लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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लगभग छः दशक पूर्व तब की बम्बई और अब की मुंबई में बाला साहेब ठाकरे में शिव सेना नाम का एक संगठन बनाया था। वे पेशे इस कार्टूनिस्ट थे तथा उन्होंने नौकरी छोड़ कर यह संगठन बनाया था। कुछ समय तक यह राजनीतिक संगठन नहीं था। इसका उद्देश्य मुंबई में रह रहे मराठी भाषी लोगों के हितों के रक्षा करना था। तब और अब भी महाराष्ट्र की इस राजधानी में बाहरी लोगों की संख्या काफी अधिक है। विशेषकर उत्तर प्रदेश के लोग यहाँ बड़ी संख्या में बसे हुए है। इसी प्रकार यह महानगर दक्षिण के राज्यों, विशेषकर तमिलनाडु के लोंगों का यह पसंदीदा शहर रहा है।
तब पहली बार राज्य में मराठी मानुष का नारा सुनाई दिया था। ठाकरे के संगठन ने मुहीम चलाई कि यहाँ स्थानीय लोगों को नौकरी में प्राथमिकता दी जाये। दक्षिण से आ कर यहाँ रह रहे लोगों को इंग्लिश का ज्ञान अच्छा था। वे अच्छे स्टेनोग्राफर और टाइपिस्ट थे इसलिए दफ्तरों के काम काज में उन्हें लिया जाना पंसद किया जाता था। उस समय यहाँ कपड़ा मिलों के बड़ी संख्या थी जहाँ काम करने वाले अधिकतर श्रमिक उत्तर प्रदेश के थे या फिर बिहार से आये थे। ठाकरे की मुहीम के चलते कारखानों के मालिक स्थानीय लोगों को भी बड़ी संख्या में रोजगार मिलने लगा। उन दिनों तथा बहुत बाद तक ठाकरे का यहाँ इतना दबदबा था कि कोई कारखाना या दफ्तर उनकी मर्जी बिना नहीं चल सकता था। कर्नाटक के उडीपी शहर का शेट्टी समुदाय भोजनालय चलने में परांगत माने जाते है। वे किफायती मूल्य पर खाना और नाश्ता आदि देने के लिए जाने जाते है।
आज भी मुंबई में इनके भोजनालयों की भरमार है। ये भी तब शिव सेना का कुछ समय तक निशाना रहे। बाद में शिव सेना ने मुंबई महानगरपालिका के चुनावों से राजनीति प्रवेश किया तथा बाद के वर्षो में इसका बीजेपी के साथ गठबंधन के चलते यह पार्टी सत्ता में भी आई। उस समय बाला साहेब ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे उनके उतराधिकारी समझे जाते थे। लेकिन बाल ठाकरे पुत्र मोह के चलते पार्टी की कमान अपने पुत्र उद्धव ठाकरे को सौंप दी। इसके चलते राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम की एक नई पार्टी बना ली। लेकिन यह पार्टी ठीक से पनप नहीं पाई। राज्य में मुंबई महानगर पालिका सहित कई अन्य निगमों के अक्टूबर में चुनाव होने है। चूँकि शिव सेना टूट के बाद बहुत कमजोर हो गई है इसलिए दोनों चचेरे भाईओं में फिर दोस्ती के हाथ बढे। मुबई महानगर पालिका में अविभाजित शिव सेना का बीजेपी के साथ मिलकर दबदबा रहा है। इसलिए उद्धव ठाकरे,जो अब बीजेपी विरोधी हैं, ने अपने भाई के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहते है। दोनों ने मिलकर मराठी मानुष के नारे को आगे बढ़ने में लगे है।
पिछले दिनों राज ठाकरे की पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने यहाँ बसे एक राजस्थानी को इसलिए थप्पड़ और घूंसे मारे क्योंकि वह मराठी नहीं बोल रहा था। केवल इतना ही नहीं इसका वीडियो बनकर वायरल कर दिया। इसी प्रकार उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिव सेना के एक बड़े नेता ने अपने सामने कुछ हिंदी भाषियों के साथ मारपीट की। इन दोनों भाईयों को लगता है कि मराठी मानुष के नारे को आगे बढ़ने से उनको महानगर पालिका चुनावों में लाभ मिल सकता है। बाला साहेब ठाकरे ने यहाँ बाहरी लोगों का विरोध किया था किया था लेकिन यह बात कभी नहीं उठाई के वे हिंदी क्यों बोलते है। अब दोनों भाई हिंदी के विरोध को मुद्दा बना रहे हैं। कुछ समय पूर्व राज्य बीजेपी के नेतृत्व वाली शिव सेना (शिंदे गुट ) तथा एन सी पी की सरकार ने त्रि भाषी शिक्षा फार्मूले को लागू को करते हुए स्कूलों में हिंदी पढाया जाना अनिवार्य कर दिया। लेकिन विपक्ष के विरोध के चलते इस निर्णय को वापिस लेना पड़ा। सत्तारूढ़ गठबंधन को लगता था इससे हिंदी को लागू करने को लेकर पार्टी को स्थानीय निकायों के चुनावों में नुकसान हो सकता है।
उधर एकनाथ शिंदे, जो राज्य के उप मुख्यमंत्री है, के नेतृत्व वाली शिव सेना के एक विधायक संजय गायकवाड ने विधायक निवास की कैंटीन के मैनेज़र तथा कुछ अन्य कर्मचारियों की जमकर पिटाई कर दी। उनका कहना था कि उन्हें बासी खाना परोसा गया। लेकिन उन्होंने बाद में खुद कहा कि चूँकि इस कैंटीन का ठेका उडीपी के शेट्टी के पास है इसलिए उनको इस बात का गुस्सा था कि यह कैंटीन किसी मराठी मानुष को क्यों नहीं दी गई। उन्होंने मांग की कि मुंबई तथा महाराष्ट्र के अन्य भागों में उडीपी के शेट्टी लोगों द्वारा चलाये जा रहे भोजनालयों के लाइसेंस रद्द कर दिये जाएँ ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)