता था उठाने के लिए तैयार हो गई । यदि उसने यह प्रस्ताव पहले दे दिया होता तो बिजेंद्र कांस्य क्याए स्वर्ण पदक ले आता ।


हमने डाँटा  क्या बात करता है । अगर यह प्रस्तावा पहले दे देती तो पदक क्या क्वालीफाई भी नहीं कर पाता । और अब उसको जिस तरह से सेलेब्रिटी बनाया जा रहा हैए देख लेना अगले ओलम्पिक में गया कांस्य पदक से भी । प्रस्ताव सुनकर ही छोरे के घुटनों में पानी पड़ जाता होगा । अब हो ली मुक्केबाजी ।


तोताराम बोला- सौंदर्य में बड़ी शक्ति होती है । देखता नहीं हीरोइन के सौंदर्य के बल पर ही तो हीरो विलेन और उसके दस.दस हट्टे.कट्टे साथियों को पछाड़ देता है । बिजेंद्र नहीं तो और लाखों युवक इस प्रस्ताव को सुनकर सर और महुह  तुड़वाने के लिए तैयार हो जायेंगें और हो सकता है कोई न कोई पदक ले ही आए । यदि पदक नहीं भी आए तो भी बिपाशा के इस खेल प्रेम की तो प्रशंसा की ही जानी चाहिए । हम चुप हो गए क्या करते । (लेखक के अपने विचार हैं)


रमेश जोशी


(वरिष्ठ व्यंग्यकार, संपादक 'विश्वा' अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका)


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